योगस्थ: कुरु कर्माणि सङ्गं त्यक्त्वा धनञ्जय |सिद्ध्यसिद्ध्यो: समो भूत्वा समत्वं योग उच्यते || yoga-sthaḥ kuru karmāṇi saṅgaṁ tyaktvā dhanañjayasiddhy-asiddhyoḥ samo bhūtvā samatvaṁ yoga uchyate Audio भावार्थ: हे धनंजय! तू आसक्ति को त्यागकर तथा सिद्धि और असिद्धि में समान बुद्धिवाला होकर योग में स्थित हुआ कर्तव्य कर्मों को कर, समत्व (जो कुछ भी कर्म किया जाए, […]
News
Bhagavad Gita: Chapter 2, Verse 47
कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन |मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि || 47 || karmaṇy-evādhikāras te mā phaleṣhu kadāchanamā karma-phala-hetur bhūr mā te saṅgo ’stvakarmaṇi Audio भावार्थ: तेरा कर्म करने में ही अधिकार है, उसके फलों में कभी नहीं। इसलिए तू कर्मों के फल हेतु मत हो तथा तेरी कर्म न करने में भी आसक्ति न हो॥47॥ Translation […]
Bhagavad Gita: Chapter 2, Verse 46
यावानर्थ उदपाने सर्वत: सम्प्लुतोदके |तावान्सर्वेषु वेदेषु ब्राह्मणस्य विजानत: || 46|| yāvān artha udapāne sarvataḥ samplutodaketāvānsarveṣhu vedeṣhu brāhmaṇasya vijānataḥ Audio भावार्थ: सब ओर से परिपूर्ण जलाशय के प्राप्त हो जाने पर छोटे जलाशय में मनुष्य का जितना प्रयोजन रहता है, ब्रह्म को तत्व से जानने वाले ब्राह्मण का समस्त वेदों में उतना ही प्रयोजन रह जाता […]
Bhagavad Gita: Chapter 2, Verse 45
त्रैगुण्यविषया वेदा निस्त्रैगुण्यो भवार्जुन |निर्द्वन्द्वो नित्यसत्वस्थो निर्योगक्षेम आत्मवान् || 45|| trai-guṇya-viṣhayā vedā nistrai-guṇyo bhavārjunanirdvandvo nitya-sattva-stho niryoga-kṣhema ātmavān Audio भावार्थ: हे अर्जुन! वेद उपर्युक्त प्रकार से तीनों गुणों के कार्य रूप समस्त भोगों एवं उनके साधनों का प्रतिपादन करने वाले हैं, इसलिए तू उन भोगों एवं उनके साधनों में आसक्तिहीन, हर्ष-शोकादि द्वंद्वों से रहित, नित्यवस्तु परमात्मा […]
Bhagavad Gita: Chapter 2, Verse 44
भोगैश्वर्यप्रसक्तानां तयापहृतचेतसाम् |व्यवसायात्मिका बुद्धि: समाधौ न विधीयते || 44|| bhogaiśwvarya-prasaktānāṁ tayāpahṛita-chetasāmvyavasāyātmikā buddhiḥ samādhau na vidhīyate Audio भावार्थ: उस वाणी द्वारा जिनका चित्त हर लिया गया है, जो भोग और ऐश्वर्य में अत्यन्त आसक्त हैं, उन पुरुषों की परमात्मा में निश्चियात्मिका बुद्धि नहीं होती॥44॥ Translation With their minds deeply attached to worldly pleasures and their intellects […]
Bhagavad Gita: Chapter 2, Verse 43
कामात्मान: स्वर्गपरा जन्मकर्मफलप्रदाम् |क्रियाविशेषबहुलां भोगैश्वर्यगतिं प्रति || 43|| kāmātmānaḥ swarga-parā janma-karma-phala-pradāmkriyā-viśheṣha-bahulāṁ bhogaiśhwarya-gatiṁ prati Audio भावार्थ: वे अविवेकीजन इस प्रकार की जिस पुष्पित अर्थात् दिखाऊ शोभायुक्त वाणी को कहा करते हैं, जो कि जन्मरूप कर्मफल देने वाली एवं भोग तथा ऐश्वर्य की प्राप्ति के लिए नाना प्रकार की बहुत-सी क्रियाओं का वर्णन करने वाली है, Translation […]
Bhagavad Gita: Chapter 2, Verse 42
यामिमां पुष्पितां वाचं प्रवदन्त्यविपश्चित: |वेदवादरता: पार्थ नान्यदस्तीति वादिन: || 42|| yāmimāṁ puṣhpitāṁ vāchaṁ pravadanty-avipaśhchitaḥveda-vāda-ratāḥ pārtha nānyad astīti vādinaḥ Audio भावार्थ: हे अर्जुन! जो भोगों में तन्मय हो रहे हैं, जो कर्मफल के प्रशंसक वेदवाक्यों में ही प्रीति रखते हैं, जिनकी बुद्धि में स्वर्ग ही परम प्राप्य वस्तु है और जो स्वर्ग से बढ़कर दूसरी कोई […]
Bhagavad Gita: Chapter 2, Verse 41
व्यवसायात्मिका बुद्धिरेकेह कुरुनन्दन |बहुशाखा ह्यनन्ताश्च बुद्धयोऽव्यवसायिनाम् || 41|| vyavasāyātmikā buddhir ekeha kuru-nandanabahu-śhākhā hyanantāśh cha buddhayo ’vyavasāyinām Audio भावार्थ: हे अर्जुन! इस कर्मयोग में निश्चयात्मिका बुद्धि एक ही होती है, किन्तु अस्थिर विचार वाले विवेकहीन सकाम मनुष्यों की बुद्धियाँ निश्चय ही बहुत भेदों वाली और अनन्त होती हैं॥41॥ Translation O descendent of the Kurus, the intellect […]
Bhagavad Gita: Chapter 2, Verse 40
नेहाभिक्रमनाशोऽस्ति प्रत्यवायो न विद्यते |स्वल्पमप्यस्य धर्मस्य त्रायते महतो भयात् || 40|| nehābhikrama-nāśho ’sti pratyavāyo na vidyatesvalpam apyasya dharmasya trāyate mahato bhayāt Audio भावार्थ: इस कर्मयोग में आरंभ का अर्थात बीज का नाश नहीं है और उलटा फलरूप दोष भी नहीं है, बल्कि इस कर्मयोग रूप धर्म का थोड़ा-सा भी साधन जन्म-मृत्यु रूप महान भय से […]
Bhagavad Gita: Chapter 2, Verse 39
एषा तेऽभिहिता साङ्ख्येबुद्धिर्योगे त्विमां शृणु |बुद्ध्या युक्तो यया पार्थकर्मबन्धं प्रहास्यसि || 39|| eṣhā te ’bhihitā sānkhyebuddhir yoge tvimāṁ śhṛiṇubuddhyā yukto yayā pārthakarma-bandhaṁ prahāsyasi Audio भावार्थ: हे पार्थ! यह बुद्धि तेरे लिए ज्ञानयोग के विषय में कही गई और अब तू इसको कर्मयोग के (अध्याय 3 श्लोक 3 की टिप्पणी में इसका विस्तार देखें।) विषय में […]