न हि प्रपश्यामि ममापनुद्याद् यच्छोकमुच्छोषणमिन्द्रियाणाम् | अवाप्य भूमावसपत्नमृद्धं राज्यं सुराणामपि चाधिपत्यम् || 8|| na hi prapaśhyāmi mamāpanudyādyach-chhokam uchchhoṣhaṇam-indriyāṇāmavāpya bhūmāv-asapatnamṛiddhaṁrājyaṁ surāṇāmapi chādhipatyam भावार्थ: क्योंकि भूमि में निष्कण्टक, धन-धान्य सम्पन्न राज्य को और देवताओं के स्वामीपने को प्राप्त होकर भी मैं उस उपाय को नहीं देखता हूँ, जो मेरी इन्द्रियों के सुखाने वाले शोक को दूर कर […]
News
Bhagavad Gita: Chapter 2, Verse 7
कार्पण्यदोषोपहतस्वभाव: पृच्छामि त्वां धर्मसम्मूढचेता: | यच्छ्रेय: स्यान्निश्चितं ब्रूहि तन्मे शिष्यस्तेऽहं शाधि मां त्वां प्रपन्नम् || 7|| kārpaṇya-doṣhopahata-svabhāvaḥpṛichchhāmi tvāṁ dharma-sammūḍha-chetāḥyach-chhreyaḥ syānniśhchitaṁ brūhi tanmeśhiṣhyaste ’haṁ śhādhi māṁ tvāṁ prapannam भावार्थ: इसलिए कायरता रूप दोष से उपहत हुए स्वभाव वाला तथा धर्म के विषय में मोहित चित्त हुआ मैं आपसे पूछता हूँ कि जो साधन निश्चित कल्याणकारक हो, […]
Bhagavad Gita: Chapter 1, Verse 18
द्रुपदो द्रौपदेयाश्च सर्वश: पृथिवीपते | सौभद्रश्च महाबाहु: शङ्खान्दध्मु: पृथक् पृथक् || 18|| drupado draupadeyāśhcha sarvaśhaḥ pṛithivī-patesaubhadraśhcha mahā-bāhuḥ śhaṅkhāndadhmuḥ pṛithak pṛithak भावार्थ: कुन्तीपुत्र राजा युधिष्ठिर ने अनन्तविजय नामक और नकुल तथा सहदेव ने सुघोष और मणिपुष्पक नामक शंख बजाए॥16॥ष्ठ धनुष वाले काशिराज और महारथी शिखण्डी एवं धृष्टद्युम्न तथा राजा विराट और अजेय सात्यकि, राजा द्रुपद एवं […]
Bhagavad Gita: Chapter 1, Verse 17
काश्यश्च परमेष्वास: शिखण्डी च महारथ: | धृष्टद्युम्नो विराटश्च सात्यकिश्चापराजित: || 17|| kāśhyaśhcha parameṣhvāsaḥ śhikhaṇḍī cha mahā-rathaḥdhṛiṣhṭadyumno virāṭaśhcha sātyakiśh chāparājitaḥ भावार्थ: कुन्तीपुत्र राजा युधिष्ठिर ने अनन्तविजय नामक और नकुल तथा सहदेव ने सुघोष और मणिपुष्पक नामक शंख बजाए॥16॥ष्ठ धनुष वाले काशिराज और महारथी शिखण्डी एवं धृष्टद्युम्न तथा राजा विराट और अजेय सात्यकि, राजा द्रुपद एवं द्रौपदी […]
Bhagavad Gita: Chapter 1, Verse 16
अनन्तविजयं राजा कुन्तीपुत्रो युधिष्ठिर: | नकुल: सहदेवश्च सुघोषमणिपुष्पकौ || 16|| anantavijayaṁ rājā kuntī-putro yudhiṣhṭhiraḥnakulaḥ sahadevaśhcha sughoṣha-maṇipuṣhpakau भावार्थ: कुन्तीपुत्र राजा युधिष्ठिर ने अनन्तविजय नामक और नकुल तथा सहदेव ने सुघोष और मणिपुष्पक नामक शंख बजाए॥16॥ष्ठ धनुष वाले काशिराज और महारथी शिखण्डी एवं धृष्टद्युम्न तथा राजा विराट और अजेय सात्यकि, राजा द्रुपद एवं द्रौपदी के पाँचों पुत्र […]
Bhagavad Gita: Chapter 1, Verse 6
युधामन्युश्च विक्रान्त उत्तमौजाश्च वीर्यवान् | सौभद्रो द्रौपदेयाश्च सर्व एव महारथा: || yudhāmanyuśhcha vikrānta uttamaujāśhcha vīryavānsaubhadro draupadeyāśhcha sarva eva mahā-rathāḥ भावार्थ: इस सेना में बड़े-बड़े धनुषों वाले तथा युद्ध में भीम और अर्जुन के समान शूरवीर सात्यकि और विराट तथा महारथी राजा द्रुपद, धृष्टकेतु और चेकितान तथा बलवान काशिराज, पुरुजित, कुन्तिभोज और मनुष्यों में श्रेष्ठ शैब्य, […]
Bhagavad Gita: Chapter 1, Verse 5
धृष्टकेतुश्चेकितान: काशिराजश्च वीर्यवान् | पुरुजित्कुन्तिभोजश्च शैयश्च नरपुङ्गव: | dhṛiṣhṭaketuśhchekitānaḥ kāśhirājaśhcha vīryavānpurujit kuntibhojaśhcha śhaibyaśhcha nara-puṅgavaḥ भावार्थ: इस सेना में बड़े-बड़े धनुषों वाले तथा युद्ध में भीम और अर्जुन के समान शूरवीर सात्यकि और विराट तथा महारथी राजा द्रुपद, धृष्टकेतु और चेकितान तथा बलवान काशिराज, पुरुजित, कुन्तिभोज और मनुष्यों में श्रेष्ठ शैब्य, पराक्रमी युधामन्यु तथा बलवान उत्तमौजा, […]
Bhagavad Gita: Chapter 1, Verse 4
अत्र शूरा महेष्वासा भीमार्जुनसमा युधियुयुधानो विराटश्च द्रुपदश्च महारथ: || atra śhūrā maheṣhvāsā bhīmārjuna-samā yudhiyuyudhāno virāṭaśhcha drupadaśhcha mahā-rathaḥ भावार्थ: इस सेना में बड़े-बड़े धनुषों वाले तथा युद्ध में भीम और अर्जुन के समान शूरवीर सात्यकि और विराट तथा महारथी राजा द्रुपद, धृष्टकेतु और चेकितान तथा बलवान काशिराज, पुरुजित, कुन्तिभोज और मनुष्यों में श्रेष्ठ शैब्य, पराक्रमी युधामन्यु […]
Bhagavad Gita: Chapter 2, Verse 6
न चैतद्विद्म: कतरन्नो गरीयो यद्वा जयेम यदि वा नो जयेयु: | यानेव हत्वा न जिजीविषाम स्तेऽवस्थिता: प्रमुखे धार्तराष्ट्रा: || 6|| na chaitadvidmaḥ kataranno garīyoyadvā jayema yadi vā no jayeyuḥyāneva hatvā na jijīviṣhāmaste ’vasthitāḥ pramukhe dhārtarāṣhṭrāḥ भावार्थ: हम यह भी नहीं जानते कि हमारे लिए युद्ध करना और न करना- इन दोनों में से कौन-सा श्रेष्ठ […]
Bhagavad Gita: Chapter 2, Verse 5
गुरूनहत्वा हि महानुभावान् श्रेयो भोक्तुं भैक्ष्यमपीह लोके | हत्वार्थकामांस्तु गुरूनिहैव भुञ्जीय भोगान् रुधिरप्रदिग्धान् || 5|| gurūnahatvā hi mahānubhāvānśhreyo bhoktuṁ bhaikṣhyamapīha lokehatvārtha-kāmāṁstu gurūnihaivabhuñjīya bhogān rudhira-pradigdhān भावार्थ: इसलिए इन महानुभाव गुरुजनों को न मारकर मैं इस लोक में भिक्षा का अन्न भी खाना कल्याणकारक समझता हूँ क्योंकि गुरुजनों को मारकर भी इस लोक में रुधिर से सने […]