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Bhagavad Gita: Chapter 3, Verse 16

एवं प्रवर्तितं चक्रं नानुवर्तयतीह य: |अघायुरिन्द्रियारामो मोघं पार्थ स जीवति || 16|| evaṁ pravartitaṁ chakraṁ nānuvartayatīha yaḥaghāyur indriyārāmo moghaṁ pārtha sa jīvati Audio भावार्थ: हे पार्थ! जो पुरुष इस लोक में इस प्रकार परम्परा से प्रचलित सृष्टिचक्र के अनुकूल नहीं बरतता अर्थात अपने कर्तव्य का पालन नहीं करता, वह इन्द्रियों द्वारा भोगों में रमण करने […]

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Bhagavad Gita: Chapter 3, Verse 15

कर्म ब्रह्मोद्भवं विद्धि ब्रह्माक्षरसमुद्भवम् |तस्मात्सर्वगतं ब्रह्म नित्यं यज्ञे प्रतिष्ठितम् || 15|| karma brahmodbhavaṁ viddhi brahmākṣhara-samudbhavamtasmāt sarva-gataṁ brahma nityaṁ yajñe pratiṣhṭhitam Audio भावार्थ: कर्मसमुदाय को तू वेद से उत्पन्न और वेद को अविनाशी परमात्मा से उत्पन्न हुआ जान। इससे सिद्ध होता है कि सर्वव्यापी परम अक्षर परमात्मा सदा ही यज्ञ में प्रतिष्ठित है॥15॥ Translation The duties […]

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Bhagavad Gita: Chapter 3, Verse 14

अन्नाद्भवन्ति भूतानि पर्जन्यादन्नसम्भव: |यज्ञाद्भवति पर्जन्यो यज्ञ: कर्मसमुद्भव: || 14|| annād bhavanti bhūtāni parjanyād anna-sambhavaḥyajñād bhavati parjanyo yajñaḥ karma-samudbhavaḥ Audio भावार्थ: यज्ञ से बचे हुए अन्न को खाने वाले श्रेष्ठ पुरुष सब पापों से मुक्त हो जाते हैं और जो पापी लोग अपना शरीर-पोषण करने के लिए ही अन्न पकाते हैं, वे तो पाप को ही […]

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Bhagavad Gita: Chapter 3, Verse 13

यज्ञशिष्टाशिन: सन्तो मुच्यन्ते सर्वकिल्बिषै: |भुञ्जते ते त्वघं पापा ये पचन्त्यात्मकारणात् || 13|| yajña-śhiṣhṭāśhinaḥ santo muchyante sarva-kilbiṣhaiḥbhuñjate te tvaghaṁ pāpā ye pachantyātma-kāraṇāt Audio भावार्थ: यज्ञ से बचे हुए अन्न को खाने वाले श्रेष्ठ पुरुष सब पापों से मुक्त हो जाते हैं और जो पापी लोग अपना शरीर-पोषण करने के लिए ही अन्न पकाते हैं, वे तो […]

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Bhagavad Gita: Chapter 3, Verse 12

इष्टान्भोगान्हि वो देवा दास्यन्ते यज्ञभाविता: |तैर्दत्तानप्रदायैभ्यो यो भुङ्क्ते स्तेन एव स: || 12|| iṣhṭān bhogān hi vo devā dāsyante yajña-bhāvitāḥtair dattān apradāyaibhyo yo bhuṅkte stena eva saḥ Audio भावार्थ: यज्ञ द्वारा बढ़ाए हुए देवता तुम लोगों को बिना माँगे ही इच्छित भोग निश्चय ही देते रहेंगे। इस प्रकार उन देवताओं द्वारा दिए हुए भोगों को […]

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Bhagavad Gita: Chapter 3, Verse 10

सहयज्ञा: प्रजा: सृष्ट्वा पुरोवाच प्रजापति: |अनेन प्रसविष्यध्वमेष वोऽस्त्विष्टकामधुक् || 10|| saha-yajñāḥ prajāḥ sṛiṣhṭvā purovācha prajāpatiḥanena prasaviṣhyadhvam eṣha vo ’stviṣhṭa-kāma-dhuk Audio भावार्थ: प्रजापति ब्रह्मा ने कल्प के आदि में यज्ञ सहित प्रजाओं को रचकर उनसे कहा कि तुम लोग इस यज्ञ द्वारा वृद्धि को प्राप्त होओ और यह यज्ञ तुम लोगों को इच्छित भोग प्रदान करने […]

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Bhagavad Gita: Chapter 3, Verse 11

देवान्भावयतानेन ते देवा भावयन्तु व: |परस्परं भावयन्त: श्रेय: परमवाप्स्यथ || 11|| devān bhāvayatānena te devā bhāvayantu vaḥparasparaṁ bhāvayantaḥ śhreyaḥ param avāpsyatha Audio भावार्थ: तुम लोग इस यज्ञ द्वारा देवताओं को उन्नत करो और वे देवता तुम लोगों को उन्नत करें। इस प्रकार निःस्वार्थ भाव से एक-दूसरे को उन्नत करते हुए तुम लोग परम कल्याण को […]

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Bhagavad Gita: Chapter 3, Verse 9

यज्ञार्थात्कर्मणोऽन्यत्र लोकोऽयं कर्मबन्धन: |तदर्थं कर्म कौन्तेय मुक्तसङ्ग: समाचर || 9|| yajñārthāt karmaṇo ’nyatra loko ’yaṁ karma-bandhanaḥtad-arthaṁ karma kaunteya mukta-saṅgaḥ samāchara Audio भावार्थ: यज्ञ के निमित्त किए जाने वाले कर्मों से अतिरिक्त दूसरे कर्मों में लगा हुआ ही यह मुनष्य समुदाय कर्मों से बँधता है। इसलिए हे अर्जुन! तू आसक्ति से रहित होकर उस यज्ञ के […]

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Bhagavad Gita: Chapter 3, Verse 8

नियतं कुरु कर्म त्वं कर्म ज्यायो ह्यकर्मण: |शरीरयात्रापि च ते न प्रसिद्ध्येदकर्मण: || 8|| niyataṁ kuru karma tvaṁ karma jyāyo hyakarmaṇaḥśharīra-yātrāpi cha te na prasiddhyed akarmaṇaḥ Audio भावार्थ: तू शास्त्रविहित कर्तव्यकर्म कर क्योंकि कर्म न करने की अपेक्षा कर्म करना श्रेष्ठ है तथा कर्म न करने से तेरा शरीर-निर्वाह भी नहीं सिद्ध होगा॥8॥ Translation You […]

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Bhagavad Gita: Chapter 3, Verse 7

यस्त्विन्द्रियाणि मनसा नियम्यारभतेऽर्जुन |कर्मेन्द्रियै: कर्मयोगमसक्त: स विशिष्यते || 7|| yas tvindriyāṇi manasā niyamyārabhate ’rjunakarmendriyaiḥ karma-yogam asaktaḥ sa viśhiṣhyate Audio भावार्थ: किन्तु हे अर्जुन! जो पुरुष मन से इन्द्रियों को वश में करके अनासक्त हुआ समस्त इन्द्रियों द्वारा कर्मयोग का आचरण करता है, वही श्रेष्ठ है॥7॥॥ Translation But those karm yogis who control their knowledge senses […]