देही नित्यमवध्योऽयं देहे सर्वस्य भारत ।तस्मात्सर्वाणि भूतानि न त्वं शोचितुमर्हसि ॥
देही नित्यमवध्योऽयं देहे सर्वस्य भारत ।तस्मात्सर्वाणि भूतानि न त्वं शोचितुमर्हसि ॥

देही नित्यमवध्योऽयं देहे सर्वस्य भारत |
तस्मात्सर्वाणि भूतानि न त्वं शोचितुमर्हसि || 30|

dehī nityam avadhyo ’yaṁ dehe sarvasya bhārata
tasmāt sarvāṇi bhūtāni na tvaṁ śhochitum arhasi

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भावार्थ:

हे अर्जुन! यह आत्मा सबके शरीर में सदा ही अवध्य (जिसका वध नहीं किया जा सके) है। इस कारण सम्पूर्ण प्राणियों के लिए तू शोक करने योग्य नहीं है॥30॥

Translation

O Arjun, the soul that dwells within the body is immortal; therefore, you should not mourn for anyone.

English Translation Of Sri Shankaracharya’s Sanskrit Commentary By Swami Gambirananda

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