तत्रैवं सति कर्तारमात्मानं केवलं तु य: | पश्यत्यकृतबुद्धित्वान्न स पश्यति दुर्मति: || 16 tatraivaṁ sati kartāram ātmānaṁ kevalaṁ tu yaḥpaśhyaty akṛita-buddhitvān na sa paśhyati durmatiḥ भावार्थ: परन्तु ऐसा होने पर भी जो मनुष्य अशुद्ध बुद्धि (सत्संग और शास्त्र के अभ्यास से तथा भगवदर्थ कर्म और उपासना के करने से मनुष्य की बुद्धि शुद्ध होती है, […]
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Bhagavad Gita: Chapter 18, Verse 15
शरीरवाङ्मनोभिर्यत्कर्म प्रारभते नर: | न्याय्यं वा विपरीतं वा पञ्चैते तस्य हेतव: || śharīra-vāṅ-manobhir yat karma prārabhate naraḥnyāyyaṁ vā viparītaṁ vā pañchaite tasya hetavaḥ भावार्थ: मनुष्य मन, वाणी और शरीर से शास्त्रानुकूल अथवा विपरीत जो कुछ भी कर्म करता है- उसके ये पाँचों कारण हैं॥15॥ Translation These five are the contributory factors for whatever action is […]
Bhagavad Gita: Chapter 18, Verse 17
यस्य नाहङ् कृतो भावो बुद्धिर्यस्य न लिप्यते | हत्वाऽपि स इमाँल्लोकान्न हन्ति न निबध्यते || yasya nāhankṛito bhāvo buddhir yasya na lipyatehatvā ‘pi sa imāl lokān na hanti na nibadhyate भावार्थ: जिस पुरुष के अन्तःकरण में ‘मैं कर्ता हूँ’ ऐसा भाव नहीं है तथा जिसकी बुद्धि सांसारिक पदार्थों में और कर्मों में लिपायमान नहीं होती, […]
Bhagavad Gita: Chapter 18, Verse 18
ज्ञानं ज्ञेयं परिज्ञाता त्रिविधा कर्मचोदना | करणं कर्म कर्तेति त्रिविध: कर्मसंग्रह: | jñānaṁ jñeyaṁ parijñātā tri-vidhā karma-chodanākaraṇaṁ karma karteti tri-vidhaḥ karma-saṅgrahaḥ भावार्थ: ।।18.18।।ज्ञान? ज्ञेय और परिज्ञाता — इन तीनोंसे कर्मप्रेरणा होती है तथा करण? कर्म और कर्ता — इन तीनोंसे कर्मसंग्रह होता है। Translation Knowledge, the object of knowledge, and the knower—these are the three […]
Bhagavad Gita: Chapter 18, Verse 19
ज्ञानं कर्म च कर्ता च त्रिधैव गुणभेदत: | प्रोच्यते गुणसङ् ख्याने यथावच्छृणु तान्यपि || jñānaṁ karma cha kartā cha tridhaiva guṇa-bhedataḥprochyate guṇa-saṅkhyāne yathāvach chhṛiṇu tāny api भावार्थ: गुणों की संख्या करने वाले शास्त्र में ज्ञान और कर्म तथा कर्त्ता गुणों के भेद से तीन-तीन प्रकार के ही कहे गये हैं, उनको भी तू मुझसे भली-भाँति […]
Bhagavad Gita: Chapter 18, Verse 20
सर्वभूतेषु येनैकं भावमव्ययमीक्षते | अविभक्तं विभक्तेषु तज्ज्ञानं विद्धि सात्विकम् || sarva-bhūteṣhu yenaikaṁ bhāvam avyayam īkṣhateavibhaktaṁ vibhakteṣhu taj jñānaṁ viddhi sāttvikam भावार्थ: जिस ज्ञान से मनुष्य पृथक-पृथक सब भूतों में एक अविनाशी परमात्मभाव को विभागरहित समभाव से स्थित देखता है, उस ज्ञान को तू सात्त्विक जान॥20॥ Translation Understand that knowledge to be in the mode of […]
Bhagavad Gita: Chapter 18, Verse 21
पृथक्त्वेन तु यज्ज्ञानं नानाभावान्पृथग्विधान् | वेत्ति सर्वेषु भूतेषु तज्ज्ञानं विद्धि राजसम् || pṛithaktvena tu yaj jñānaṁ nānā-bhāvān pṛithag-vidhānvetti sarveṣhu bhūteṣhu taj jñānaṁ viddhi rājasam भावार्थ: किन्तु जो ज्ञान अर्थात जिस ज्ञान के द्वारा मनुष्य सम्पूर्ण भूतों में भिन्न-भिन्न प्रकार के नाना भावों को अलग-अलग जानता है, उस ज्ञान को तू राजस जान॥21॥ Translation That knowledge […]
Bhagavad Gita: Chapter 18, Verse 22
यत्तु कृत्स्नवदेकस्मिन्कार्ये सक्तमहैतुकम् | अतत्वार्थवदल्पं च तत्तामसमुदाहृतम् || yat tu kṛitsna-vad ekasmin kārye saktam ahaitukamatattvārtha-vad alpaṁ cha tat tāmasam udāhṛitam भावार्थ: परन्तु जो ज्ञान एक कार्यरूप शरीर में ही सम्पूर्ण के सदृश आसक्त है तथा जो बिना युक्तिवाला, तात्त्विक अर्थ से रहित और तुच्छ है- वह तामस कहा गया है॥22॥ Translation That knowledge is said […]
Bhagavad Gita: Chapter 18, Verse 23
नियतं सङ्गरहितमरागद्वेषत: कृतम् | अफलप्रेप्सुना कर्म यतत्सात्विकमुच्यते || niyataṁ saṅga-rahitam arāga-dveṣhataḥ kṛitamaphala-prepsunā karma yat tat sāttvikam uchyate भावार्थ: जो कर्म शास्त्रविधि से नियत किया हुआ और कर्तापन के अभिमान से रहित हो तथा फल न चाहने वाले पुरुष द्वारा बिना राग-द्वेष के किया गया हो- वह सात्त्विक कहा जाता है॥23॥ Translation Action that is in […]
Bhagavad Gita: Chapter 18, Verse 24
यत्तुकामेप्सुना कर्म साहङ्कारेण वा पुन: | क्रियते बहुलायासं तद्राजसमुदाहृतम् || yat tu kāmepsunā karma sāhankāreṇa vā punaḥkriyate bahulāyāsaṁ tad rājasam udāhṛitam भावार्थ: परन्तु जो कर्म बहुत परिश्रम से युक्त होता है तथा भोगों को चाहने वाले पुरुष द्वारा या अहंकारयुक्त पुरुष द्वारा किया जाता है, वह कर्म राजस कहा गया है॥24॥ Translation Action that is […]