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तं विद्याद् दु:खसंयोगवियोगं योगसञ्ज्ञितम् |
स निश्चयेन योक्तव्यो योगोऽनिर्विण्णचेतसा || 23||
taṁ vidyād duḥkha-sanyoga-viyogaṁ yogasaṅjñitam
sa niśhchayena yoktavyo yogo ’nirviṇṇa-chetasā
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भावार्थ:
जो दुःखरूप संसार के संयोग से रहित है तथा जिसका नाम योग है, उसको जानना चाहिए। वह योग न उकताए हुए अर्थात धैर्य और उत्साहयुक्त चित्त से निश्चयपूर्वक करना कर्तव्य है॥23॥
Translation
That state of severance from union with misery is known as Yog. This Yog should be resolutely practiced with determination free from pessimism.
English Translation Of Sri Shankaracharya’s Sanskrit Commentary By Swami Gambirananda