यं सन्न्यासमिति प्राहुर्योगं तं विद्धि पाण्डव । न ह्यसन्न्यस्तसङ्‍कल्पो योगी भवति कश्चन ॥
यं सन्न्यासमिति प्राहुर्योगं तं विद्धि पाण्डव । न ह्यसन्न्यस्तसङ्‍कल्पो योगी भवति कश्चन ॥

यं संन्यासमिति प्राहुर्योगं तं विद्धि पाण्डव |
न ह्यसंन्यस्तसङ्कल्पो योगी भवति कश्चन || 2||

yaṁ sannyāsam iti prāhur yogaṁ taṁ viddhi pāṇḍava
na hyasannyasta-saṅkalpo yogī bhavati kaśhchana

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भावार्थ:

हे अर्जुन! जिसको संन्यास (गीता अध्याय 3 श्लोक 3 की टिप्पणी में इसका खुलासा अर्थ लिखा है।) ऐसा कहते हैं, उसी को तू योग (गीता अध्याय 3 श्लोक 3 की टिप्पणी में इसका खुलासा अर्थ लिखा है।) जान क्योंकि संकल्पों का त्याग न करने वाला कोई भी पुरुष योगी नहीं होता॥2॥

Translation

What is known as sanyās is non-different from Yog, for none become yogis without renouncing worldly desires.

English Translation Of Sri Shankaracharya’s Sanskrit Commentary By Swami Gambirananda

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