अधर्माभिभवात्कृष्ण प्रदुष्यन्ति कुलस्त्रिय: | स्त्रीषु दुष्टासु वार्ष्णेय जायते वर्णसङ्कर: || 41|| adharmābhibhavāt kṛiṣhṇa praduṣhyanti kula-striyaḥstrīṣhu duṣhṭāsu vārṣhṇeya jāyate varṇa-saṅkaraḥ भावार्थ: भावार्थ : हे कृष्ण! पाप के अधिक बढ़ जाने से कुल की स्त्रियाँ अत्यन्त दूषित हो जाती हैं और हे वार्ष्णेय! स्त्रियों के दूषित हो जाने पर वर्णसंकर उत्पन्न होता है॥41॥ Translation With the preponderance of […]
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Bhagavad Gita: Chapter 1, Verse 40
कुलक्षये प्रणश्यन्ति कुलधर्मा: सनातना: | धर्मे नष्टे कुलं कृत्स्नमधर्मोऽभिभवत्युत || 40|| kula-kṣhaye praṇaśhyanti kula-dharmāḥ sanātanāḥdharme naṣhṭe kulaṁ kṛitsnam adharmo ’bhibhavaty uta भावार्थ: कुल के नाश से सनातन कुल-धर्म नष्ट हो जाते हैं तथा धर्म का नाश हो जाने पर सम्पूर्ण कुल में पाप भी बहुत फैल जाता है॥40॥ Translation When a dynasty is destroyed, its […]
Bhagavad Gita: Chapter 1, Verse 39
कथं न ज्ञेयमस्माभि: पापादस्मान्निवर्तितुम् | कुलक्षयकृतं दोषं प्रपश्यद्भिर्जनार्दन || 39|| kathaṁ na jñeyam asmābhiḥ pāpād asmān nivartitumkula-kṣhaya-kṛitaṁ doṣhaṁ prapaśhyadbhir janārdana भावार्थ: यद्यपि लोभ से भ्रष्टचित्त हुए ये लोग कुल के नाश से उत्पन्न दोष को और मित्रों से विरोध करने में पाप को नहीं देखते, तो भी हे जनार्दन! कुल के नाश से उत्पन्न दोष […]
Bhagavad Gita: Chapter 1, Verse 38
यद्यप्येते न पश्यन्ति लोभोपहतचेतस: | कुलक्षयकृतं दोषं मित्रद्रोहे च पातकम् || 38|| yady apy ete na paśhyanti lobhopahata-chetasaḥkula-kṣhaya-kṛitaṁ doṣhaṁ mitra-drohe cha pātakam भावार्थ: : यद्यपि लोभ से भ्रष्टचित्त हुए ये लोग कुल के नाश से उत्पन्न दोष को और मित्रों से विरोध करने में पाप को नहीं देखते, तो भी हे जनार्दन! कुल के नाश से […]
Bhagavad Gita: Chapter 1, Verse 37
तस्मान्नार्हा वयं हन्तुं धार्तराष्ट्रान्स्वबान्धवान् | स्वजनं हि कथं हत्वा सुखिन: स्याम माधव || 37|| tasmān nārhā vayaṁ hantuṁ dhārtarāṣhṭrān sa-bāndhavānsva-janaṁ hi kathaṁ hatvā sukhinaḥ syāma mādhava भावार्थ: अतएव हे माधव! अपने ही बान्धव धृतराष्ट्र के पुत्रों को मारने के लिए हम योग्य नहीं हैं क्योंकि अपने ही कुटुम्ब को मारकर हम कैसे सुखी होंगे?॥37॥ Translation […]
Bhagavad Gita: Chapter 1, Verse 36
निहत्य धार्तराष्ट्रान्न: का प्रीति: स्याज्जनार्दन | पापमेवाश्रयेदस्मान्हत्वैतानाततायिन: || 36 || nihatya dhārtarāṣhṭrān naḥ kā prītiḥ syāj janārdanapāpam evāśhrayed asmān hatvaitān ātatāyinaḥ भावार्थ: हे जनार्दन! धृतराष्ट्र के पुत्रों को मारकर हमें क्या प्रसन्नता होगी? इन आततायियों को मारकर तो हमें पाप ही लगेगा॥36॥ Translation O Maintainer of all living entities, what pleasure will we derive from […]
Bhagavad Gita: Chapter 1, Verse 35
एतान्न हन्तुमिच्छामि घ्नतोऽपि मधुसूदन | अपि त्रैलोक्यराज्यस्य हेतो: किं नु महीकृते || 35|| etān na hantum ichchhāmi ghnato ’pi madhusūdanaapi trailokya-rājyasya hetoḥ kiṁ nu mahī-kṛite भावार्थ: हे मधुसूदन! मुझे मारने पर भी अथवा तीनों लोकों के राज्य के लिए भी मैं इन सबको मारना नहीं चाहता, फिर पृथ्वी के लिए तो कहना ही क्या है?॥35॥ […]
Bhagavad Gita: Chapter 1, Verse 34
आचार्या: पितर: पुत्रास्तथैव च पितामहा: | मातुला: श्वशुरा: पौत्रा: श्याला: सम्बन्धिनस्तथा || 34|| āchāryāḥ pitaraḥ putrās tathaiva cha pitāmahāḥmātulāḥ śhvaśhurāḥ pautrāḥ śhyālāḥ sambandhinas tathā भावार्थ: गुरुजन, ताऊ-चाचे, लड़के और उसी प्रकार दादे, मामे, ससुर, पौत्र, साले तथा और भी संबंधी लोग हैं ॥34॥ Translation Teachers, fathers, sons, grandfathers, maternal uncles, grandsons, fathers-in-law, grand-nephews, brothers-in-law, and […]
Bhagavad Gita: Chapter 1, Verse 33
येषामर्थे काङ्क्षितं नो राज्यं भोगा: सुखानि च | त इमेऽवस्थिता युद्धे प्राणांस्त्यक्त्वा धनानि च || 33|| yeṣhām arthe kāṅkṣhitaṁ no rājyaṁ bhogāḥ sukhāni chata ime ’vasthitā yuddhe prāṇāṁs tyaktvā dhanāni cha भावार्थ: हमें जिनके लिए राज्य, भोग और सुखादि अभीष्ट हैं, वे ही ये सब धन और जीवन की आशा को त्यागकर युद्ध में खड़े […]
Bhagavad Gita: Chapter 1, Verse 32
न काङ्क्षे विजयं कृष्ण न च राज्यं सुखानि च | किं नो राज्येन गोविन्द किं भोगैर्जीवितेन वा || 32|| na kāṅkṣhe vijayaṁ kṛiṣhṇa na cha rājyaṁ sukhāni chakiṁ no rājyena govinda kiṁ bhogair jīvitena vā भावार्थ: हे कृष्ण! मैं न तो विजय चाहता हूँ और न राज्य तथा सुखों को ही। हे गोविंद! हमें ऐसे […]