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श्रीभगवानुवाच |
असंशयं महाबाहो मनो दुर्निग्रहं चलम् |
अभ्यासेन तु कौन्तेय वैराग्येण च गृह्यते || 35||
śhrī bhagavān uvācha
asanśhayaṁ mahā-bāho mano durnigrahaṁ chalam
abhyāsena tu kaunteya vairāgyeṇa cha gṛihyate
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भावार्थ:
श्री भगवान बोले- हे महाबाहो! निःसंदेह मन चंचल और कठिनता से वश में होने वाला है। परन्तु हे कुंतीपुत्र अर्जुन! यह अभ्यास (गीता अध्याय 12 श्लोक 9 की टिप्पणी में इसका विस्तार देखना चाहिए।) और वैराग्य से वश में होता है॥35॥
Translation
Lord Krishna said: O mighty-armed son of Kunti, what you say is correct; the mind is indeed very difficult to restrain. But by practice and detachment, it can be controlled.
English Translation Of Sri Shankaracharya’s Sanskrit Commentary By Swami Gambirananda