Posted inNews

Bhagavad Gita: Chapter 18, Verse 5

यज्ञदानतप:कर्म न त्याज्यं कार्यमेव तत् | यज्ञो दानं तपश्चैव पावनानि मनीषिणाम् || yajña-dāna-tapaḥ-karma na tyājyaṁ kāryam eva tatyajño dānaṁ tapaśh chaiva pāvanāni manīṣhiṇām भावार्थ: यज्ञ, दान और तपरूप कर्म त्याग करने के योग्य नहीं है, बल्कि वह तो अवश्य कर्तव्य है, क्योंकि यज्ञ, दान और तप -ये तीनों ही कर्म बुद्धिमान पुरुषों को (वह मनुष्य […]

Posted inNews

Bhagavad Gita: Chapter 18, Verse 6

एतान्यपि तु कर्माणि सङ्गं त्यक्त्वा फलानि च | कर्तव्यानीति मे पार्थ निश्चितं मतमुत्तमम् || etāny api tu karmāṇi saṅgaṁ tyaktvā phalāni chakartavyānīti me pārtha niśhchitaṁ matam uttamam भावार्थ: इसलिए हे पार्थ! इन यज्ञ, दान और तपरूप कर्मों को तथा और भी सम्पूर्ण कर्तव्यकर्मों को आसक्ति और फलों का त्याग करके अवश्य करना चाहिए, यह मेरा […]

Posted inNews

Bhagavad Gita: Chapter 18, Verse 7

नियतस्य तु सन्न्यास: कर्मणो नोपपद्यते | मोहात्तस्य परित्यागस्तामस: परिकीर्तित: || niyatasya tu sannyāsaḥ karmaṇo nopapadyatemohāt tasya parityāgas tāmasaḥ parikīrtitaḥ भावार्थ: (निषिद्ध और काम्य कर्मों का तो स्वरूप से त्याग करना उचित ही है) परन्तु नियत कर्म का (इसी अध्याय के श्लोक 48 की टिप्पणी में इसका अर्थ देखना चाहिए।) स्वरूप से त्याग करना उचित नहीं […]

Posted inNews

Bhagavad Gita: Chapter 18, Verse 8

दु:खमित्येव यत्कर्म कायक्लेशभयात्यजेत् | स कृत्वा राजसं त्यागं नैव त्यागफलं लभेत् || duḥkham ity eva yat karma kāya-kleśha-bhayāt tyajetsa kṛitvā rājasaṁ tyāgaṁ naiva tyāga-phalaṁ labhet भावार्थ: जो कुछ कर्म है वह सब दुःखरूप ही है- ऐसा समझकर यदि कोई शारीरिक क्लेश के भय से कर्तव्य-कर्मों का त्याग कर दे, तो वह ऐसा राजस त्याग करके […]

Posted inNews

Bhagavad Gita: Chapter 18, Verse 9

कार्यमित्येव यत्कर्म नियतं क्रियतेऽर्जुन | सङ्गं त्यक्त्वा फलं चैव स त्याग: सात्विको मत: kāryam ity eva yat karma niyataṁ kriyate ‘rjunasaṅgaṁ tyaktvā phalaṁ chaiva sa tyāgaḥ sāttviko mataḥ भावार्थ: हे अर्जुन! जो शास्त्रविहित कर्म करना कर्तव्य है- इसी भाव से आसक्ति और फल का त्याग करके किया जाता है- वही सात्त्विक त्याग माना गया है॥9॥ […]

Posted inNews

Bhagavad Gita: Chapter 18, Verse 10

न द्वेष्ट्यकुशलं कर्म कुशले नानुषज्जते | त्यागी सत्वसमाविष्टो मेधावी छिन्नसंशय: || na dveṣhṭy akuśhalaṁ karma kuśhale nānuṣhajjatetyāgī sattva-samāviṣhṭo medhāvī chhinna-sanśhayaḥ भावार्थ: जो मनुष्य अकुशल कर्म से तो द्वेष नहीं करता और कुशल कर्म में आसक्त नहीं होता- वह शुद्ध सत्त्वगुण से युक्त पुरुष संशयरहित, बुद्धिमान और सच्चा त्यागी है॥10॥ Translation Those who neither avoid disagreeable […]

Posted inNews

Bhagavad Gita: Chapter 18, Verse 11

न हि देहभृता शक्यं त्यक्तुं कर्माण्यशेषत: | यस्तु कर्मफलत्यागी स त्यागीत्यभिधीयते | na hi deha-bhṛitā śhakyaṁ tyaktuṁ karmāṇy aśheṣhataḥyas tu karma-phala-tyāgī sa tyāgīty abhidhīyate भावार्थ: क्योंकि शरीरधारी किसी भी मनुष्य द्वारा सम्पूर्णता से सब कर्मों का त्याग किया जाना शक्य नहीं है, इसलिए जो कर्मफल त्यागी है, वही त्यागी है- यह कहा जाता है॥11॥ Translation […]

Posted inNews

Bhagavad Gita: Chapter 18, Verse 12

अनिष्टमिष्टं मिश्रं च त्रिविधं कर्मण: फलम् | भवत्यत्यागिनां प्रेत्य न तु सन्न्यासिनां क्वचित् || aniṣhṭam iṣhṭaṁ miśhraṁ cha tri-vidhaṁ karmaṇaḥ phalambhavaty atyāgināṁ pretya na tu sannyāsināṁ kvachit भावार्थ: कर्मफलका त्याग न करनेवाले मनुष्योंको कर्मोंका इष्ट? अनिष्ट और मिश्रित — ऐसे तीन प्रकारका फल मरनेके बाद भी होता है परन्तु कर्मफलका त्याग करनेवालोंको कहीं भी नहीं […]

Posted inNews

Bhagavad Gita: Chapter 18, Verse 13

पञ्चैतानि महाबाहो कारणानि निबोध मे | साङ् ख्ये कृतान्ते प्रोक्तानि सिद्धये सर्वकर्मणाम् || pañchaitāni mahā-bāho kāraṇāni nibodha mesānkhye kṛitānte proktāni siddhaye sarva-karmaṇām भावार्थ: हे महाबाहो! सम्पूर्ण कर्मों की सिद्धि के ये पाँच हेतु कर्मों का अंत करने के लिए उपाय बतलाने वाले सांख्य-शास्त्र में कहे गए हैं, उनको तू मुझसे भलीभाँति जान॥13॥ Translation O Arjun, […]

Posted inNews

Bhagavad Gita: Chapter 18, Verse 14

अधिष्ठानं तथा कर्ता करणं च पृथग्विधम् | विविधाश्च पृथक्चेष्टा दैवं चैवात्र पञ्चमम् || adhiṣhṭhānaṁ tathā kartā karaṇaṁ cha pṛithag-vidhamvividhāśh cha pṛithak cheṣhṭā daivaṁ chaivātra pañchamam भावार्थ: इस विषय में अर्थात कर्मों की सिद्धि में अधिष्ठान (जिसके आश्रय कर्म किए जाएँ, उसका नाम अधिष्ठान है) और कर्ता तथा भिन्न-भिन्न प्रकार के करण (जिन-जिन इंद्रियादिकों और साधनों […]