अन्नाद्भवन्ति भूतानि पर्जन्यादन्नसम्भवः । यज्ञाद्भवति पर्जन्यो यज्ञः कर्मसमुद्भवः ॥
अन्नाद्भवन्ति भूतानि पर्जन्यादन्नसम्भवः । यज्ञाद्भवति पर्जन्यो यज्ञः कर्मसमुद्भवः ॥

अन्नाद्भवन्ति भूतानि पर्जन्यादन्नसम्भव: |
यज्ञाद्भवति पर्जन्यो यज्ञ: कर्मसमुद्भव: || 14||

annād bhavanti bhūtāni parjanyād anna-sambhavaḥ
yajñād bhavati parjanyo yajñaḥ karma-samudbhavaḥ

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भावार्थ:

यज्ञ से बचे हुए अन्न को खाने वाले श्रेष्ठ पुरुष सब पापों से मुक्त हो जाते हैं और जो पापी लोग अपना शरीर-पोषण करने के लिए ही अन्न पकाते हैं, वे तो पाप को ही खाते हैं॥13॥

Translation

All living beings subsist on food, and food is produced by rains. Rains come from the performance of sacrifice, and sacrifice is produced by the performance of prescribed duties.

English Translation Of Sri Shankaracharya’s Sanskrit Commentary By Swami Gambirananda

See also  யுத்த காண்டம் - 1. கடல் காண் படலம்

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