निमित्तानि च पश्यामि विपरीतानि केशव | न च श्रेयोऽनुपश्यामि हत्वा स्वजनमाहवे || 31|| nimittāni cha paśhyāmi viparītāni keśhavana cha śhreyo ’nupaśhyāmi hatvā sva-janam āhave भावार्थ: हे केशव! मैं लक्षणों को भी विपरीत ही देख रहा हूँ तथा युद्ध में स्वजन-समुदाय को मारकर कल्याण भी नहीं देखता॥31॥ Translation O Krishna, killer of the Keshi demon, I […]
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Bhagavad Gita: Chapter 1, Verse 30
गाण्डीवं स्रंसते हस्तात्वक्चै व परिदह्यते | न च शक्नोम्यवस्थातुं भ्रमतीव च मे मन: || 30|| gāṇḍīvaṁ sraṁsate hastāt tvak chaiva paridahyatena cha śhaknomy avasthātuṁ bhramatīva cha me manaḥ भावार्थ: हाथ से गांडीव धनुष गिर रहा है और त्वचा भी बहुत जल रही है तथा मेरा मन भ्रमित-सा हो रहा है, इसलिए मैं खड़ा रहने को […]
Bhagavad Gita: Chapter 1, Verse 29
वेपथुश्च शरीरे मे रोमहर्षश्च जायते || 29| vepathuśh cha śharīre me roma-harṣhaśh cha jāyate भावार्थ: मेरे शरीर में कम्प एवं रोमांच हो रहा है Translation My whole body shudders; English Translation Of Sri Shankaracharya’s Sanskrit Commentary By Swami Gambirananda 1.29 Sri Sankaracharya did not comment on this sloka. The commentary starts from 2.10.
Bhagavad Gita: Chapter 1, Verse 28
अर्जुन उवाच | दृष्ट्वेमं स्वजनं कृष्ण युयुत्सुं समुपस्थितम् | सीदन्ति मम गात्राणि मुखं च परिशुष्यति || 28|| arjuna uvāchadṛiṣhṭvemaṁ sva-janaṁ kṛiṣhṇa yuyutsuṁ samupasthitamsīdanti mama gātrāṇi mukhaṁ cha pariśhuṣhyati भावार्थ: अर्जुन बोले- हे कृष्ण! युद्ध क्षेत्र में डटे हुए युद्ध के अभिलाषी इस स्वजनसमुदाय को देखकर मेरे अंग शिथिल हुए जा रहे हैं और मुख सूखा […]
Bhagavad Gita: Chapter 1, Verse 27
तान्समीक्ष्य स कौन्तेय: सर्वान्बन्धूनवस्थितान् | कृपया परयाविष्टो विषीदन्निदमब्रवीत् || 27|| tān samīkṣhya sa kaunteyaḥ sarvān bandhūn avasthitānkṛipayā parayāviṣhṭo viṣhīdann idam abravīt भावार्थ: उन उपस्थित सम्पूर्ण बंधुओं को देखकर वे कुंतीपुत्र अर्जुन अत्यन्त करुणा से युक्त होकर शोक करते हुए यह वचन बोले। ॥27वें का उत्तरार्ध और 28वें का पूर्वार्ध॥ Translation Seeing all his relatives present […]
Bhagavad Gita: Chapter 1, Verse 26
तत्रापश्यत्स्थितान् पार्थ: पितृ नथ पितामहान् | आचार्यान्मातुलान्भ्रातृ न्पुत्रान्पौत्रान्सखींस्तथा | श्वशुरान्सुहृदश्चैव सेनयोरुभयोरपि || 26|| tatrāpaśhyat sthitān pārthaḥ pitṝīn atha pitāmahānāchāryān mātulān bhrātṝīn putrān pautrān sakhīṁs tathāśhvaśhurān suhṛidaśh chaiva senayor ubhayor api भावार्थ: इसके बाद पृथापुत्र अर्जुन ने उन दोनों ही सेनाओं में स्थित ताऊ-चाचों को, दादों-परदादों को, गुरुओं को, मामाओं को, भाइयों को, पुत्रों को, पौत्रों […]
Bhagavad Gita: Chapter 1, Verse 25
भीष्मद्रोणप्रमुखत: सर्वेषां च महीक्षिताम् | उवाच पार्थ पश्यैतान्समवेतान्कुरूनिति || 25|| bhīṣhma-droṇa-pramukhataḥ sarveṣhāṁ cha mahī-kṣhitāmuvācha pārtha paśhyaitān samavetān kurūn iti भावार्थ: संजय बोले- हे धृतराष्ट्र! अर्जुन द्वारा कहे अनुसार महाराज श्रीकृष्णचंद्र ने दोनों सेनाओं के बीच में भीष्म और द्रोणाचार्य के सामने तथा सम्पूर्ण राजाओं के सामने उत्तम रथ को खड़ा कर इस प्रकार कहा कि […]
Bhagavad Gita: Chapter 1, Verse 24
सञ्जय उवाच | एवमुक्तो हृषीकेशो गुडाकेशेन भारत | सेनयोरुभयोर्मध्ये स्थापयित्वा रथोत्तमम् || 24|| sañjaya uvāchaevam ukto hṛiṣhīkeśho guḍākeśhena bhāratasenayor ubhayor madhye sthāpayitvā rathottamam भावार्थ: संजय बोले- हे धृतराष्ट्र! अर्जुन द्वारा कहे अनुसार महाराज श्रीकृष्णचंद्र ने दोनों सेनाओं के बीच में भीष्म और द्रोणाचार्य के सामने तथा सम्पूर्ण राजाओं के सामने उत्तम रथ को खड़ा कर […]
Bhagavad Gita: Chapter 1, Verse 23
योत्स्यमानानवेक्षेऽहं य एतेऽत्र समागता: | धार्तराष्ट्रस्य दुर्बुद्धेर्युद्धे प्रियचिकीर्षव: || 23|| yotsyamānān avekṣhe ’haṁ ya ete ’tra samāgatāḥdhārtarāṣhṭrasya durbuddher yuddhe priya-chikīrṣhavaḥ भावार्थ: दुर्बुद्धि दुर्योधन का युद्ध में हित चाहने वाले जो-जो ये राजा लोग इस सेना में आए हैं, इन युद्ध करने वालों को मैं देखूँगा॥23॥ Translation I desire to see those who have come here […]
Bhagavad Gita: Chapter 1, Verse 22
यावदेतान्निरीक्षेऽहं योद्धुकामानवस्थितान् | कैर्मया सह योद्धव्यमस्मिन् रणसमुद्यमे || 22|| yāvadetān nirīkṣhe ’haṁ yoddhu-kāmān avasthitānkairmayā saha yoddhavyam asmin raṇa-samudyame भावार्थ: और जब तक कि मैं युद्ध क्षेत्र में डटे हुए युद्ध के अभिलाषी इन विपक्षी योद्धाओं को भली प्रकार देख न लूँ कि इस युद्ध रूप व्यापार में मुझे किन-किन के साथ युद्ध करना योग्य है, […]