insaan, Bhagwan Ek Insan ki
insaan, Bhagwan Ek Insan ki

Bhagwan Ek Insan ki

भगवन एक इंसान की सुनाता हु कहानी
अश्को की जुबानी कुछ ाहो की जुबानी
अश्को की जुबानी कुछ ाहो की जुबानी

इतनी ही उम्मीदों से सजाई है दुनिआ
मै खुश था कि खुद मैंने
बनाई है ये दुनिआ
लेकिन तेरी दुनिआ ने जला दी मेरी दुनिआ
यद् आते है वो दिन तो
सुलगता है कलेजा
थमता नहीं ाहो का धुआँ
सीने के अंदर
रूकती नहीं रोके से इन अश्को की रवानी
भगवन इक इंसान की सुनाता हु कहानी

उजड़ी हुई बस्ती का निशा तक नहीं मिलता
हो आग लगाई के धुआ तक नहीं मिलता
हर गीत ख़ुशी का सिसकती हुई फरियाद
सीने से लगाये हुए
फिरता हू बस एक यद्
होठों पे कुछ ाहे है
तो आँखों में कुछ ासु
ले देके यही रह गयी
ये साडी निशानी
भगवन एक इंसान की सुनाता हु कहानी

भगवन मुझे देख के मैं
हक़ पे लड़ा हूँ
सचाई का दीपक लिए
ाँधी पे खड़ा ह
अँधियारो से इमां की
बाते न छुपेंगी
थक जायेगा रही
कभी रहे न थकेंगी
सच बोल कही दिल तेरा
पत्थर तो नहीं है
चुप चाप जो सुनता है तू
इंसान की कहानी
अश्को की जुबानी है
कुछ ाहो की जुबानी
भगवन एक इंसान की सुनाता हु कहानी
अश्को की जुबानी है
कुछ ाहो की जुबानी

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