अव्यक्तादीनि भूतानि व्यक्तमध्यानि भारत |अव्यक्तनिधनान्येव तत्र का परिदेवना || 28|| avyaktādīni bhūtāni vyakta-madhyāni bhārataavyakta-nidhanānyeva tatra kā paridevanā Audio भावार्थ: हे अर्जुन! सम्पूर्ण प्राणी जन्म से पहले अप्रकट थे और मरने के बाद भी अप्रकट हो जाने वाले हैं, केवल बीच में ही प्रकट हैं, फिर ऐसी स्थिति में क्या शोक करना है?॥28॥ Translation O scion […]
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Bhagavad Gita: Chapter 2, Verse 27
जातस्य हि ध्रुवो मृत्युर्ध्रुवं जन्म मृतस्य च | तस्मादपरिहार्येऽर्थे न त्वं शोचितुमर्हसि || 27|| jātasya hi dhruvo mṛityur dhruvaṁ janma mṛitasya chatasmād aparihārye ’rthe na tvaṁ śhochitum arhasi भावार्थ: क्योंकि इस मान्यता के अनुसार जन्मे हुए की मृत्यु निश्चित है और मरे हुए का जन्म निश्चित है। इससे भी इस बिना उपाय वाले विषय में […]
Bhagavad Gita: Chapter 2, Verse 26
अथ चैनं नित्यजातं नित्यं वा मन्यसे मृतम् | तथापि त्वं महाबाहो नैवं शोचितुमर्हसि || 26|| atha chainaṁ nitya-jātaṁ nityaṁ vā manyase mṛitamtathāpi tvaṁ mahā-bāho naivaṁ śhochitum arhasi भावार्थ: किन्तु यदि तू इस आत्मा को सदा जन्मने वाला तथा सदा मरने वाला मानता हो, तो भी हे महाबाहो! तू इस प्रकार शोक करने योग्य नहीं है॥26॥ […]
Bhagavad Gita: Chapter 2, Verse 25
अव्यक्तोऽयमचिन्त्योऽयमविकार्योऽयमुच्यते | तस्मादेवं विदित्वैनं नानुशोचितुमर्हसि || 25|| avyakto ’yam achintyo ’yam avikāryo ’yam uchyatetasmādevaṁ viditvainaṁ nānuśhochitum arhasi भावार्थ: यह आत्मा अव्यक्त है, यह आत्मा अचिन्त्य है और यह आत्मा विकाररहित कहा जाता है। इससे हे अर्जुन! इस आत्मा को उपर्युक्त प्रकार से जानकर तू शोक करने के योग्य नहीं है अर्थात् तुझे शोक करना उचित […]
Bhagavad Gita: Chapter 2, Verse 24
अच्छेद्योऽयमदाह्योऽयमक्लेद्योऽशोष्य एव च | नित्य: सर्वगत: स्थाणुरचलोऽयं सनातन: || 24|| achchhedyo ’yam adāhyo ’yam akledyo ’śhoṣhya eva chanityaḥ sarva-gataḥ sthāṇur achalo ’yaṁ sanātanaḥ भावार्थ: : क्योंकि यह आत्मा अच्छेद्य है, यह आत्मा अदाह्य, अक्लेद्य और निःसंदेह अशोष्य है तथा यह आत्मा नित्य, सर्वव्यापी, अचल, स्थिर रहने वाला और सनातन है॥24॥ Translation The soul is unbreakable […]
Bhagavad Gita: Chapter 2, Verse 23
नैनं छिन्दन्ति शस्त्राणि नैनं दहति पावक: | न चैनं क्लेदयन्त्यापो न शोषयति मारुत: || 23|| nainaṁ chhindanti śhastrāṇi nainaṁ dahati pāvakaḥna chainaṁ kledayantyāpo na śhoṣhayati mārutaḥ भावार्थ: इस आत्मा को शस्त्र नहीं काट सकते, इसको आग नहीं जला सकती, इसको जल नहीं गला सकता और वायु नहीं सुखा सकता॥23॥ Translation Weapons cannot shred the soul, […]
Bhagavad Gita: Chapter 2, Verse 22
वासांसि जीर्णानि यथा विहाय नवानि गृह्णाति नरोऽपराणि | तथा शरीराणि विहाय जीर्णा न्यन्यानि संयाति नवानि देही || 22|| vāsānsi jīrṇāni yathā vihāyanavāni gṛihṇāti naro ’parāṇitathā śharīrāṇi vihāya jīrṇānyanyāni sanyāti navāni dehī भावार्थ: जैसे मनुष्य पुराने वस्त्रों को त्यागकर दूसरे नए वस्त्रों को ग्रहण करता है, वैसे ही जीवात्मा पुराने शरीरों को त्यागकर दूसरे नए शरीरों […]
Bhagavad Gita: Chapter 2, Verse 21
वेदाविनाशिनं नित्यं य एनमजमव्ययम् | कथं स पुरुष: पार्थ कं घातयति हन्ति कम् || 21|| vedāvināśhinaṁ nityaṁ ya enam ajam avyayamkathaṁ sa puruṣhaḥ pārtha kaṁ ghātayati hanti kam भावार्थ: हे पृथापुत्र अर्जुन! जो पुरुष इस आत्मा को नाशरहित, नित्य, अजन्मा और अव्यय जानता है, वह पुरुष कैसे किसको मरवाता है और कैसे किसको मारता है?॥21॥ […]
Bhagavad Gita: Chapter 2, Verse 20
न जायते म्रियते वा कदाचि नायं भूत्वा भविता वा न भूय: | अजो नित्य: शाश्वतोऽयं पुराणो न हन्यते हन्यमाने शरीरे || 20|| na jāyate mriyate vā kadāchinnāyaṁ bhūtvā bhavitā vā na bhūyaḥajo nityaḥ śhāśhvato ’yaṁ purāṇona hanyate hanyamāne śharīre भावार्थ: यह आत्मा किसी काल में भी न तो जन्मता है और न मरता ही है […]
Bhagavad Gita: Chapter 2, Verse 19
य एनं वेत्ति हन्तारं यश्चैनं मन्यते हतम् | उभौ तौ न विजानीतो नायं हन्ति न हन्यते || 19|| ya enaṁ vetti hantāraṁ yaśh chainaṁ manyate hatamubhau tau na vijānīto nāyaṁ hanti na hanyate भावार्थ: जो इस आत्मा को मारने वाला समझता है तथा जो इसको मरा मानता है, वे दोनों ही नहीं जानते क्योंकि यह […]