ज्ञानयज्ञेन चाप्यन्ते यजन्तो मामुपासते।एकत्वेन पृथक्त्वेन बहुधा विश्वतोमुखम्।।
ज्ञानयज्ञेन चाप्यन्ते यजन्तो मामुपासते।एकत्वेन पृथक्त्वेन बहुधा विश्वतोमुखम्।।

ज्ञानयज्ञेन चाप्यन्ये यजन्तो मामुपासते |
एकत्वेन पृथक्त्वेन बहुधा विश्वतोमुखम् || 15||

jñāna-yajñena chāpyanye yajanto mām upāsate
ekatvena pṛithaktvena bahudhā viśhvato-mukham

Audio

भावार्थ:

दूसरे ज्ञानयोगी मुझ निर्गुण-निराकार ब्रह्म का ज्ञानयज्ञ द्वारा अभिन्नभाव से पूजन करते हुए भी मेरी उपासना करते हैं और दूसरे मनुष्य बहुत प्रकार से स्थित मुझ विराट स्वरूप परमेश्वर की पृथक भाव से उपासना करते हैं।।15।।

Translation

Others, engaging in the yajña of cultivating knowledge, worship Me by many methods. Some see Me as undifferentiated oneness that is non-different from them, while others see Me as separate from them. Still others worship Me in the infinite manifestations of My cosmic form.

English Translation Of Sri Shankaracharya’s Sanskrit Commentary By Swami Gambirananda

See also  Bhagavad Gita: Chapter 11, Verse 45

Browse Temples in India

Recent Posts