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Bhagavad Gita: Chapter 3, Verse 36

अर्जुन उवाच |अथ केन प्रयुक्तोऽयं पापं चरति पूरुष: |अनिच्छन्नपि वार्ष्णेय बलादिव नियोजित: || 36|| arjuna uvāchaatha kena prayukto ’yaṁ pāpaṁ charati pūruṣhaḥanichchhann api vārṣhṇeya balād iva niyojitaḥ Audio भावार्थ: अर्जुन बोले- हे कृष्ण! तो फिर यह मनुष्य स्वयं न चाहता हुआ भी बलात्‌ लगाए हुए की भाँति किससे प्रेरित होकर पाप का आचरण करता है॥36॥॥ […]

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Bhagavad Gita: Chapter 3, Verse 35

श्रेयान्स्वधर्मो विगुण: परधर्मात्स्वनुष्ठितात् |स्वधर्मे निधनं श्रेय: परधर्मो भयावह: || 35|| śhreyān swa-dharmo viguṇaḥ para-dharmāt sv-anuṣhṭhitātswa-dharme nidhanaṁ śhreyaḥ para-dharmo bhayāvahaḥ Audio भावार्थ: अच्छी प्रकार आचरण में लाए हुए दूसरे के धर्म से गुण रहित भी अपना धर्म अति उत्तम है। अपने धर्म में तो मरना भी कल्याणकारक है और दूसरे का धर्म भय को देने वाला […]

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Bhagavad Gita: Chapter 3, Verse 34

इन्द्रियस्येन्द्रियस्यार्थे रागद्वेषौ व्यवस्थितौ |तयोर्न वशमागच्छेत्तौ ह्यस्य परिपन्थिनौ || 34|| indriyasyendriyasyārthe rāga-dveṣhau vyavasthitautayor na vaśham āgachchhet tau hyasya paripanthinau Audio भावार्थ: इन्द्रिय-इन्द्रिय के अर्थ में अर्थात प्रत्येक इन्द्रिय के विषय में राग और द्वेष छिपे हुए स्थित हैं। मनुष्य को उन दोनों के वश में नहीं होना चाहिए क्योंकि वे दोनों ही इसके कल्याण मार्ग में […]

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Bhagavad Gita: Chapter 3, Verse 33

सदृशं चेष्टते स्वस्या: प्रकृतेर्ज्ञानवानपि |प्रकृतिं यान्ति भूतानि निग्रह: किं करिष्यति || 33|| sadṛiśhaṁ cheṣhṭate svasyāḥ prakṛiter jñānavān apiprakṛitiṁ yānti bhūtāni nigrahaḥ kiṁ kariṣhyati Audio भावार्थ: सभी प्राणी प्रकृति को प्राप्त होते हैं अर्थात अपने स्वभाव के परवश हुए कर्म करते हैं। ज्ञानवान्‌ भी अपनी प्रकृति के अनुसार चेष्टा करता है। फिर इसमें किसी का हठ […]

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Bhagavad Gita: Chapter 3, Verse 32

ये त्वेतदभ्यसूयन्तो नानुतिष्ठन्ति मे मतम् |सर्वज्ञानविमूढांस्तान्विद्धि नष्टानचेतस: || 32|| ye tvetad abhyasūyanto nānutiṣhṭhanti me matamsarva-jñāna-vimūḍhāns tān viddhi naṣhṭān achetasaḥ Audio भावार्थ: परन्तु जो मनुष्य मुझमें दोषारोपण करते हुए मेरे इस मत के अनुसार नहीं चलते हैं, उन मूर्खों को तू सम्पूर्ण ज्ञानों में मोहित और नष्ट हुए ही समझ॥32॥ Translation But those who find faults […]

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Bhagavad Gita: Chapter 3, Verse 31

ये मे मतमिदं नित्यमनुतिष्ठन्ति मानवा: |श्रद्धावन्तोऽनसूयन्तो मुच्यन्ते तेऽपि कर्मभि: || 31|| ye me matam idaṁ nityam anutiṣhṭhanti mānavāḥśhraddhāvanto ’nasūyanto muchyante te ’pi karmabhiḥ Audio भावार्थ: जो कोई मनुष्य दोषदृष्टि से रहित और श्रद्धायुक्त होकर मेरे इस मत का सदा अनुसरण करते हैं, वे भी सम्पूर्ण कर्मों से छूट जाते हैं॥31॥ Translation Those who abide by […]

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Bhagavad Gita: Chapter 3, Verse 30

मयि सर्वाणि कर्माणि संन्यस्याध्यात्मचेतसा |निराशीर्निनर्ममो भूत्वा युध्यस्व विगतज्वर: || 30|| mayi sarvāṇi karmāṇi sannyasyādhyātma-chetasānirāśhīr nirmamo bhūtvā yudhyasva vigata-jvaraḥ Audio भावार्थ: मुझ अन्तर्यामी परमात्मा में लगे हुए चित्त द्वारा सम्पूर्ण कर्मों को मुझमें अर्पण करके आशारहित, ममतारहित और सन्तापरहित होकर युद्ध कर॥30॥ Translation Performing all works as an offering unto me, constantly meditate on me as […]

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Bhagavad Gita: Chapter 3, Verse 29

प्रकृतेर्गुणसम्मूढा: सज्जन्ते गुणकर्मसु |तानकृत्स्नविदो मन्दान्कृत्स्नविन्न विचालयेत् || 29|| prakṛiter guṇa-sammūḍhāḥ sajjante guṇa-karmasutān akṛitsna-vido mandān kṛitsna-vin na vichālayet Audio भावार्थ: प्रकृति के गुणों से अत्यन्त मोहित हुए मनुष्य गुणों में और कर्मों में आसक्त रहते हैं, उन पूर्णतया न समझने वाले मन्दबुद्धि अज्ञानियों को पूर्णतया जानने वाला ज्ञानी विचलित न करे॥29॥ Translation Those who are deluded […]

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Bhagavad Gita: Chapter 3, Verse 28

तत्ववित्तु महाबाहो गुणकर्मविभागयो: |गुणा गुणेषु वर्तन्त इति मत्वा न सज्जते || 28|| tattva-vit tu mahā-bāho guṇa-karma-vibhāgayoḥguṇā guṇeṣhu vartanta iti matvā na sajjate Audio भावार्थ: परन्तु हे महाबाहो! गुण विभाग और कर्म विभाग (त्रिगुणात्मक माया के कार्यरूप पाँच महाभूत और मन, बुद्धि, अहंकार तथा पाँच ज्ञानेन्द्रियाँ, पाँच कर्मेन्द्रियाँ और शब्दादि पाँच विषय- इन सबके समुदाय का […]

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Bhagavad Gita: Chapter 3, Verse 27

प्रकृते: क्रियमाणानि गुणै: कर्माणि सर्वश: |अहङ्कारविमूढात्मा कर्ताहमिति मन्यते || 27|| prakṛiteḥ kriyamāṇāni guṇaiḥ karmāṇi sarvaśhaḥahankāra-vimūḍhātmā kartāham iti manyate Audio भावार्थ: वास्तव में सम्पूर्ण कर्म सब प्रकार से प्रकृति के गुणों द्वारा किए जाते हैं, तो भी जिसका अन्तःकरण अहंकार से मोहित हो रहा है, ऐसा अज्ञानी ‘मैं कर्ता हूँ’ ऐसा मानता है॥27॥ Translation All activities […]