अव्यक्तोऽक्षर इत्युक्तस्तमाहुः परमां गतिम्‌ ।यं प्राप्य न निवर्तन्ते तद्धाम परमं मम ॥
अव्यक्तोऽक्षर इत्युक्तस्तमाहुः परमां गतिम्‌ ।यं प्राप्य न निवर्तन्ते तद्धाम परमं मम ॥

अव्यक्तोऽक्षर इत्युक्तस्तमाहु: परमां गतिम् |
यं प्राप्य न निवर्तन्ते तद्धाम परमं मम || 21||

avyakto ’kṣhara ityuktas tam āhuḥ paramāṁ gatim
yaṁ prāpya na nivartante tad dhāma paramaṁ mama

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भावार्थ:

जो अव्यक्त ‘अक्षर’ इस नाम से कहा गया है, उसी अक्षर नामक अव्यक्त भाव को परमगति कहते हैं तथा जिस सनातन अव्यक्त भाव को प्राप्त होकर मनुष्य वापस नहीं आते, वह मेरा परम धाम है॥21॥

Translation

That unmanifest dimension is the supreme goal, and upon reaching it, one never returns to this mortal world. That is My supreme Abode.

English Translation Of Sri Shankaracharya’s Sanskrit Commentary By Swami Gambirananda

See also  Bhagavad Gita: Chapter 1, Verse 44

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