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बन्धुरात्मात्मनस्तस्य येनात्मैवात्मना जित: |
अनात्मनस्तु शत्रुत्वे वर्ते तात्मैव शत्रुवत् || 6||
bandhur ātmātmanas tasya yenātmaivātmanā jitaḥ
anātmanas tu śhatrutve vartetātmaiva śhatru-vat
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भावार्थ:
जिस जीवात्मा द्वारा मन और इन्द्रियों सहित शरीर जीता हुआ है, उस जीवात्मा का तो वह आप ही मित्र है और जिसके द्वारा मन तथा इन्द्रियों सहित शरीर नहीं जीता गया है, उसके लिए वह आप ही शत्रु के सदृश शत्रुता में बर्तता है॥6॥
Translation
For those who have conquered the mind, it is their friend. For those who have failed to do so, the mind works like an enemy.
English Translation Of Sri Shankaracharya’s Sanskrit Commentary By Swami Gambirananda