विस्तरेणात्मनो योगं विभूतिं च जनार्दन ।भूयः कथय तृप्तिर्हि श्रृण्वतो नास्ति मेऽमृतम्‌ ॥
विस्तरेणात्मनो योगं विभूतिं च जनार्दन ।भूयः कथय तृप्तिर्हि श्रृण्वतो नास्ति मेऽमृतम्‌ ॥

विस्तरेणात्मनो योगं विभूतिं च जनार्दन |
भूय: कथय तृप्तिर्हि शृण्वतो नास्ति मेऽमृतम् || 18||

विस्तरेणात्मनो योगं विभूतिं च जनार्दन |
भूय: कथय तृप्तिर्हि शृण्वतो नास्ति मेऽमृतम् || 18||

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भावार्थ:

हे जनार्दन! अपनी योगशक्ति को और विभूति को फिर भी विस्तारपूर्वक कहिए, क्योंकि आपके अमृतमय वचनों को सुनते हुए मेरी तृप्ति नहीं होती अर्थात्‌ सुनने की उत्कंठा बनी ही रहती है॥18॥

Translation

Tell me again in detail your divine glories and manifestations, O Janardan. I can never tire of hearing your nectar.

English Translation Of Sri Shankaracharya’s Sanskrit Commentary By Swami Gambirananda

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