यद्यदाचरति श्रेष्ठस्तत्तदेवेतरो जनः ।स यत्प्रमाणं कुरुते लोकस्तदनुवर्तते ॥
यद्यदाचरति श्रेष्ठस्तत्तदेवेतरो जनः ।स यत्प्रमाणं कुरुते लोकस्तदनुवर्तते ॥

यद्यदाचरति श्रेष्ठस्तत्तदेवेतरो जन: |
स यत्प्रमाणं कुरुते लोकस्तदनुवर्तते || 21||

यद्यदाचरति श्रेष्ठस्तत्तदेवेतरो जन: |
स यत्प्रमाणं कुरुते लोकस्तदनुवर्तते || 21||

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भावार्थ:

श्रेष्ठ पुरुष जो-जो आचरण करता है, अन्य पुरुष भी वैसा-वैसा ही आचरण करते हैं। वह जो कुछ प्रमाण कर देता है, समस्त मनुष्य-समुदाय उसी के अनुसार बरतने लग जाता है (यहाँ क्रिया में एकवचन है, परन्तु ‘लोक’ शब्द समुदायवाचक होने से भाषा में बहुवचन की क्रिया लिखी गई है।)॥21॥

Translation

Whatever actions great persons perform, common people follow. Whatever standards they set, all the world pursues.

English Translation Of Sri Shankaracharya’s Sanskrit Commentary By Swami Gambirananda

See also  Bhagavad Gita: Chapter 18, Verse 13

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