गतसङ्‍गस्य मुक्तस्य ज्ञानावस्थितचेतसः । यज्ञायाचरतः कर्म समग्रं प्रविलीयते ॥
गतसङ्‍गस्य मुक्तस्य ज्ञानावस्थितचेतसः । यज्ञायाचरतः कर्म समग्रं प्रविलीयते ॥

गतसङ्गस्य मुक्तस्य ज्ञानावस्थितचेतस: |
यज्ञायाचरत: कर्म समग्रं प्रविलीयते || 23||

gata-saṅgasya muktasya jñānāvasthita-chetasaḥ
yajñāyācharataḥ karma samagraṁ pravilīyate

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भावार्थ:

जिसकी आसक्ति सर्वथा नष्ट हो गई है, जो देहाभिमान और ममता से रहित हो गया है, जिसका चित्त निरन्तर परमात्मा के ज्ञान में स्थित रहता है- ऐसा केवल यज्ञसम्पादन के लिए कर्म करने वाले मनुष्य के सम्पूर्ण कर्म भलीभाँति विलीन हो जाते हैं॥23॥

Translation

They are released from the bondage of material attachments and their intellect is established in divine knowledge. Since they perform all actions as a sacrifice (to God), they are freed from all karmic reactions.

English Translation Of Sri Shankaracharya’s Sanskrit Commentary By Swami Gambirananda

See also  Bhagavad Gita: Chapter 18, Verse 39

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