उदाराः सर्व एवैते ज्ञानी त्वात्मैव मे मतम्‌ ।आस्थितः स हि युक्तात्मा मामेवानुत्तमां गतिम्‌ ॥
उदाराः सर्व एवैते ज्ञानी त्वात्मैव मे मतम्‌ ।आस्थितः स हि युक्तात्मा मामेवानुत्तमां गतिम्‌ ॥

उदारा: सर्व एवैते ज्ञानी त्वात्मैव मे मतम् |
आस्थित: स हि युक्तात्मा मामेवानुत्तमां गतिम् || 18||

udārāḥ sarva evaite jñānī tvātmaiva me matam
āsthitaḥ sa hi yuktātmā mām evānuttamāṁ gatim

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भावार्थ:

ये सभी उदार हैं, परन्तु ज्ञानी तो साक्षात्‌ मेरा स्वरूप ही है- ऐसा मेरा मत है क्योंकि वह मद्गत मन-बुद्धिवाला ज्ञानी भक्त अति उत्तम गतिस्वरूप मुझमें ही अच्छी प्रकार स्थित है॥18॥

Translation

Indeed, all those who are devoted to me are indeed noble. But those in knowledge, who are of steadfast mind, whose intellect is merged in me, and who have made me alone as their supreme goal, I consider as my very self.

English Translation Of Sri Shankaracharya’s Sanskrit Commentary By Swami Gambirananda

See also  Bhagavad Gita: Chapter 6, Verse 40

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