19 (11), Bhagavad Gita: Chapter 13, Verse 19
19 (11), Bhagavad Gita: Chapter 13, Verse 19

इति क्षेत्रं तथा ज्ञानं ज्ञेयं चोक्तं समासत: |
मद्भक्त एतद्विज्ञाय मद्भावायोपपद्यते || 19||

iti kṣhetraṁ tathā jñānaṁ jñeyaṁ choktaṁ samāsataḥ
mad-bhakta etad vijñāya mad-bhāvāyopapadyate

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भावार्थ:

इस प्रकार क्षेत्र (श्लोक 5-6 में विकार सहित क्षेत्र का स्वरूप कहा है) तथा ज्ञान (श्लोक 7 से 11 तक ज्ञान अर्थात ज्ञान का साधन कहा है।) और जानने योग्य परमात्मा का स्वरूप (श्लोक 12 से 17 तक ज्ञेय का स्वरूप कहा है) संक्षेप में कहा गया। मेरा भक्त इसको तत्व से जानकर मेरे स्वरूप को प्राप्त होता है॥18॥

Translation

I have thus revealed to you the nature of the field, the meaning of knowledge, and the object of knowledge. Only My devotees can understand this in reality, and by doing so, they attain My divine nature

English Translation Of Sri Shankaracharya’s Sanskrit Commentary By Swami Gambirananda

See also  Bhagavad Gita: Chapter 17, Verse 25

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