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मनुष्याणां सहस्रेषु कश्चिद्यतति सिद्धये |
यततामपि सिद्धानां कश्चिन्मां वेत्ति तत्वत: || 3||
manuṣhyāṇāṁ sahasreṣhu kaśhchid yatati siddhaye
yatatām api siddhānāṁ kaśhchin māṁ vetti tattvataḥ
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भावार्थ:
हजारों मनुष्यों में कोई एक मेरी प्राप्ति के लिए यत्न करता है और उन यत्न करने वाले योगियों में भी कोई एक मेरे परायण होकर मुझको तत्व से अर्थात यथार्थ रूप से जानता है॥3॥
Translation
Amongst thousands of persons, hardly one strives for perfection; and amongst those who have achieved perfection, hardly one knows me in truth.
English Translation Of Sri Shankaracharya’s Sanskrit Commentary By Swami Gambirananda