20 (14), Bhagavad Gita: Chapter 14, Verse 20
20 (14), Bhagavad Gita: Chapter 14, Verse 20

गुणानेतानतीत्य त्रीन्देही देहसमुद्भवान् |
जन्ममृत्युजरादु:खैर्विमुक्तोऽमृतमश्रुते || 20||

guṇān etān atītya trīn dehī deha-samudbhavān
janma-mṛityu-jarā-duḥkhair vimukto ’mṛitam aśhnute

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भावार्थ:

ह पुरुष शरीर की (बुद्धि, अहंकार और मन तथा पाँच ज्ञानेन्द्रियाँ, पाँच कर्मेन्द्रियाँ, पाँच भूत, पाँच इन्द्रियों के विषय- इस प्रकार इन तेईस तत्त्वों का पिण्ड रूप यह स्थूल शरीर प्रकृति से उत्पन्न होने वाले गुणों का ही कार्य है, इसलिए इन तीनों गुणों को इसी की उत्पत्ति का कारण कहा है) उत्पत्ति के कारणरूप इन तीनों गुणों को उल्लंघन करके जन्म, मृत्यु, वृद्धावस्था और सब प्रकार के दुःखों से मुक्त हुआ परमानन्द को प्राप्त होता है॥20॥

Translation

By transcending the three modes of material nature associated with the body, one becomes free from birth, death, disease, old age, and misery, and attains immortality.

English Translation Of Sri Shankaracharya’s Sanskrit Commentary By Swami Gambirananda

See also  Bhagavad Gita: Chapter 18, Verse 42

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