यज्ज्ञात्वा न पुनर्मोहमेवं यास्यसि पाण्डव । येन भुतान्यशेषेण द्रक्ष्यस्यात्मन्यथो मयि ॥
यज्ज्ञात्वा न पुनर्मोहमेवं यास्यसि पाण्डव । येन भुतान्यशेषेण द्रक्ष्यस्यात्मन्यथो मयि ॥

यज्ज्ञात्वा न पुनर्मोहमेवं यास्यसि पाण्डव |
येन भूतान्यशेषेण द्रक्ष्यस्यात्मन्यथो मयि || 35||

yaj jñātvā na punar moham evaṁ yāsyasi pāṇḍava
yena bhūtānyaśheṣheṇa drakṣhyasyātmanyatho mayi

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भावार्थ:

जिसको जानकर फिर तू इस प्रकार मोह को नहीं प्राप्त होगा तथा हे अर्जुन! जिस ज्ञान द्वारा तू सम्पूर्ण भूतों को निःशेषभाव से पहले अपने में (गीता अध्याय 6 श्लोक 29 में देखना चाहिए।) और पीछे मुझ सच्चिदानन्दघन परमात्मा में देखेगा। (गीता अध्याय 6 श्लोक 30 में देखना चाहिए।)॥35॥

Translation

Following this path and having achieved enlightenment from a Guru, O Arjun, you will no longer fall into delusion. In the light of that knowledge, you will see that all living beings are but parts of the Supreme, and are within me.

English Translation Of Sri Shankaracharya’s Sanskrit Commentary By Swami Gambirananda

See also  Bhagavad Gita: Chapter 2, Verse 26

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