न कर्मणामनारंभान्नैष्कर्म्यं पुरुषोऽश्नुते । न च सन्न्यसनादेव सिद्धिं समधिगच्छति ॥
न कर्मणामनारंभान्नैष्कर्म्यं पुरुषोऽश्नुते । न च सन्न्यसनादेव सिद्धिं समधिगच्छति ॥

न हि कश्चित्क्षणमपि जातु तिष्ठत्यकर्मकृत् |
कार्यते ह्यवश: कर्म सर्व: प्रकृतिजैर्गुणै: || 5||

na hi kaśhchit kṣhaṇam api jātu tiṣhṭhatyakarma-kṛit
kāryate hyavaśhaḥ karma sarvaḥ prakṛiti-jair guṇaiḥ

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भावार्थ:

निःसंदेह कोई भी मनुष्य किसी भी काल में क्षणमात्र भी बिना कर्म किए नहीं रहता क्योंकि सारा मनुष्य समुदाय प्रकृति जनित गुणों द्वारा परवश हुआ कर्म करने के लिए बाध्य किया जाता है॥5॥

Translation

There is no one who can remain without action even for a moment. Indeed, all beings are compelled to act by their qualities born of material nature (the three guṇas).

English Translation Of Sri Shankaracharya’s Sanskrit Commentary By Swami Gambirananda

See also  Bhagavad Gita: Chapter 3, Verse 13

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