. गणेश आया रिद्धि सिद्धि ल्याया, भरया भण्डारा रहसी ओ राम,-मिल्या सन्त उपदेशी, गुरु मोंयले री बाताँ Lyrics

ganesh aaya vriddh siddh laya

. गणेश आया रिद्धि सिद्धि ल्याया, भरया भण्डारा रहसी ओ राम,-मिल्या सन्त उपदेशी, गुरु मोंयले री बाताँ Lyrics in Hindi

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गणेश आया रिद्धि सिद्धि ल्याया, भरया भण्डारा रहसी ओ राम,-मिल्या सन्त उपदेशी, गुरु मोंयले री बाताँ कहसी ,ओ राम म्हान झीणी झीणी बाता कहसी ॥टेर॥ हल्दी का रंग पीला होसी, केशर कद बण ज्यासी ॥॥ कोई खरीद काँसी, पीतल, सन्त शब्द लिख लेसी ॥॥ खार समद बीच अमृत भेरी, सन्त घड़ो भर लेसी ॥॥ खीर खाण्ड का अमृत भोजन, सन्त नीवाला लेसी ॥॥ कागा कँ गल पैप माला, हँसलो कद बण ज्यासी ॥॥ ऊँचे टीले धजा फरुके, चौड़े तकिया रहसी ॥॥ साध-सन्त रल भेला बैठ, नुगरा न्यारा रहसी ॥॥ शरण मछेन्दर जती गोरख बोल्या, टेक भेष की रहसी ॥॥
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सेवा म्हारी मानो गणपत, पूजा म्हारी मानो ।        खोलो म्हारे हिवडे रा ताला जी ॥ टेर ॥ जल भी चढ़ाऊँ देवा, कोनी रे अछूता ।        कोई जलवा ने मछल्या बिगाड्या जी ॥ ॥ चन्दन चढ़ाऊँ देवा, कोनी रे अछूता ।        चन्दन ने सर्प बिगाड्या जी ॥ ॥ फूल चढ़ाऊँ देवा, कोनी रे अछूता ।        फूलड़ा ने भँवरा बिगाड्या जी ॥ ॥ दूधड़ला चढ़ाऊँ देवा, कोनी रे अछूता ।        दूधड़ला ने बाछड़ा बिगाड्या जी ॥ ॥ काया भी चढ़ाऊँ देवा, कोनी रे अछूता ।        काया न करमा बिगाड्या जी ॥ ॥ पाँच चरण जति गोरक्ष बोल्या ।         साँई तेरा नाम अछूता जी ॥ ॥
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श्री गणेश काटो कलेश, नित्य हमेश, ध्यावाँ थाने अरजी कराँ दरबार में ॥ टेर ॥अरजी दरबार में, करता सरकार में, श्री गणेश, काटो कलेश ॥ ॥ दूँद दुँदाला, सूँड सुन्डाला-मोटा मूँड, लम्बी सूंड ।        फरकै दूंद, ध्यावाँ थानै अरजी करां दरबार में ॥ ॥ पुष्पन माला, नयन विशाला-चढै सिन्दूर, बरसे नूर ।        दुश्मन दूर, ध्यावाँ थाने अरजी करां दरबार में ॥ ॥ रिद्ध सिद्ध नारी, लागै पियारी, रिद्ध सिद्ध नार, भरो भण्डार ।        करो कल्याण, ध्यावाँ थाने अरजी करां दरबार में ॥ ॥ दास मोती सिंह, तेरा यश गावै, गुरु चरणा में शीश नवावै ।        दो वरदान, मागूं दान, सेवा अपार, ध्यावां थाने अरजी ॥ ॥
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धमक पधारो गणपति- ओ निज मन्दिरिये में धमक पधारो जी ॥ टेर ॥ ब्रह्मा भी आये म्हारे, विष्णु भी आये जी ।        सँगड़े में ल्याया सरस्वती ॥ ॥ शिवजी भी आये संग नाँदे न ल्याये जी ।         संगड़े में ल्याये पारवती ॥ ॥ राम भी आये म्हारे लिछमन भी आए जी ।        संगड़े में ल्याये सिया सती ॥ ॥ कौरव भी आए म्हारे पाण्डव भी आए जी ।        संगड़े में ल्याये द्रोपदी ॥ ॥ तैंतीस करोड़ देवी-देवता भी आए जी ।        संगड़े में ल्याये हनुमान जती ॥ ॥ कहत कबीर सुनो भाई साधो जी ।        रिद्धि-सिद्धि ल्याये गणपति ॥ ॥
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आव सखी देख गणपत घूम है ॥टेर॥        लम्बी सूँड मतवाला जी , घृत, सिन्दुर थार मस्तक सोहे देवा,शिव-शक्ति का बाला हो गणपत, देख भया मतवाला जी ॥॥ राजा भी सुमर थान, परजा भी सुमर है        सुमर है जोगी जटावाला जी । उठ सँवरी दोपहरी तान सुमर देवा, रिद्धि सिद्धि देवणवाला ओ गणपत ॥॥ ओढ़ पीत पीतम्बर सोहे देवा,        गल फूलंडा री फूल मालाजी । सात सखी रल मंगल गाव देवा, बुद्धि को देवण हाला जो गणपत ॥॥ नात गुलाब मिल्या, गुरु पूरा ,        हृदय में करियो उजाला जी ।भानीनाथ शरण सतगुरु की देवा,खोल्या भ्रम का तIलI ओ गणपत ॥॥

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तेरा भगत करे अरदास, ज्ञान मोहे दीज्यो हे काली ॥टेर॥
माली कै नै बाग लगायो, पर्वत हरियाली, तेरे हाथ ने पुष्पन की माला, द्वार खड्या माली ॥॥  जरी का दुपट्टा चीर शीश पर सोहे जंगाली, तेरै नाकन में नकबेसर सोहे कर्ण फूल बाली ॥॥ सवा पहर के बीच भवन में खप्पर भर खाली, कर दुष्टन का नास भगत की करना रखवाली ॥॥ चाबत नगर पान होठ पर छाय रही लाली, तनै गावे मोतीलाल कालका कलकत्ते वाली ॥॥

मंगल की मूल भवनी शरणा तेरा है, शरणा तेरा है, आसरा तेरा है, शरणा तेरा है ॥टेर॥
मैया है ब्रह्मा की पुतरी, लेकर ज्ञान सवर्ग से उतरी, आज तेरी कथा बनाय देई सुथरी, प्रथम मनाया है ॥॥
 मैया भवन बणा जाली का, हार गूंथ ल्याया है माली का, हो ध्यान घर कलकत्ते वाली का, पुष्प चढ़ाया है ॥॥
मैया महिषासुर को मर्या, अपने बल से धरण पछाड्या, हो हाथ लिये खाण्डा दुघारा, असुर संघार्या है ॥॥
 कहता शंकर जटोली वाला, हरदम रटे गुरां की माला, हो खोल मेरे हृदय का ताला, विद्या बर पाया है ॥॥

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घट राखो अटल सुरती ने, दरसन कर निज भगवान का ॥टेर॥
 सतगुरु धोरे गया संतसंग में, गुरांजी भे दिया हरि रंग में । शबद बाण मर्या मेरे तन में, सैल लग्या ज्यूँ स्यार का ॥
 मेरा मन चेत्या भक्ति में ॥॥
 जबसे शबद सुण्या सतगरु का, खुल गया खिड़क मेरे काया मंदिर का ।मात पिता दरस्या नहीं घरका, दूत लेजा जमराज का ।
 तेरा कोई न संगी जगती में ॥॥
 नैन नासिका ध्यान संजोले, रमता राम निजर भरजोले ।बिन बतलाया तेरे घट में बोले, बेरो ले भीतर बाहर का ॥
 अब क्यूँ भटके भूली में ॥॥
 अमृतनाथजी रम गया सुन्न में, मुझको दीदार दिखा दिया छत में ।मद्यो मगन हो जा भजन में, रुप देख निराकार का ।
 अब क्या सांसा मुक्ति में ॥॥
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भजन मत भूलो एक घड़ी, शबद मत भूलो एक घड़ी ।काया पूतलो पल में जासी, सिर पर मौत खड़ी ॥टेर॥
 इण काया में लाल अमोलक, आगे करम कड़ी ।भँवर जाल में सब जीव सून्या, बिरला ने जाण पड़ी ॥॥
इण काया में दस दरवाजा, ऊपर खिड़क जड़ी ।गुरु गम कूँची से खोलो किवाड़ी, अधर धार जड़ी ॥॥
 सत की राड़ लड़ै सतसूरा, चढ्या बंक घाटी ।गगन मण्डल में भर्या भंडारा, तन का पाप कटी ॥॥
अखै नाम नै तोलण लाग्या, तोल्या घड़ी घड़ी ।अमृतनाथजी अमर घर पुग्या, सत की राड़ लड़ी ॥॥

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भजन बिना कोई न जागै रे, लगन बिना कोई न जागै रै।तेरा जनम जनम का पाप करेड़ा, रंग किस बिध लागे रै॥टेर॥
संता की संगत करी कोनी भँवरा, भरम कैयाँ भागै रै।राम नाम की सार कोनी जाणै, बाताँ मे आगै रै ॥॥
 या संसार काल वाली गीन्डी,टोरा लागे रै।गुरु गम चोट सही कोनी जावै, पगाँ ने लागे रै॥॥
 सत सुमिरण का सैल बणाले, संता सागे रै।नार सुषमणा राड़ लडै जद, जमड़ा भागै रै॥॥
 नाथ गुलाब सत संगत करले, संता सागे रै।भानीनाथ अरज कर गावै, सतगुराँजी के आगै रै ॥॥


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कायर सके ना झेल, फकीरी अलबेला को खेल॥टेर॥
ज्यूँ रण माँय लडे नर सूरा, अणियाँ झुक रहना सेल।गोली नाल जुजरबा चालै, सन्मुख लेवै झेल॥॥
सती पति संग नीसरी, अपने पिया के गैल।सुरत लगी अपने साहिब से, अग्नि काया बिच मेल॥॥
 अलल पक्षी ज्यूँ उलटा चाले, बांस भरत नट खेल। मेरु इक्कीस छेद गढ़ बंका, चढ़गी अगम के महल॥॥
 दो और एक रवे नहीं दूजा, आप आप को खेल। कहे सामर्थ कोई असल पिछाणै, लेवै गरीबी झेल॥॥

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बलिहारी बलिहारी म्हारे सतगुरुवां ने बलिहारी।बन्धन काट किया जीव मुक्ता, और सब विपत बिड़ारी॥टेर॥वाणी सुनत परस सुख उपज्या, दुर्मति गयी हमारी।करम-भरम का संशय मेट्या, दिया कपाट उधारी॥॥माया, ब्रह्म भेद समझाया, सोंह लिया विचारी।पूरण ब्रह्म कहे उर अंदर, काहे से देत विड़ारी॥॥मौं पर दया करो मेरा सतगुरु, अबके लिया उबारी।भव सागर से डूबत तार्या, ऐसा पर उपकारी॥॥गुरु दादू के चरण कमल पर, रखू शीश उतारी।और क्या ले आगे रखू, सादर भेट तिहारी॥॥


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कोई पीवो राम रस प्यासा, कोई पीवो राम रस प्यासा।गगन मण्डल में अली झरत है, उनमुन के घर बासा॥टेर॥शीश उतार धरै गुरु आगे, करै न तन की आशा।एसा मँहगा अमी बीकर है, छः ऋतु बारह मासा॥॥मोल करे सो छीके दूर से, तोलत छूटे बासा।जो पीवे सो जुग जुग जीवे, कब हूँ न होय बिनासा॥॥एंही रस काज भये नृप योगी, छोडया भोग बिलासा।सहज सिंहासन बैठे रहता, भस्ती रमाते उदासा॥॥गोरखनाथ, भरथरी पिया, सो ही कबीर अम्यासा।गुरु दादू परताप कछुयक पाया सुन्दर दासा॥॥



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पिंजरै वाली मैना, भजो ना सिया राम राम।भजो ना सिया राम राम, रटोना राधे श्याम श्याम॥टेर॥
 पाँच तत्व का बण्या पिंजरा, जिसमें रहती मैना।जाया नाम जनम का रहसी, किस विध होसी रहना॥॥
 रंग रंगीला बण्या पिंजरा, जिसमें रहती मैना।खुल जाया पिंजरा, उड़ जाय मैना, किस विध होसी रहना॥॥
 भजन करो ये प्यारी मैना, नहीं काग बण ज्याना।जहर पियाला कव्वौ पिवै, अमृत पिवै मैना॥॥
 दास कबीर बजावै वाला, गाय सुनावै मैना।भगवत की गत भगवत जाणै, नहीं किसीने जाणा॥॥ 


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भोली साधुड़ाँ से किसोडी भिराँत म्हार बीरा रै साध रै पियालो रल भेला पीवजी॥टेर॥सतगुरु साहिब बंदा एक है जीधोबीड़ा सा धोवै गुरु का कपड़ा रै, कोई तन मन साबुन ल्याय।
 तन रै सिला मन साबणा रै, कोई मैला मैला धुप धुप ज्याय॥॥
 काया रे नगरियै में आमली रै, जाँ पर कोयलड़ी तो करै रे किलोल। कोयलड्याँ रा शबद सुहावना रै, बै तो उड़ उड़ लागै गुराँ के पांव॥॥
 काया रे नगरिये में हाटड़ी रै,जाँ पर विणज करै है साहुकार।कई रे करोड़ी धज हो चल्या रै, कई गय है जमारो हार॥॥
 सीप रे समन्दरिये मे निपजै रै, कोई मोतीड़ा तो निपजै सीपां माँय।बून्द रे पड़ै रे हर के नाम की रै, कोई लखिया बिरला सा साध॥॥
 सतगुरु शबद उच्चारिया रै, कोई रटिया सांस म सांस। देव रे डूंगरपुरी बोलिया रै, ज्यारो सत अमरापुर बास॥॥  

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गुरु ज्ञान ध्यान को झबरक दिवलो, हालो सत् के मारगाँ॥टेर॥
 आप सुवारथ सब जग राचै, परमारथ कुण राचै ओ बाबाजी,परमारथ रा राचणियाँ नर थोड़ा रे बीरा॥॥
 हाथाँ में थारे झबरक दिवलो, आंगनियो कोनी सूझे ओ बाबाजी,पैड़ी ये दुहेली किस विध चढस्यो रे बीरा॥॥
 समदरिये रा माणसिया थे तालरियाँ कांई रीइया ओ बाबाजी, समदरिये में महंगा मोती निपजै रे बीरा॥॥
 ओछे जल का मानसिया थारी तुष्णा कबुहूँ न भागै ओ बाबाजी,पर नार्यों रा मोहेड़ा नर हीणा रे बीरा॥॥
 तँवराँ मे टीकायत सिद्ध श्री रामदेवजी बोल्या ओ बाबाजी,हाथ लगेड़ो माणसियो मत खोवो रे बीरा॥॥

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बस बात जरासी, होसी लिखी रे तकदीर॥टेर॥
लिखी करम की कैयां टलसी, तेरो जोर कठे ताई चलसी, दुरमत करयां रे घणो जी बलसी, दुरमत छोड़ो मेरा बीर॥॥
 तूँ क्यूँ धन की खातिर भागे, किस्मत तेरे सागे सागे, तूँ सोवे तो भी या जागे थ्यावस ले ले मेरा बीर॥॥
तेरो मन चोखी खाने पर, छाप लगी दाने दाने पर, मिल जासी मौको आने पर,जिस रे दाने मे तेरो सीर॥॥
 के चावे तू चोखा संगपन, के चावे तूँ मान बड़प्पन, होवे एक विचारे छप्पन, शंभु भजो रे रघुवीर॥॥ 

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बोलै नारी सुणो पियाजी, मानो म्हारी बात द्वारका थे जाओ। थे जावो पिव, थे जावो, थे जावो, पिव थे जावो॥टेर॥
 माल उधारो मिलै नहीं पिव, मुश्किल दाणै दाणै की।दोय वक्त मँ एक वक्त थारै बिद लागै है खाणै की॥
 मीठी निकलै भूख पिया, थारा दुर्बल हो गया गात-द्वारका थे जाओ॥॥
 आन गरीबी आ घेरी, बरतण ना फूटी कौड़ी।तन का वस्त्र फाट गया पिव, फाटेड़ी चादर ओडी॥
 सियां मरता फिरो, रात, दिन दे काखां मँ हाथ-द्वारका थे जाओ॥।
 जाकर भेंट करो प्रभु सँ पिव, मन मँ काँई आँट करो।अपने दिल की बात प्रभु सँ कहता काँई आँट करो।
 सारी बातां सामर्थ म्हारा देवर है बृजनाथ-द्वारका थे जाओ॥॥
 मोहन कहे मत भूलो प्रभु नै याद करो च्यार घड़ी।लख चौरासी फिर आई, या चौपड़ गन्दैस्यार पडी॥
मोहन कहे या रीत प्रभु की दे दुर्बल नै साथ-द्वारका थे जाओ॥॥

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बुंगला देखी थारी अजब बहार, जां में निराकार दीदार ॥टेक॥
 काया बुंगला मँ पातर नाचै, देख रहयो संसार ।किताक पगड़ी ले चल्या, कई गया जमारो हार ॥॥
 काया बुंगला में बीणजी बिणजै, बिणजै जिनसे अपार ।हरिजन हो सो हीरा बिणजै, पात्थर या संसार ॥॥
 काया बंगला में दौड़ा दौड़ै, दौड़ रहया दिनरात ।पांच पच्चीस मिल्या पाखरिया, लूट लिया बाजार ॥॥
 काया बुंगला में तपसी तापै, अधर सिंहासन ढाल ।हाड़ मांस से न्यारो खेलै, खेलै खेल अपार ॥॥
 काया बुंगला में चोपड़ मांडी, खेलै खेलण हार ।अबकै बाजी मंडी चौवठै, जीत चलो चाहे हार ॥॥
 नाथ गुलाम मिल्या गुरु पूरा, जद पाया दीदार ।भानी नाथ शरण सतगुरु कै, हर भज उतरो पार ॥॥

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निपजै निपजै रे बीरा-म्हारे रे साधा के।ऐ उनाल्यों, स्यालो निपजै रे॥टेर॥
 मनवो हाली चल्यो खेत मे, काँधे ज्ञान कुवाड़ी।भरे खेत में दो दो काटे, पाप कुबद की डाली॥॥
 मनवो हाली, मनसा हालन, छाक सुवारी ल्याव।पहली तो या साध जीमाव, पाछे काम करावै॥॥
 चन्दन चौकी चढ़यो डूचँव, खेत चिडकलि खावे।ज्ञान का गोफिल लिया है हाथ में, कुबद चिडकलि उड़ावे॥॥
 पचलँग पाल मेढ कर मनकी, पाँच बलदियां जोती।ओम् सोह का पलटा देकर, कुरक कुरक बरसाव॥॥
 धोला सा दोय बैल हमारा, रास पुरानी सेती।कहत कबीर सुनो भाई साधो, या साधा की खेती॥॥ 

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नगरी के लोगो, हाँ भलाँ बस्ती के लोगो।मेरी तो है जात जुलाहा, जीव का जतन करावा॥
 हाँ के दुविधा परे सरकज्याँ ये, दुनिया भरम धरैगी।कोई मेरा क्या करैगा रे, साई तेरा नाम रटूँगा॥टेर॥
 आणा नाचै, ताणा नाचै, नाचै सूत पुराणा।बाहर खड़ी तेरी नाचै जुलाही, अन्दर कोई न आणा॥॥
 हस्ती चढ़ कर ताणा तणिया, ऊँट चढ़या निर्वाणा।घुढ़लै चढ़कर बणवा लाग्या, वीर छावणी छावां॥॥
 उड़द मंग मत खा ये जुलाही, तेरा लड़का होगा काला।एक दमड़ी का चावल मंगाले, सदा संत मतवाला॥॥
 माता अपनी पुत्री नै खा गई, बेटे ने खा गयो बाप।कहत कबीर सुणो भाई साधो, रतियन लाग्यो पाप॥॥


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सतगुरु पुरा म्हाने मिल्या है सुमरतां, पियाजी री छतरी बताओ जी॥टेर॥
 कहाँ सेती तुम चलकर आया रे, कुण थाने रस्ता बताया जीकहाँ तेरा स्थान कहीजै रे, सो मोहे दरसाओ जी॥॥
 नाम नगर से चलकर आया रे, सतगुरु रस्ता बताया, भवसागरिये मे तीरना उपर, पकड़ भुजा सतगुरु ल्याया॥॥
 चढ़ छतरी पर मगन भया है रे, भँवर कुसाली पे आया, सात सखी रल मंगल गावै, जमड़ा देखत रोया॥॥ 
नवलनाथ जोगी पुरा म्हाने मिलिया, रब का रस्ता बताया, भणत कमाल नवल थारे शरणे, बैठ तन्दूरे पे गाया॥॥

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 घट में बसे रे भगवान, मंदिर में काँई ढूंढ़ती फिरे म्हारी सुरता ॥टेर॥
 मुरती कोर मंदिर में मेली, बा सुख से नहीं बोलै।दरवाजे दरबान खड्या है, बिना हुकम नहीं खोलै ॥॥
 गगन मण्डल से गंगा उतरी, पाँचू कपड़ा धोले ।बिण साबण तेरा मैल कटेगा, हरभज निर्मल होले ॥॥
 सौदागर से सौदा करले, जचता मोल करालै ।जे तेरे मन में फर्क आवेतो, घाल तराजू में तोले ॥॥
 नाथ गुलाब मिल्या गुरु पूरा, दिल का परदा खोले ।भानीनाथ शरण सतगुरु की, राई कै पर्वत ओलै ॥॥


समझ मन माँयलारै, बीरा मेरा मैली चादर धोय।
 बिन धोयाँ दुख ना मिटै रै, बीरा मेरा तिरणा किस बिध होय॥टेर॥
 देवी सुमराँ शारदा रै, बीरा मेरा हिरदै उजाला होय।
 गुरुवाँ री गम गैला मिल्या रे, बीरा मेरा आदु अस्तल जोय॥॥
 दाता चिणाई बावड़ी रै, ज्यामें नीर गगजल होय।
 कई कई हरिजन न्हा चल्या रै, कई गया है जमारो खोय॥॥
 रोईड़ी रंग फूटरो रै, जाराँ फूल अजब रंग होय।
 ऊबो मिखमी भोम मे रै, जांकी कलियन विणजै कोई॥॥
 चंदन रो रंग सांवलो रै, जाँका मरम न जाने कोय।
 काट्या कंचन निपजै रै, ज्यामे महक सुगन्धी होय॥॥
 तन का बनाले कापडा रै, सुरता की साबुन होय।
 सुरत शीला पर देया फटकाया रै, सतगुरु देसी धोय॥॥
 लिखमा भिखमी भौम में रै, ज्याँरो गाँव गया गम होय।
 तीजी चौकी लांधजा रै, चौथी में निर्भय होय॥॥ 

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शुन्न घर शहर, शहर घर बस्ती, कुण सैवे कुण जागै है ।साध हमारे हम साधन कै, तन सोवै ब्रह्म जागै है ॥टेर॥
 भंवर गुफा मे तपसी तापै, तपसी तपस्या करता है।अस्त्र, वस्त्र कछु नही रखता नाग निर्भय रहता है ॥॥
 एक अप्सरा आगै ऊबी, दूजी सुरमो सारै है ।तीजी सुषमण सेज बिछावै, परण्या नहीं कँवारा है ॥॥
 एक पिलंग पर दोय नर सुत्या, कुण सौवे कुण जागै है ।च्यारुँ पाया दिवला जोया, चोर किस विध लागै है ॥॥
 जल बिच कमल, कमल बिच कलिया, भंवर वासना लेता है ।पांचू चेला फिरै अकेला, ए अलख अलख जोगी करता है ॥॥
 जीवत जोगी माया भोगी, मूवा पत्थर नर माणी रै ।खोज्या खबर करो घट भीतर, जोगाराम की बाणी रै ॥॥
 परण्या पहली पुत्र जलमिया, मातपिता मन भाया है ।शरण मच्छेन्दर जति गोरक्ष बोल्या, एक अखण्डी नै ध्याया है ॥॥
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म्हारे मालिक के दरबार, आवणा जतीक और नर सती नुगरा मिलज्यो रे मती ॥टेर॥
 ज्ञान सरोदै सुरत पपैया, माखन खाणा मती ।जै खाणा तो शायर खाणा, जाँ में निपजै रति रै ॥॥
 पहली तो या गुप्त होवती, अब हो लागी प्रगटी ।राजा हरिशचंद्र तो सिद्ध कर निकल्या, लारे तारा सती रै ॥॥
 कै योजन में संत बसत है, कै योजन में जती ।नौ योजन में संत बसत है, दस योजन में जती रै ॥॥
 दत्तात्रेय ने गोरख मिल गया, मिल गया दोनों जती ।राजा दशरथ का छोटा बालक, गाबै लक्षमण जती रै ॥॥

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साधु लडे रे शबद के ओटै, तन पर चोट कोनी आयी मेरा भाई रे, साधा करी है लड़ाई….ओजी म्हारा गुरु ओजी…॥टेर॥ ओजी गुरुजी, पाँच पच्चीस चल्या पाखारिया आतम करी है चढ़ाई ।आतम राज करे काया मे, ऐसी ऐसी अदल जमाई ॥॥ ओजी गुरुजी, सात शबद का मँड्या है मोरचा, गढ़ पर नाल झुकाई ।ग्यान का गोला लग्या घट भीतर, भरमाँ की बुरज उड़ाई ॥॥ ओजी गुरुजी, ज्ञान का तेगा लिया है हाथ मे, करमा की कतल बनाई ।कतल कराइ भरमगढ़ भेल्या, फिर रही अलख दुहाई ॥॥ ओजी गुरुजी, नाथ गुलाब मिल्या गुरु पूरा, लाला लगन लखाई ।भानी नाथ शरण सतगुरु की, खरी नौकरी पाई ॥॥

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करमाँ रो संगाती राणा कोई नहीं-लाग्यो लाग्यो राम भजन से हेत ॥टेर॥ एक माँटी रा दोय घड़कल्या, जाँरो न्यारो न्यारो भाग।एक सदाशिव कै जल चढ़ै, दूजो शमशाणा मँ जाय॥॥ एक गऊ का दोय बाछड़ा, जाँरो न्यारो न्यारो भाग।एक सदाशिव कै नाँदियो, दूजो बिणजारै रो बैल॥॥ एक मायड़ रै दोय डीकरा, जाँरो न्यारो न्यारो भाग।एक राजेश्वर राजवी, दूजो साधुड़ाँ रै लार॥॥ राठौड़ाँ रै मीरा बाई जलमिया, बानै बैकुण्ठाँ रा बास॥॥


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हो घोड़े असवार भरथरी, बियाबान मँ भटक्या।बन कै अन्दर तपै महात्मा,देख भरथरी अटक्या॥टेर॥ घोड़े पर से तुरत कूद कर, चरणां शीश नवाया।आर्शीवाद देह साधू ने, आसन पर बैठाया॥ बडे प्रेम सँ जाय कुटी मँ, एक अमर फल ल्याया।इस फल को तू खाले राजा, अमर होज्या तेरी काया॥ राजा नै ले लिया अमर फल, तुरत जेव मँ पटक्या।बन कै अन्दर तपै महात्मा, देख भरथरी अटक्या॥॥ राजी होकर चल्या भरथरी, रंग महल मँ आया।राणी को जा दिया अमरफल, गुण उसका बतलाया॥ निरभागण राणी नै भी वो नहीं अमर फल खाया।चाकर सँ था प्रेम महोबत उसको जा बतलाया॥ प्रेमी रै मन प्रेमी बसता, प्रेम जिगर मँ खटक्या।बन कै अन्दर तपै महात्मा, देख भरथरी अटक्या॥॥ उसी शहर की गणिका सेती, थी चाकर की यारी।उसको जाकर दिया अमरफल थी राणी सँ प्यारी॥ अमर होयकर क्या करणा है, गणिका बात बिचारी।राजा को जा दिया अमरफल,इस को खा तपधारी॥ राजा नै पहचान लिया है, होठ भूप का छिटक्या।बन कै अन्दर तपै महात्मा, देख भरथरी अटक्या॥॥ क्रोधित होकर राज बोल्या, ये फल कित सँ ल्याई।गणित सोच्या ज्यान का खतरा, साँची बात बताई॥ चाकर दीन्या भेद खोल, जद होणै लगी पिटाई।हरिनारायण शर्मा कहता, बात समझ में आई॥ उपज्जा ज्ञान भरथरी को जद, बण बैरागी भटक्या।बन कै अन्दर तपै महात्मा, देख भरथरी अटक्या॥॥

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मेवाड़ी राणा, भजनाँ सँ लागै मीरा मीठी।उदयपुर राणा, भजनाँ सँ लागै मीरा मीठी॥टेर॥  थारो तो राम म्हानै बतावो, नहीं तो फकीरी थारी झूठी॥॥म्हारो तो राम राणाजी घटघट बोलै, थारै हिये की कियाँ फूटी॥॥  सास नणद दोराणी, जिठाणी, जलबल भई अंगीठी॥॥थे तो साँवरिया म्हारै सिर का सेवरा, म्हें थारै हाथकी अंगूठी॥॥  सँकडी गली मँ म्हानै गिरधर मिलियो, किस बिध फिरुँ मैं अपूठी॥॥बाई मीरा के प्रभु गिरधर नागर, चढ़ गयो रंग मजीठी॥॥

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सादा जीवन सुख से जीना, अधिक इतराना ना चाहिए। भजन सार है इस दुनियाँ में, कभी बिसरना ना चाहिये॥टेर॥ मन में भेदभाव नहीं रखना, कौन पराया कुण अपना।  ईश्वर से नाता सच्चा है, और सभी झूठा सपना॥ गर्व गुमान कभी ना करना, गर्व रहै ना गले बिना।  कौन यहाँ पर रहा सदा सें, कौन रहेगा सदा बना॥ सभी भूमि गोपाल लाल की, व्यर्थ झगड़ना ना चाहिये॥॥ दान भोग और नाश तीन गति, धन की ना चोथी कोई। जतन करंता पच् मरगा, साथ ले गया ना कोई॥ इक लख पूत सवा लाख नाती, जाणै जग में सब कोई। रावण के सोने की लंका, साथ ले गया ना कोई॥ सुक्ष्म खाना खूब बांटना, भर भर धरना ना चाहिये॥॥ भोग्यां भोत घटै ना तुष्णा, भोग भोग फिर क्या करना। चित में चेतन करै च्यानणो, धन माया का क्या करना॥ धन से भय विपदा नहीं भागे, झूठा भरम नहीं धरना। धनी रहे चाहे हो निर्धन, आखिर है सबको मरना॥ कर संतोष सुखी हो मरीये, पच् पच् मरना ना चाहिये॥॥ सुमिरन करे सदा इश्वर का, साधु का सम्मान करे। कम हो तो संतोष कर नर, ज्यादा हो तो दान करे॥ जब जब मिले भाग से जैसा, संतोषी ईमान करे। आड़ा तेड़ा घणा बखेड़ा, जुल्मी बेईमान करे॥ निर्भय जीना निर्भय मरना ,शंभु डरना ना चाहिये॥॥

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हर भज हर भज हीरा परख ले, समझ पकड़ नर मजबूती । अष्ट कमल पर खेलो मेरे दाता, और बारता सब झूठी ॥टेर॥
 इन्द्र घटा ज्यूँ म्हारा सतगुरु आया, आँवत ल्याया रंग बूँटी ।त्रिवेणी के रंग महल में साधा लाला हद लूटी ॥॥
 इण काया में पाँच चोर है, जिनकी पकड़ो सिर चोटी ।पाँचवाँ ने मार पच्चीसाँ ने बसकर, जद जाणा तेरी बुध मोटी ॥॥
 सत सुमरण का सैल बणाले, ढ़ाल बणाले धीरज की । काम, क्रोध ने मार हटा दे, जद जाणा थारी रजपूती ॥॥
 झणमण झणमण बाजा बाजै, झिलमिल झिलमिल वहाँ ज्योति ओंकार के रणोकार में हँसला चुग गया निज मोती ॥॥
पक्की घड़ी का तोल बणाले, काण ने राखो एक रती । शरण मच्छेन्द्र जति गोरक्ष बोल्या, अलख लख्या सो खरा जती ॥॥

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होज्या होशियार गुरांजी के शरणै, दिल साबत फिर डरना क्या ॥टेर॥ करमन खेती धणियाँ सेती, रात दिनां बीच सोवणा क्या ।आवेगा हंसला चुग जायेगा मोती, कण बिन मण निपजाओगा क्या ॥॥ कांशी पीतल सोना हो गया, पता चल्या गुरु पारस का ।घर चेतन के पहरा दे ले, जाग – जाग नर सोना क्या ॥॥ नौ सौ नदियाँ निवासी नाला, खार समुद्र जल डूंगा क्या ।सुषमण होद भर्या घट भीतर, नाडूल्याँ में न्हाणा क्या ॥॥ चित चौपड़ का खेल रच्या है, रंग ओलख ल्यो स्यारन का ।गुरु गम पासा हाथ लग्या फिर, जीती बाजी हारो क्या ॥॥ रटले रे बंदा अलखजी री वाणी, हर ने लिख्या सो मिटना क्या ।शरण मच्छेन्द्र जती गोरक्ष बोल्या, समझ पड़ी फिर डिगना क्या ॥॥
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साँई कै नाम बिन कोनी निस्तारा, जाग जाग नर क्या सोता, जागत नगरी में चोर कोनी लागै, झक मारै तेरा जमदूता॥टेर॥ जप कर तपकर कोटि यतन कर, कासी जाय करोत ले ले।भजे बिना तेरी मुक्ति न होसी, भजले जोगी अवधूता॥॥ जोगी होकर जटा बढ़ाले अन्ग रमाले भभूता।जोग जुगत की सार कोनी जाणै, जोग नहीं तेरा हठ झूठा॥॥ जिनकी सुरता लगी भजन में, काल जाल से नहीं डरता।अधर अणी पर आसन रखता, से जोगी है अवधूता॥॥ सोवतड़ा नर भोगै चौरासी, जागतड़ा नर जुग जीत्या।रामनन्दजी का भणै कबीरा, मझलाँ मझलाँ जाय पहुँच्या॥॥

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दिल अपणै में सोचले समझ , दुख पावै जान। मेरी नाथ बिना, रघुनाथ बिना॥टेर॥
आई जवानी भया दीवाना, बल तोले हस्ती जितना। यम का दूत पकड़ ले जासी, जोर न चाले तिल जितना॥॥
भाई बन्धु कुटुम्ब कबीला, झूठी माया घर अपना। कई बार पुत्र पिता घर जनमें, कई बार पुत्र पिता अपना॥॥
कुण संग आया, कुण संग जासी, सब जुग जासी साथ बिना। हंसला बटाऊ तेरा यहीं रह जासी, खोड़ पड़ी रवे सांस बिना॥॥
लखै सरीसा, लख घर छोड्या, हीरा मोती और रतना। अपनी करणी, पार उतरणी, भजन बणायो है कसाई सजना॥॥
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नर छोड़ दे कपट के जाल, बताऊँ तनै तिरणे की तदबीर ॥टेर।  हरि की माला ऐसे रटणी, जैसे बांस पर चढज्या नटनी
मुश्किल है या काया डटनी, डटै तो परले तीर॥॥
गऊ चरणे को जाती बन मे, बछडे को छोड़ दिया अपणे भवन मे
सुरत लगी बछड़े की तन मे, जैसे शोध शरीर॥॥
जल भरने को जाती नारी, सिर पर घड़ो घड़ै पर झारी
हाथ जोड़ बतलावे सारी, मारग जात वही॥॥
गंगादास कथै अविनाशी, गंगादास का गुरु संयासी
राम भजे से कटज्या फांसी, कालु राम कहीं॥॥
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भरत पियारा मेरो नाम हनुमान, नाम हनुमान मेरो॥टेर॥
कौन दिशा से आयो भाई, इस पहाड़ को करसीं कांई. देख लेई तेरी प्रभुताई, झेल्यो मेरो बाण॥॥
लंकापुरी से आयो भाई, लक्षमणजी ने मुरछा आई. रावण सुत ने बाण चलायो, मार्यो शक्ति बाण॥॥
कहो भरत क्या जतन उपाऊँ, लँगड़ा कर दिया कैसे जाऊँ.  संजीवन कैसे पहुँचाऊँ उदय होसी भान॥॥
आवो बाला बैठो बाण पे, तन्ने पहुँचा दूँ लंका धाम में. ऐसी मेरे जचै रही ध्यान में बाण विमान॥॥
ले संजीवन हनुमत आये, लछमण जी नै घोल पिलाये. सुखीराम भाषा मे गाये, चरणो में ध्यान॥॥

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निन्द्रा बेच दू कोई ले तो, रामो राम रटे तो तेरो मायाजाल कटेगी॥टेर॥
भाव राख सतसंग में जावो, चित में राखो चेतो। हाथ जोड़ चरणा में लिपटो, जे कोई संत मिले तो॥॥
पाई की मण पाँच बेच दू, जे कोई ग्राहक हो तो। पाँचा में से चार छोड़ दू, दाम रोकड़ी दे तो॥॥
बैठ सभा में मिथ्या बोले, निन्द्रा करै पराई। वो घर हमने तुम्हें बताया, जावो बिना बुलाई॥॥
के तो जावो राजद्वारे, के रसिया रस भोगी। म्हारो पीछो छोड़ बावरी, म्हे हाँ रमता जोगी॥॥
ऊँचा मंदिर देख जायो, जहाँ मणि चवँर दुलाबे। म्हारे संग क्या लेगी बावरी, पत्थर से दुख पावे॥॥
कहे भरतरी सुण हे निन्द्रा, यहाँ न तेरा बासा। म्हें तो रहता गुरु भरोसे, राम मिलण की आशा॥॥
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इण आंगणियै मे ए। कई खेल्या कई खेलसी। कई खेल सिधारया ए ॥टेर॥
आवो पाँच सहेलियो म्हारा सीम दो न चोला ए। मै हूँ अबला सूंदरी, मेरा सहिब भोला ए॥॥
एक छिनौला, दूजी कूबड़ी, तीजी नाजुक छोटी ए। नैण हमारा यूँ झरे ज्यों गागर फूटी ए॥॥
जाय उतारै हरिये बड़ तलै, संगी कुरलाया ए। थे घर जाओ भैणा आपणै, म्हे भया पराया ए॥॥
काजी तो महमद यूँ कया अब यहाँ नहीं रहणा ए। आया परवाना श्याम का, सखी यहाँ से चलणा ए॥॥

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मनमोहन थारी लागै छवि प्यारी, बिरत में बाँसुरी बाजी।  बासुरी बाजी बिरज में, मुरलिया बाजी, मनमोहन थारी लागै॥टेर॥
मीरा महलाँ ऊतरी रै, छाया तिलक लगाय। बतलाई बोलै नहीं रै, राणो रहो रिसाय॥॥
राणो मीरा पर कोपियो रै, सूँत लई तलवार। मार्याँ पिराछट लागसी रै, पीवर दयो पहुँचाय॥॥
मीरा ऊबी गोखड़ाँ रै, ऊँटाँ कसियो भार। दाँवो छोड्यो मेडतो रै, सीधी पुष्कर जाय॥॥
जहर पियालो राणो भेजियो रै, दयो मीरा नै जाय। कर चरणामृत पी गई रै, थे जाणो रघुनाथ॥॥
सर्प पिटारो राणो भेजियो रै, दयो मीरा नै जाय। खोल पिटारो मीरा पहरियो रै, बण गयो नौसर हार॥॥
मीरा हर की लाड़ली रै, राणो बन को ठुँठ। समझायो समझ्यो नहीं रै, लेज्याती बैकुण्ठ॥॥

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भाई रे मत दीजो मावड़ली ने दोष, कर्मा की रेखा न्यारी॥टेर॥
भाई रे एक बेलड़ के तूम्बा चार, चारा री करणी न्यारी न्यारी। भाई रे पहलो गुराँसा रे हाथ, दूजोडो मृदंग बाजणो।
भाई रे तीजो तम्बुरा वाली बीण, चोथोडो भीक्षा मांगणो॥॥ भाई रे एक गऊ के बछड़ा चार, चारा री करणी न्यारी न्यारी।
भाई रे पहलो सुरजमल रो सांड, दूजोडो शिव को नान्दियो। भाई रे तीजो यो धाणी वालो बैल, चोथोड़ो बालद लादनो॥॥
भाई रे एक माटी का बर्तन चार, चारा री करणी न्यारी न्यारी। भाई रे पहले में दहिड़ो जमावे, दूजो तो शिव के जल चढ़े।
भाई रे तीजो पणिहार्या रे शीश, चोथोड़ो शमशान जायसी॥॥ भाई रे एक मायड़ के पुत्र चार, चारा री करणी न्यारी न्यारी।
भाई रे पहलो राजाजी री पोल, दूजोड़ो हीरा पारखी। भाई रे तीजो यो हाट बजार, चोथोड़ो भीक्षा मांगसी॥॥
भाई रे कह गया कबीरो धर्मीदास, कर्मारा भारा मेटयो॥॥
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म्हारा सतगुरु देयी है बताय, दलाली हीरा लालन की॥टेर॥
लाल पड़ी चौगान में, रही कीच लपटाय। नुगरा माणंस ठोकर मारी, सुगरै ने लेई है उठाय॥॥
हीरा पन्ना की कोठड़ी रे, गाहक हो तो खोल। आवेगा कोई संत विवेकी, लेगा बे मंहगे मोल॥॥
लाल लाल तो सब कहे रे, सब के पल्ले लाल। गांठ खोल देखे नहीं रे, इस बिध भयो कंगाल॥॥
लाली लाली सब कहे रे, लाली लखे न कोय। दास कबीर लाली लखीरे, आवा गमन मिटाय॥॥
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मिनख जमारो बंदा ऐलो मत खोवै रे, सुखरत करले जमारा नै.पापी के मुख से राम कोनी निकसै, केशर घुल रही गारा में ॥टेर॥
भैस पद्मणी ने गैणों तो पहरायो, कांई जाणै पहरण हारा ने ।
पहर कौनी जाणै बा तो चाल कोनी जाणै रे, उमर गमादी गोबर गारा में ॥॥
सोने के थाल में सूरी ने परोसी, कांई जाणै जीमन हारा ने ।
जीम कोनी जाणै बा तो जूठ कोनी जाणै रे, हुरड़ हुरड़ करती जमारा ने ॥॥
काँच के महल में कुत्ती ने सुवाई, कांई जाणै सोवण हारा ने ।
सोय कोनी जाणै बा तो ओढ़ कोनी जाणै रे, घुस घुस मरगी गलियारा में ॥॥
मानक मोती मुर्खा ने दीन्या, दलबा तो बैट गया सारा नै ।
हीरा की पारख जोहरी जाणै, कांई बेरो मुरख गँवारा नै ॥॥
अमृतनाथजी अमर हो गया जोगी, जार गया काँचे पारा ने ।भूरा भजन हरिराम का करले, हर मिलसी दशवां द्वारा में ॥॥
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सुखरासी एजी अविनाशी, अमर नगर का बासी ।सतगुरु सुख राशि, ऐजी अविनाशी ॥टेर॥  जाग्रत स्वप्र सुषुप्ति तज के, तुरिया तत्व एक अविनाशी ।भंवर गुफा में सेज गुरां की, तेज पुंज जहाँ प्रकाशी ॥॥  बारह मास बसन्त रहे जहाँ, मेघ अमीरस झड़ ल्यासी ।त्रिकुटी में भंवर गुंजार करत है, सुखमण तकिया है कासी ॥॥  बिन दीपक वहाँ जोत जगत है, कोन भानु वहाँ प्रकाशी ।अनहद शब्द धुन गुंजार करत है, बिन पग पायल झनकासी ॥॥  पाप पुण्या की गम जँहा नाहीं, नहीं बठे त्रिगुण की फांसी ।अगम अगाध अपार अगोचर, ऐसे देश का गुरु है वासी ॥॥  अमृतनाथजी दयालु दया कर, ऐसो घर कब दिखलासी ।दुर्गाशंकर प्रेम दीवाना, छुट गयी जमड़ारी फांसी ॥॥
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आंख बिना पांख बिना, बिना मुख नारी रे,नीचे रे घङुलियो, उपर पनिहारी ॥टेर॥  जल केरी कुडिया अगम केरी झारी रे ,माता कुवारी पिता ब्रह्मचारी ॥॥  एक कुवटियो नौ सौ पनिहारी रे ,नीर भेरे सब न्यारी न्यारी ॥॥  भर गया आगर सागर खीसक गयी क्यारी,आखं मसलती आवे पनिहारी ॥॥  सावली सुरत जांकी बोली लागे प्यारी प्यारी ,भरी सभा में मुलकती नारी ॥॥  गोरक्ष जति बोल्या उलटी बाणी रे,दूध का दूध पाणी का पाणी रे ॥॥
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सतगुरुवाँ से मिलबा चालो ऐ, सजो सिनगारो ॥टेर॥  नीर गंगाजल सिर पर डारो, कचरो परै विडारो ये ।मन मैले ने मल मल धोल्यो, साफ हुवै तन सारो ये ॥॥  गम को घाघरो पैर सुहागण, नेम को नाड़ो सारो ये ।जरणा री गाँठ जुगत से दिज्यो, लोग हँसेगो सारो ये ॥॥  सत की स्यालु ओढ़ सुहागण, प्रेम की पटली मारो ये ।राम नाम को गोटो लगाकर, ज्ञान घूंघटो सारो ये ॥॥  ओर पियो मेरे दाय कोनी आवै, पियो करुँ करतारो ये ।मेरो पियो मेरे घट में बसत है, पलक होवे न न्यारो ये ॥॥  नाथ गुलाब मिल्या गुरु पुरा, म्हाने दियो शबद ललकारो ये ।भानी नाथ गुराँजी के शरणै, सहजाँ मिल्यो किनारो ये ॥॥
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चादर झीणी राम झीणी, या तो सदा राम रस भीणी॥टेर॥ अष्ट कमल पर चरखो चाले, पाँच तंत की पूणी।नौ दस मास बणताँ लाग्या, सतगुरु ने बण दीनी॥॥ जद मेरी चादर बण कर आई, रंग रेजा ने दीनी।ऐसा रंग रंगा रंगरेजा, लाली लालन कीनी॥॥ मोह माया को मैल निकाल्या, गहरी निरमल कीनी।प्रेम प्रीत को रंगलगाकर, सतगुरुवाँ रंग दीनी॥॥ ध्रुव प्रहलाद सुदामा ने ओढ़ी, सुखदेव ने निर्मल कीनी।दास कबीर ने ऐसी ओढ़ी, ज्यू की ज्यू धर दीनी॥॥
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तेरे गले को हार जंजीरो रे, सतगुरु सुलझावेगातेरी काया नगर में हीरो रै, हेरे से पावेगा॥टेर॥ कारीगर का पिंजरा रे, तने घड़ल्यायो करतार।शायर करसी सोधणा रै, मुरख करे रे मरोड़,। रोष मन माँयले में ल्यावेगा॥॥
मन लोभी, मन लालची रे भाई मन चंचल मन चोर।मन के मत में ना चले रे, पलक पलक मन और, जीव के जाल घलावेगा॥॥ ऐसा नान्हा चालिऐ रे भाई, जैसी नान्ही दूब।और घास जल जा जायसी रै, दूब रहेगी खूब,। फेर सावण कद आवेगा ॥॥ साँई के दरबार में रे भाई, लाम्बी बढ़ी है खजूर।चढे तो मेवा चाखले रै, पड़े तो चकना चूर,। फेर उठण कद पावेगा॥॥ जैसी शीशी काँच की र भाई, वैसी नर की देह।जतन करता जायसी रै, हर भज लावा लेय,। फेर मौसर कद आवेगा॥॥ चंदा गुड़ी उडावता रे भाई लाम्बी देता डोर।झोलो लाग्यो प्रेम को रै, कित गुड़िया कित डोर,। फेर कुण पतंग उड़ावेगा॥॥ ऐसी कथना कुण कथी रे भाई, जैसी कथी कबीर।जलिया नाहीं, गडिया नाहीं, अमर भयो है शरिर। पैप का फूल बरसाबेगा॥॥
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