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Bhagavad Gita: Chapter 18, Verse 25

अनुबन्धं क्षयं हिंसामनपेक्ष्य च पौरुषम् | मोहादारभ्यते कर्म यतत्तामसमुच्यते || anubandhaṁ kṣhayaṁ hinsām anapekṣhya cha pauruṣhammohād ārabhyate karma yat tat tāmasam uchyate भावार्थ: जो कर्म परिणाम, हानि, हिंसा और सामर्थ्य को न विचारकर केवल अज्ञान से आरंभ किया जाता है, वह तामस कहा जाता है॥25॥ Translation That action is declared to be in the mode […]

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Bhagavad Gita: Chapter 18, Verse 26

मुक्तसङ्गोऽनहंवादी धृत्युत्साहसमन्वित: | सिद्ध्यसिद्ध्योर्निर्विकार: कर्ता सात्विक उच्यते || mukta-saṅgo ‘nahaṁ-vādī dhṛity-utsāha-samanvitaḥsiddhy-asiddhyor nirvikāraḥ kartā sāttvika uchyate भावार्थ: जो कर्ता संगरहित, अहंकार के वचन न बोलने वाला, धैर्य और उत्साह से युक्त तथा कार्य के सिद्ध होने और न होने में हर्ष -शोकादि विकारों से रहित है- वह सात्त्विक कहा जाता है॥26॥ Translation The performer is said […]

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Bhagavad Gita: Chapter 18, Verse 27

रागी कर्मफलप्रेप्सुर्लुब्धो हिंसात्मकोऽशुचि: | हर्षशोकान्वित: कर्ता राजस: परिकीर्तित: || rāgī karma-phala-prepsur lubdho hinsātmako ‘śhuchiḥharṣha-śhokānvitaḥ kartā rājasaḥ parikīrtitaḥ भावार्थ: जो कर्ता आसक्ति से युक्त कर्मों के फल को चाहने वाला और लोभी है तथा दूसरों को कष्ट देने के स्वभाववाला, अशुद्धाचारी और हर्ष-शोक से लिप्त है वह राजस कहा गया है॥27॥ Translation The performer is considered […]

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Bhagavad Gita: Chapter 18, Verse 28

अयुक्त: प्राकृत: स्तब्ध: शठो नैष्कृतिकोऽलस: | विषादी दीर्घसूत्री च कर्ता तामस उच्यते || ayuktaḥ prākṛitaḥ stabdhaḥ śhaṭho naiṣhkṛitiko ‘lasaḥviṣhādī dīrgha-sūtrī cha kartā tāmasa uchyate भावार्थ: जो कर्ता अयुक्त, शिक्षा से रहित घमंडी, धूर्त और दूसरों की जीविका का नाश करने वाला तथा शोक करने वाला, आलसी और दीर्घसूत्री (दीर्घसूत्री उसको कहा जाता है कि जो […]

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Bhagavad Gita: Chapter 18, Verse 29

बुद्धेर्भेदं धृतेश्चैव गुणतस्त्रिविधं शृणु | प्रोच्यमानमशेषेण पृथक्त्वेन धनञ्जय || buddher bhedaṁ dhṛiteśh chaiva guṇatas tri-vidhaṁ śhṛiṇuprochyamānam aśheṣheṇa pṛithaktvena dhanañjaya भावार्थ: हे धनंजय ! अब तू बुद्धि का और धृति का भी गुणों के अनुसार तीन प्रकार का भेद मेरे द्वारा सम्पूर्णता से विभागपूर्वक कहा जाने वाला सुन॥ Translation Hear now, O Arjun, of the distinctions […]

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Bhagavad Gita: Chapter 18, Verse 30

प्रवृत्तिंच निवृत्तिं च कार्याकार्ये भयाभये |बन्धं मोक्षं च या वेत्तिबुद्धि: सा पार्थ सात्विकी || pravṛittiṁ cha nivṛittiṁ cha kāryākārye bhayābhayebandhaṁ mokṣhaṁ cha yā vetti buddhiḥ sā pārtha sāttvikī भावार्थ: हे पार्थ ! जो बुद्धि प्रवृत्तिमार्ग (गृहस्थ में रहते हुए फल और आसक्ति को त्यागकर भगवदर्पण बुद्धि से केवल लोकशिक्षा के लिए राजा जनक की भाँति […]

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Bhagavad Gita: Chapter 18, Verse 51

बुद्ध्या विशुद्धया युक्तो धृत्यात्मानं नियम्य च | शब्दादीन्विषयांस्त्यक्त्वा रागद्वेषौ व्युदस्य च || 51|| buddhyā viśhuddhayā yukto dhṛityātmānaṁ niyamya chaśhabdādīn viṣhayāns tyaktvā rāga-dveṣhau vyudasya cha भावार्थ: विशुद्ध बुद्धि से युक्त तथा हलका, सात्त्विक और नियमित भोजन करने वाला, शब्दादि विषयों का त्याग करके एकांत और शुद्ध देश का सेवन करने वाला, सात्त्विक धारण शक्ति के (इसी […]

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Bhagavad Gita: Chapter 18, Verse 52

विविक्तसेवी लघ्वाशी यतवाक्कायमानस: | ध्यानयोगपरो नित्यं वैराग्यं समुपाश्रित: || 52|| vivikta-sevī laghv-āśhī yata-vāk-kāya-mānasaḥdhyāna-yoga-paro nityaṁ vairāgyaṁ samupāśhritaḥ भावार्थ: इंद्रियों का संयम करके मन, वाणी और शरीर को वश में कर लेने वाला, राग-द्वेष को सर्वथा नष्ट करके भलीभाँति दृढ़ वैराग्य का आश्रय लेने Translation Dwelling in solitude, eating but little, with speech, body and mind subdued, […]

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Bhagavad Gita: Chapter 18, Verse 53

अहङ्कारं बलं दर्पं कामं क्रोधं परिग्रहम् | विमुच्य निर्मम: शान्तो ब्रह्मभूयाय कल्पते || 53|| ahankāraṁ balaṁ darpaṁ kāmaṁ krodhaṁ parigrahamvimuchya nirmamaḥ śhānto brahma-bhūyāya kalpate भावार्थ: करण और इंद्रियों का संयम करके मन, वाणी और शरीर को वश में कर लेने वाला, राग-द्वेष को सर्वथा नष्ट करके भलीभाँति दृढ़ वैराग्य का आश्रय लेने वाला तथा अहंकार, […]

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Bhagavad Gita: Chapter 18, Verse 31

यया धर्ममधर्मं च कार्यं चाकार्यमेव च | अयथावत्प्रजानाति बुद्धि: सा पार्थ राजसी || yayā dharmam adharmaṁ cha kāryaṁ chākāryam eva chaayathāvat prajānāti buddhiḥ sā pārtha rājasī भावार्थ: हे पार्थ! मनुष्य जिस बुद्धि के द्वारा धर्म और अधर्म को तथा कर्तव्य और अकर्तव्य को भी यथार्थ नहीं जानता, वह बुद्धि राजसी है॥31॥ Translation The intellect is […]