20 (19), Bhagavad Gita: Chapter 17, Verse 20
20 (19), Bhagavad Gita: Chapter 17, Verse 20

दातव्यमिति यद्दानं दीयतेऽनुपकारिणे |
देशे काले च पात्रे च तद्दानं सात्विकं स्मृतम् || 20||

dātavyam iti yad dānaṁ dīyate ‘nupakāriṇe
deśhe kāle cha pātre cha tad dānaṁ sāttvikaṁ smṛitam

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भावार्थ:

दान देना ही कर्तव्य है- ऐसे भाव से जो दान देश तथा काल (जिस देश-काल में जिस वस्तु का अभाव हो, वही देश-काल, उस वस्तु द्वारा प्राणियों की सेवा करने के लिए योग्य समझा जाता है।) और पात्र के (भूखे, अनाथ, दुःखी, रोगी और असमर्थ तथा भिक्षुक आदि तो अन्न, वस्त्र और ओषधि एवं जिस वस्तु का जिसके पास अभाव हो, उस वस्तु द्वारा सेवा करने के लिए योग्य पात्र समझे जाते हैं और श्रेष्ठ आचरणों वाले विद्वान्‌ ब्राह्मणजन धनादि सब प्रकार के पदार्थों द्वारा सेवा करने के लिए योग्य पात्र समझे जाते हैं।) प्राप्त होने पर उपकार न करने वाले के प्रति दिया जाता है, वह दान सात्त्विक कहा गया है ॥20॥

Translation

Charity given to a worthy person simply because it is right to give, without consideration of anything in return, at the proper time and in the proper place, is stated to be in the mode of goodness.

English Translation Of Sri Shankaracharya’s Sanskrit Commentary By Swami Gambirananda

See also  HYMN XI. Agni - Rig Veda – Book 6

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