देवान्भावयतानेन ते देवा भावयन्तु वः । परस्परं भावयन्तः श्रेयः परमवाप्स्यथ ॥
देवान्भावयतानेन ते देवा भावयन्तु वः । परस्परं भावयन्तः श्रेयः परमवाप्स्यथ ॥

देवान्भावयतानेन ते देवा भावयन्तु व: |
परस्परं भावयन्त: श्रेय: परमवाप्स्यथ || 11||

devān bhāvayatānena te devā bhāvayantu vaḥ
parasparaṁ bhāvayantaḥ śhreyaḥ param avāpsyatha

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भावार्थ:

तुम लोग इस यज्ञ द्वारा देवताओं को उन्नत करो और वे देवता तुम लोगों को उन्नत करें। इस प्रकार निःस्वार्थ भाव से एक-दूसरे को उन्नत करते हुए तुम लोग परम कल्याण को प्राप्त हो जाओगे॥11॥

Translation

By your sacrifices the celestial gods will be pleased, and by cooperation between humans and the celestial gods, prosperity will reign for all.

English Translation Of Sri Shankaracharya’s Sanskrit Commentary By Swami Gambirananda

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