Shri Ram Stuti, Shri Ram Stuti
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Shri Ram Stuti

श्रीरामचंद्र कृपालु भजु मन हरण भव भय दारुणं |

नवकंज-लोचनकंज-मुखकर-कंज पद कंजारुणं ||

 

 

हे मन! कृपालु श्रीरामचंद्रजी का भजन कर 

वे संसार के जन्म-मरणरूप दारुण भय को दूर करने वाले हैं

उनके नेत्र नव-विकसित कमल के सामान हैं

मुख-हाथ और चरण भी लाल कमल के सदृश हैं |

 

कंदर्प अगणित अमित छबिनवनील-नीरद सुंदरं |

पट पीत मानहु तड़ित रूचि शुचि नौमी जनक सुतावरं ||

 

उनके सौन्दर्य की छटा अगणित कामदेवों से बढ़कर है

उनके शरीर का नवीन नील-सजल मेघ के जैसा सुन्दर वर्ण है

पीताम्बर मेघरूप शरीरों में मानो बिजली के सामान चमक रहा है

ऐसे पावन रूपजानकी पति श्रीरामजी को मैं नमस्कार करता हूँ |

 

भजु दीनबंधु दिनेश दानव-दैत्यवंश-निकन्दनं |

रघुनंद आनँदकंद कोशलचंद दशरथ-नन्दनं ||

 

हे मन ! दीनों के बन्धुसूर्य के सामान तेजस्वी

दानव और दैत्यों के वंश का समूल नाश करने वाले

आनंदकंदकोशल-देशरूपी आकाश में निर्मल चंद्रमा के सामान 

दशरथनंदन श्रीराम का भजन कर |

 

सिर मुकुट कुंडल तिलक चारु उदारु अंग विभूषणं |

आजानुभुज शर-चाप-धरसंग्राम-जित-खरदूषणं ||

 

जिनके मस्तक पर रत्न-जटित मुकुटकानों में कुंडल,

 भाल पर सुन्दर तिलक और प्रत्येक अंग में सुन्दर आभूषण सुशोभित हो रहे हैं,

 जिनकी भुजाएँ घुटनों तक लम्बी हैंजो धनुष-बाण लिए हुए हैं,

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