Naiya Padi Majdhaar – Bhajan By Sudhanshu Ji Maharaj
नैया पड़ी मंझधार,
गुरु बिन कैसे लागे पार,
हरी बिन कैसे लागे पार।
नैया पड़ी मंझधार,
गुरु बिन कैसे लागे पार,
हरी बिन कैसे लागे पार।
मैं अपराधी जनम जनम का,
मन में भरा विकार।
तुम दाता, दुःख भंजना,
मेरी करो संभार।
नैया पड़ी मंझधार,
गुरु बिन कैसे लागे पार,
हरी बिन कैसे लागे पार।
नैया पड़ी मंझधार,
गुरु बिन कैसे लागे पार,
हरी बिन कैसे लागे पार।
मैं अपराधी जनम जनम का,
मन में भरा विकार।
तुम दाता, दुःख भंजना,
मेरी करो संभार।
नैया पड़ी मंझधार,
गुरु बिन कैसे लागे पार,
हरी बिन कैसे लागे पार।
अन्तर्यामी एक तुम्ही हो,
जीवन के आधार।
जो तुम छोड़ो हाथ प्रभु जी,
कौन उतारे पार॥
गुरु बिन कैसे लागे पार
नैया पड़ी मंझधार,
गुरु बिन कैसे लागे पार,
हरी बिन कैसे लागे पार।
साहिब तुम मत भूलियो,
लाख लोग मिल जाये
हम से तुम्हरे बहुत हैं,
तुम सो हमरो नाही।
हरी बिन कैसे लागे पार।
नैया पड़ी मंझधार,
गुरु बिन कैसे लागे पार,
हरी बिन कैसे लागे पार।
नैया पड़ी मंझधार,
गुरु बिन कैसे लागे पार।
नैया पड़ी मंझधार,
हरी बिन कैसे लागे पार,
गुरु बिन कैसे लागे पार।