26 (11), Bhagavad Gita: Chapter 14, Verse 26
26 (11), Bhagavad Gita: Chapter 14, Verse 26

मां च योऽव्यभिचारेण भक्तियोगेन सेवते |
स गुणान्समतीत्यैतान्ब्रह्मभूयाय कल्पते || 26||

māṁ cha yo ’vyabhichāreṇa bhakti-yogena sevate
sa guṇān samatītyaitān brahma-bhūyāya kalpate

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भावार्थ:

और जो पुरुष अव्यभिचारी भक्ति योग (केवल एक सर्वशक्तिमान परमेश्वर वासुदेव भगवान को ही अपना स्वामी मानता हुआ, स्वार्थ और अभिमान को त्याग कर श्रद्धा और भाव सहित परम प्रेम से निरन्तर चिन्तन करने को ‘अव्यभिचारी भक्तियोग’ कहते हैं) द्वारा मुझको निरन्तर भजता है, वह भी इन तीनों गुणों को भलीभाँति लाँघकर सच्चिदानन्दघन ब्रह्म को प्राप्त होने के लिए योग्य बन जाता है॥26॥

Translation

Those who serve me with unalloyed devotion rise above the three modes of material nature and come to the level of Brahman.

English Translation Of Sri Shankaracharya’s Sanskrit Commentary By Swami Gambirananda

See also  Bhagavad Gita: Chapter 9, Verse 15

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