( जगत की उत्पत्ति का विषय ) सर्वभूतानि कौन्तेय प्रकृतिं यान्ति मामिकाम्‌ । कल्पक्षये पुनस्तानि कल्पादौ विसृजाम्यहम्‌ ॥
( जगत की उत्पत्ति का विषय ) सर्वभूतानि कौन्तेय प्रकृतिं यान्ति मामिकाम्‌ । कल्पक्षये पुनस्तानि कल्पादौ विसृजाम्यहम्‌ ॥

सर्वभूतानि कौन्तेय प्रकृतिं यान्ति मामिकाम् |
कल्पक्षये पुनस्तानि कल्पादौ विसृजाम्यहम् || 7||

sarva-bhūtāni kaunteya prakṛitiṁ yānti māmikām
kalpa-kṣhaye punas tāni kalpādau visṛijāmyaham

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भावार्थ:

हे अर्जुन! कल्पों के अन्त में सब भूत मेरी प्रकृति को प्राप्त होते हैं अर्थात्‌ प्रकृति में लीन होते हैं और कल्पों के आदि में उनको मैं फिर रचता हूँ॥7॥

Translation

At the end of one kalp, all living beings merge into My primordial material energy. At the beginning of the next creation,

English Translation Of Sri Shankaracharya’s Sanskrit Commentary By Swami Gambirananda

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