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Bhagavad Gita: Chapter 2, Verse 58

यदा संहरते चायं कूर्मोऽङ्गानीव सर्वश: |इन्द्रियाणीन्द्रियार्थेभ्यस्तस्य प्रज्ञा प्रतिष्ठिता || 58|| yadā sanharate chāyaṁ kūrmo ’ṅgānīva sarvaśhaḥindriyāṇīndriyārthebhyas tasya prajñā pratiṣhṭhitā Audio भावार्थ: और कछुवा सब ओर से अपने अंगों को जैसे समेट लेता है, वैसे ही जब यह पुरुष इन्द्रियों के विषयों से इन्द्रियों को सब प्रकार से हटा लेता है, तब उसकी बुद्धि स्थिर है […]

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Bhagavad Gita: Chapter 2, Verse 57

य: सर्वत्रानभिस्नेहस्तत्तत्प्राप्य शुभाशुभम् |नाभिनन्दति न द्वेष्टि तस्य प्रज्ञा प्रतिष्ठिता || 57|| yaḥ sarvatrānabhisnehas tat tat prāpya śhubhāśhubhamnābhinandati na dveṣhṭi tasya prajñā pratiṣhṭhitā Audio भावार्थ: जो पुरुष सर्वत्र स्नेहरहित हुआ उस-उस शुभ या अशुभ वस्तु को प्राप्त होकर न प्रसन्न होता है और न द्वेष करता है, उसकी बुद्धि स्थिर है॥57॥ Translation One who remains unattached […]

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Bhagavad Gita: Chapter 2, Verse 56

दु:खेष्वनुद्विग्नमना: सुखेषु विगतस्पृह: |वीतरागभयक्रोध: स्थितधीर्मुनिरुच्यते || 56|| duḥkheṣhv-anudvigna-manāḥ sukheṣhu vigata-spṛihaḥvīta-rāga-bhaya-krodhaḥ sthita-dhīr munir uchyate Audio भावार्थ: दुःखों की प्राप्ति होने पर जिसके मन में उद्वेग नहीं होता, सुखों की प्राप्ति में सर्वथा निःस्पृह है तथा जिसके राग, भय और क्रोध नष्ट हो गए हैं, ऐसा मुनि स्थिरबुद्धि कहा जाता है॥56॥ Translation One whose mind remains undisturbed […]

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Bhagavad Gita: Chapter 2, Verse 55

भगवानुवाच |प्रजहाति यदा कामान्सर्वान्पार्थ मनोगतान् |आत्मन्येवात्मना तुष्ट: स्थितप्रज्ञस्तदोच्यते || 55|| śhrī bhagavān uvāchaprajahāti yadā kāmān sarvān pārtha mano-gatānātmany-evātmanā tuṣhṭaḥ sthita-prajñas tadochyate Audio भावार्थ: श्री भगवान्‌ बोले- हे अर्जुन! जिस काल में यह पुरुष मन में स्थित सम्पूर्ण कामनाओं को भलीभाँति त्याग देता है और आत्मा से आत्मा में ही संतुष्ट रहता है, उस काल में […]

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Bhagavad Gita: Chapter 2, Verse 54

अर्जुन उवाच |स्थितप्रज्ञस्य का भाषा समाधिस्थस्य केशव |स्थितधी: किं प्रभाषेत किमासीत व्रजेत किम् || 54|| arjuna uvāchasthita-prajñasya kā bhāṣhā samādhi-sthasya keśhavasthita-dhīḥ kiṁ prabhāṣheta kim āsīta vrajeta kim Audio भावार्थ: अर्जुन बोले- हे केशव! समाधि में स्थित परमात्मा को प्राप्त हुए स्थिरबुद्धि पुरुष का क्या लक्षण है? वह स्थिरबुद्धि पुरुष कैसे बोलता है, कैसे बैठता है […]

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Bhagavad Gita: Chapter 2, Verse 53

श्रुतिविप्रतिपन्ना ते यदा स्थास्यति निश्चला |समाधावचला बुद्धिस्तदा योगमवाप्स्यसि || 53|| śhruti-vipratipannā te yadā sthāsyati niśhchalāsamādhāv-achalā buddhis tadā yogam avāpsyasi Audio भावार्थ: भाँति-भाँति के वचनों को सुनने से विचलित हुई तेरी बुद्धि जब परमात्मा में अचल और स्थिर ठहर जाएगी, तब तू योग को प्राप्त हो जाएगा अर्थात तेरा परमात्मा से नित्य संयोग हो जाएगा॥53॥ Translation […]

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Bhagavad Gita: Chapter 2, Verse 52

यदा ते मोहकलिलं बुद्धिर्व्यतितरिष्यति |तदा गन्तासि निर्वेदं श्रोतव्यस्य श्रुतस्य च || 52|| yadā te moha-kalilaṁ buddhir vyatitariṣhyatitadā gantāsi nirvedaṁ śhrotavyasya śhrutasya cha Audio भावार्थ: जिस काल में तेरी बुद्धि मोहरूपी दलदल को भलीभाँति पार कर जाएगी, उस समय तू सुने हुए और सुनने में आने वाले इस लोक और परलोक संबंधी सभी भोगों से वैराग्य […]

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Bhagavad Gita: Chapter 2, Verse 51

कर्मजं बुद्धियुक्ता हि फलं त्यक्त्वा मनीषिण: |जन्मबन्धविनिर्मुक्ता: पदं गच्छन्त्यनामयम् || 51|| karma-jaṁ buddhi-yuktā hi phalaṁ tyaktvā manīṣhiṇaḥjanma-bandha-vinirmuktāḥ padaṁ gachchhanty-anāmayam Audio भावार्थ: क्योंकि समबुद्धि से युक्त ज्ञानीजन कर्मों से उत्पन्न होने वाले फल को त्यागकर जन्मरूप बंधन से मुक्त हो निर्विकार परम पद को प्राप्त हो जाते हैं॥51॥ Translation The wise endowed with equanimity of intellect, […]

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Bhagavad Gita: Chapter 2, Verse 50

बुद्धियुक्तो जहातीह उभे सुकृतदुष्कृते |तस्माद्योगाय युज्यस्व योग: कर्मसु कौशलम् || 50|| buddhi-yukto jahātīha ubhe sukṛita-duṣhkṛitetasmād yogāya yujyasva yogaḥ karmasu kauśhalam Audio भावार्थ: समबुद्धियुक्त पुरुष पुण्य और पाप दोनों को इसी लोक में त्याग देता है अर्थात उनसे मुक्त हो जाता है। इससे तू समत्व रूप योग में लग जा, यह समत्व रूप योग ही कर्मों […]

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Bhagavad Gita: Chapter 2, Verse 49

दूरेण ह्यवरं कर्म बुद्धियोगाद्धनञ्जय |बुद्धौ शरणमन्विच्छ कृपणा: फलहेतव: || 49|| dūreṇa hy-avaraṁ karma buddhi-yogād dhanañjayabuddhau śharaṇam anvichchha kṛipaṇāḥ phala-hetavaḥ Audio भावार्थ: : इस समत्वरूप बुद्धियोग से सकाम कर्म अत्यन्त ही निम्न श्रेणी का है। इसलिए हे धनंजय! तू समबुद्धि में ही रक्षा का उपाय ढूँढ अर्थात्‌ बुद्धियोग का ही आश्रय ग्रहण कर क्योंकि फल के […]