( सांख्ययोगी और कर्मयोगी के लक्षण और उनकी महिमा ) योगयुक्तो विशुद्धात्मा विजितात्मा जितेन्द्रियः । सर्वभूतात्मभूतात्मा कुर्वन्नपि न लिप्यते ॥
( सांख्ययोगी और कर्मयोगी के लक्षण और उनकी महिमा ) योगयुक्तो विशुद्धात्मा विजितात्मा जितेन्द्रियः । सर्वभूतात्मभूतात्मा कुर्वन्नपि न लिप्यते ॥

योगयुक्तो विशुद्धात्मा विजितात्मा जितेन्द्रिय: |
सर्वभूतात्मभूतात्मा कुर्वन्नपि न लिप्यते || 7||

yoga-yukto viśhuddhātmā vijitātmā jitendriyaḥ
sarva-bhūtātma-bhūtātmā kurvann api na lipyate

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भावार्थ:

जिसका मन अपने वश में है, जो जितेन्द्रिय एवं विशुद्ध अन्तःकरण वाला है और सम्पूर्ण प्राणियों का आत्मरूप परमात्मा ही जिसका आत्मा है, ऐसा कर्मयोगी कर्म करता हुआ भी लिप्त नहीं होता॥7॥

Translation

The karm yogis, who are of purified intellect, and who control the mind and senses, see the Soul of all souls in every living being. Though performing all kinds of actions, they are never entangled.

English Translation Of Sri Shankaracharya’s Sanskrit Commentary By Swami Gambirananda

See also  Geeta Bhawan Temple, Moga

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