अपरे नियताहाराः प्राणान्प्राणेषु जुह्वति । सर्वेऽप्येते यज्ञविदो यज्ञक्षपितकल्मषाः ॥
अपरे नियताहाराः प्राणान्प्राणेषु जुह्वति । सर्वेऽप्येते यज्ञविदो यज्ञक्षपितकल्मषाः ॥

अपरे नियताहारा: प्राणान्प्राणेषु जुह्वति |
सर्वेऽप्येते यज्ञविदो यज्ञक्षपितकल्मषा: || 30||

apare niyatāhārāḥ prāṇān prāṇeṣhu juhvati
sarve ’pyete yajña-vido yajña-kṣhapita-kalmaṣhāḥ

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भावार्थ:

अपान की गति को रोककर प्राणों को प्राणों में ही हवन किया करते हैं। ये सभी साधक यज्ञों द्वारा पापों का नाश कर देने वाले और यज्ञों को जानने वाले हैं॥30॥

Translation

Yet others curtail their food intake and offer the breath into the life-energy as sacrifice. All these knowers of sacrifice are cleansed of their impurities as a result of such performances.

English Translation Of Sri Shankaracharya’s Sanskrit Commentary By Swami Gambirananda

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