62 (1), Bhagavad Gita: Chapter 18, Verse 62
62 (1), Bhagavad Gita: Chapter 18, Verse 62

तमेव शरणं गच्छ सर्वभावेन भारत |
तत्प्रसादात्परां शान्तिं स्थानं प्राप्स्यसि शाश्वतम्

tam eva śharaṇaṁ gachchha sarva-bhāvena bhārata
tat-prasādāt parāṁ śhāntiṁ sthānaṁ prāpsyasi śhāśhvatam

भावार्थ:

हे भारत! तू सब प्रकार से उस परमेश्वर की ही शरण में (लज्जा, भय, मान, बड़ाई और आसक्ति को त्यागकर एवं शरीर और संसार में अहंता, ममता से रहित होकर एक परमात्मा को ही परम आश्रय, परम गति और सर्वस्व समझना तथा अनन्य भाव से अतिशय श्रद्धा, भक्ति और प्रेमपूर्वक निरंतर भगवान के नाम, गुण, प्रभाव और स्वरूप का चिंतन करते रहना एवं भगवान का भजन, स्मरण करते हुए ही उनके आज्ञा अनुसार कर्तव्य कर्मों का निःस्वार्थ भाव से केवल परमेश्वर के लिए आचरण करना यह ‘सब प्रकार से परमात्मा के ही शरण’ होना है) जा। उस परमात्मा की कृपा से ही तू परम शांति को तथा सनातन परमधाम को प्राप्त होगा॥62॥

Translation

Surrender exclusively unto him with your whole being, O Bharat. By his grace, you will attain perfect peace and the eternal abode.

English Translation Of Sri Shankaracharya’s Sanskrit Commentary By Swami Gambirananda

18.62 Gaccha saranam, take refuge; tam eva, in Him, the Lord alone; sarva-bhavena, with your whole being, for getting rid of your mundane sufferings, O scion of the Bharata dynasty. Tat-prasadat, through His grace, through God’s grace; prapsyasi, you will attain; param, the supreme; santim, Peace, the highest Tranillity; and the sasvatam, eternal; sthanam, Abode, the supreme State of Mine who am Visnu.

See also  Lodurva Jain Temple, Jaisalmer

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