मच्चित्ता मद्गतप्राणा बोधयन्तः परस्परम्‌ ।कथयन्तश्च मां नित्यं तुष्यन्ति च रमन्ति च ॥
मच्चित्ता मद्गतप्राणा बोधयन्तः परस्परम्‌ ।कथयन्तश्च मां नित्यं तुष्यन्ति च रमन्ति च ॥

मच्चित्ता मद्गतप्राणा बोधयन्त: परस्परम् |
कथयन्तश्च मां नित्यं तुष्यन्ति च रमन्ति च || 9||

mach-chittā mad-gata-prāṇā bodhayantaḥ parasparam
kathayantaśh cha māṁ nityaṁ tuṣhyanti cha ramanti cha

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भावार्थ:

निरंतर मुझमें मन लगाने वाले और मुझमें ही प्राणों को अर्पण करने वाले (मुझ वासुदेव के लिए ही जिन्होंने अपना जीवन अर्पण कर दिया है उनका नाम मद्गतप्राणाः है।) भक्तजन मेरी भक्ति की चर्चा के द्वारा आपस में मेरे प्रभाव को जानते हुए तथा गुण और प्रभाव सहित मेरा कथन करते हुए ही निरंतर संतुष्ट होते हैं और मुझ वासुदेव में ही निरंतर रमण करते हैं॥9॥

Translation

With their minds fixed on me and their lives surrendered to me, my devotees remain ever contented in me. They derive great satisfaction and bliss in enlightening one another about me, and conversing about my glories.

English Translation Of Sri Shankaracharya’s Sanskrit Commentary By Swami Gambirananda

See also  Bhagavad Gita: Chapter 10, Verse 24

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