अन्तवन्त इमे देहा नित्यस्योक्ता: शरीरिण: | अनाशिनोऽप्रमेयस्य तस्माद्युध्यस्व भारत || 18|| antavanta ime dehā nityasyoktāḥ śharīriṇaḥanāśhino ’prameyasya tasmād yudhyasva bhārata भावार्थ: इस नाशरहित, अप्रमेय, नित्यस्वरूप जीवात्मा के ये सब शरीर नाशवान कहे गए हैं, इसलिए हे भरतवंशी अर्जुन! तू युद्ध कर॥18॥ Translation Only the material body is perishable; the embodied soul within is indestructible, immeasurable, […]
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Bhagavad Gita: Chapter 2, Verse 17
अविनाशि तु तद्विद्धि येन सर्वमिदं ततम् | विनाशमव्ययस्यास्य न कश्चित्कर्तुमर्हति || 17|| avināśhi tu tadviddhi yena sarvam idaṁ tatamvināśham avyayasyāsya na kaśhchit kartum arhati भावार्थ: नाशरहित तो तू उसको जान, जिससे यह सम्पूर्ण जगत्- दृश्यवर्ग व्याप्त है। इस अविनाशी का विनाश करने में कोई भी समर्थ नहीं है॥17॥ Translation That which pervades the entire body, […]
Bhagavad Gita: Chapter 2, Verse 16
नासतो विद्यते भावो नाभावो विद्यते सत: | उभयोरपि दृष्टोऽन्तस्त्वनयोस्तत्वदर्शिभि: || 16|| nāsato vidyate bhāvo nābhāvo vidyate sataḥubhayorapi dṛiṣhṭo ’nta stvanayos tattva-darśhibhiḥ भावार्थ: असत् वस्तु की तो सत्ता नहीं है और सत् का अभाव नहीं है। इस प्रकार इन दोनों का ही तत्व तत्वज्ञानी पुरुषों द्वारा देखा गया है॥16॥ Translation Of the transient there is no […]
Bhagavad Gita: Chapter 2, Verse 15
यं हि न व्यथयन्त्येते पुरुषं पुरुषर्षभ | समदु:खसुखं धीरं सोऽमृतत्वाय कल्पते || 15|| yaṁ hi na vyathayantyete puruṣhaṁ puruṣharṣhabhasama-duḥkha-sukhaṁ dhīraṁ so ’mṛitatvāya kalpate भावार्थ: क्योंकि हे पुरुषश्रेष्ठ! दुःख-सुख को समान समझने वाले जिस धीर पुरुष को ये इन्द्रिय और विषयों के संयोग व्याकुल नहीं करते, वह मोक्ष के योग्य होता है॥15॥ Translation O Arjun, noblest […]
Bhagavad Gita: Chapter 2, Verse 14
मात्रास्पर्शास्तु कौन्तेय शीतोष्णसुखदु: खदा: | आगमापायिनोऽनित्यास्तांस्तितिक्षस्व भारत || 14|| mātrā-sparśhās tu kaunteya śhītoṣhṇa-sukha-duḥkha-dāḥāgamāpāyino ’nityās tans-titikṣhasva bhārata भावार्थ: हे कुंतीपुत्र! सर्दी-गर्मी और सुख-दुःख को देने वाले इन्द्रिय और विषयों के संयोग तो उत्पत्ति-विनाशशील और अनित्य हैं, इसलिए हे भारत! उनको तू सहन कर॥14॥ Translation O son of Kunti, the contact between the senses and the sense […]
Bhagavad Gita: Chapter 2, Verse 13
देहिनोऽस्मिन्यथा देहे कौमारं यौवनं जरा | तथा देहान्तरप्राप्तिर्धीरस्तत्र न मुह्यति || 13|| dehino ’smin yathā dehe kaumāraṁ yauvanaṁ jarātathā dehāntara-prāptir dhīras tatra na muhyati भावार्थ: जैसे जीवात्मा की इस देह में बालकपन, जवानी और वृद्धावस्था होती है, वैसे ही अन्य शरीर की प्राप्ति होती है, उस विषय में धीर पुरुष मोहित नहीं होता।13॥ Translation Just […]
Bhagavad Gita: Chapter 2, Verse 12
न त्वेवाहं जातु नासं न त्वं नेमे जनाधिपा | न चैव न भविष्याम: सर्वे वयमत: परम् || 12|| na tvevāhaṁ jātu nāsaṁ na tvaṁ neme janādhipāḥna chaiva na bhaviṣhyāmaḥ sarve vayamataḥ param भावार्थ: न तो ऐसा ही है कि मैं किसी काल में नहीं था, तू नहीं था अथवा ये राजा लोग नहीं थे और […]
Bhagavad Gita: Chapter 2, Verse 11
श्रीभगवानुवाच | अशोच्यानन्वशोचस्त्वं प्रज्ञावादांश्च भाषसे | गतासूनगतासूंश्च नानुशोचन्ति पण्डिता: || 11|| śhrī bhagavān uvāchaaśhochyān-anvaśhochas-tvaṁ prajñā-vādānśh cha bhāṣhasegatāsūn-agatāsūnśh-cha nānuśhochanti paṇḍitāḥ भावार्थ: श्री भगवान बोले, हे अर्जुन! तू न शोक करने योग्य मनुष्यों के लिए शोक करता है और पण्डितों के से वचनों को कहता है, परन्तु जिनके प्राण चले गए हैं, उनके लिए और जिनके प्राण […]
Bhagavad Gita: Chapter 2, Verse 10
तमुवाच हृषीकेश: प्रहसन्निव भारत | सेनयोरुभयोर्मध्ये विषीदन्तमिदं वच: || 10|| tam-uvācha hṛiṣhīkeśhaḥ prahasanniva bhāratasenayorubhayor-madhye viṣhīdantam-idaṁ vachaḥ भावार्थ: हे भरतवंशी धृतराष्ट्र! अंतर्यामी श्रीकृष्ण महाराज दोनों सेनाओं के बीच में शोक करते हुए उस अर्जुन को हँसते हुए से यह वचन बोले॥10॥ Translation O Dhritarashtra, thereafter, in the midst of both the armies, Shree Krishna smilingly spoke […]
Bhagavad Gita: Chapter 2, Verse 9
सञ्जय उवाच | एवमुक्त्वा हृषीकेशं गुडाकेश: परन्तप | न योत्स्य इति गोविन्दमुक्त्वा तूष्णीं बभूव ह || 9|| sañjaya uvāchaevam-uktvā hṛiṣhīkeśhaṁ guḍākeśhaḥ parantapana yotsya iti govindam uktvā tūṣhṇīṁ babhūva ha भावार्थ: संजय बोले- हे राजन्! निद्रा को जीतने वाले अर्जुन अंतर्यामी श्रीकृष्ण महाराज के प्रति इस प्रकार कहकर फिर श्री गोविंद भगवान् से ‘युद्ध नहीं करूँगा’ […]