कस्माच्च ते न नमेरन्महात्मन्‌ गरीयसे ब्रह्मणोऽप्यादिकर्त्रे।अनन्त देवेश जगन्निवास त्वमक्षरं सदसत्तत्परं यत्‌ ॥
कस्माच्च ते न नमेरन्महात्मन्‌ गरीयसे ब्रह्मणोऽप्यादिकर्त्रे।अनन्त देवेश जगन्निवास त्वमक्षरं सदसत्तत्परं यत्‌ ॥

कस्माच्च ते न नमेरन्महात्मन्
गरीयसे ब्रह्मणोऽप्यादिकर्त्रे |
अनन्त देवेश जगन्निवास
त्वमक्षरं सदसतत्परं यत् || 37||

kasmāch cha te na nameran mahātman
garīyase brahmaṇo ’py ādi-kartre
ananta deveśha jagan-nivāsa
tvam akṣharaṁ sad-asat tat paraṁ yat

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भावार्थ:

हे महात्मन्‌! ब्रह्मा के भी आदिकर्ता और सबसे बड़े आपके लिए वे कैसे नमस्कार न करें क्योंकि हे अनन्त! हे देवेश! हे जगन्निवास! जो सत्‌, असत्‌ और उनसे परे अक्षर अर्थात सच्चिदानन्दघन ब्रह्म है, वह आप ही हैं॥37॥

Translation

O Great one, who are even greater than Brahma, the original creator, why should they not bow to you? O limitless One, O Lord of the devatās, O Refuge of the universe, you are the imperishable reality beyond both the manifest and the non-manifest.

English Translation Of Sri Shankaracharya’s Sanskrit Commentary By Swami Gambirananda

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