सन्न्यासस्तु महाबाहो दुःखमाप्तुमयोगतः । योगयुक्तो मुनिर्ब्रह्म नचिरेणाधिगच्छति ॥
सन्न्यासस्तु महाबाहो दुःखमाप्तुमयोगतः । योगयुक्तो मुनिर्ब्रह्म नचिरेणाधिगच्छति ॥

संन्यासस्तु महाबाहो दु:खमाप्तुमयोगत: |
योगयुक्तो मुनिर्ब्रह्म नचिरेणाधिगच्छति || 6||

sannyāsas tu mahā-bāho duḥkham āptum ayogataḥ
yoga-yukto munir brahma na chireṇādhigachchhati

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भावार्थ:

परन्तु हे अर्जुन! कर्मयोग के बिना संन्यास अर्थात्‌ मन, इन्द्रिय और शरीर द्वारा होने वाले सम्पूर्ण कर्मों में कर्तापन का त्याग प्राप्त होना कठिन है और भगवत्स्वरूप को मनन करने वाला कर्मयोगी परब्रह्म परमात्मा को शीघ्र ही प्राप्त हो जाता है॥6॥

Translation

Perfect renunciation (karm sanyās) is difficult to attain without performing work in devotion (karm yog), O mighty-armed Arjun, but the sage who is adept in karm yog quickly attains the Supreme.

English Translation Of Sri Shankaracharya’s Sanskrit Commentary By Swami Gambirananda

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