भक्त्या मामभिजानाति यावान्यश्चास्मि तत्वत: |ततो मां तत्वतो ज्ञात्वा विशते तदनन्तरम् || bhaktyā mām abhijānāti yāvān yaśh chāsmi tattvataḥtato māṁ tattvato jñātvā viśhate tad-anantaram भावार्थ: उस पराभक्ति के द्वारा वह मुझ परमात्मा को, मैं जो हूँ और जितना हूँ, ठीक वैसा-का-वैसा तत्त्व से जान लेता है तथा उस भक्ति से मुझको तत्त्व से जानकर तत्काल ही […]
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Bhagavad Gita: Chapter 18, Verse 56
सर्वकर्माण्यपि सदा कुर्वाणो मद्व्यपाश्रय: |मत्प्रसादादवाप्नोति शाश्वतं पदमव्ययम् || sarva-karmāṇy api sadā kurvāṇo mad-vyapāśhrayaḥmat-prasādād avāpnoti śhāśhvataṁ padam avyayam भावार्थ: मेरे परायण हुआ कर्मयोगी तो संपूर्ण कर्मों को सदा करता हुआ भी मेरी कृपा से सनातन अविनाशी परमपद को प्राप्त हो जाता है॥56॥ Translation My devotees, though performing all kinds of actions, take full refuge in me. […]
Bhagavad Gita: Chapter 18, Verse 57
चेतसा सर्वकर्माणि मयि सन्न्यस्य मत्पर: |बुद्धियोगमुपाश्रित्य मच्चित्त: सततं भव || chetasā sarva-karmāṇi mayi sannyasya mat-paraḥbuddhi-yogam upāśhritya mach-chittaḥ satataṁ bhava भावार्थ: सब कर्मों को मन से मुझमें अर्पण करके (गीता अध्याय 9 श्लोक 27 में जिसकी विधि कही है) तथा समबुद्धि रूप योग को अवलंबन करके मेरे परायण और निरंतर मुझमें चित्तवाला हो॥57॥ Translation Dedicate your […]
Bhagavad Gita: Chapter 18, Verse 58
मच्चित्त: सर्वदुर्गाणि मत्प्रसादात्तरिष्यसि |अथ चेत्वमहङ्कारान्न श्रोष्यसि विनङ्क्ष्यसि || mach-chittaḥ sarva-durgāṇi mat-prasādāt tariṣhyasiatha chet tvam ahankārān na śhroṣhyasi vinaṅkṣhyasi भावार्थ: उपर्युक्त प्रकार से मुझमें चित्तवाला होकर तू मेरी कृपा से समस्त संकटों को अनायास ही पार कर जाएगा और यदि अहंकार के कारण मेरे वचनों को न सुनेगा तो नष्ट हो जाएगा अर्थात परमार्थ से भ्रष्ट […]
Bhagavad Gita: Chapter 18, Verse 59
यदहङ्कारमाश्रित्य न योत्स्य इति मन्यसे |मिथ्यैष व्यवसायस्ते प्रकृतिस्त्वां नियोक्ष्यति || yad ahankāram āśhritya na yotsya iti manyasemithyaiṣha vyavasāyas te prakṛitis tvāṁ niyokṣhyati भावार्थ: जो तू अहंकार का आश्रय लेकर यह मान रहा है कि ‘मैं युद्ध नहीं करूँगा’ तो तेरा यह निश्चय मिथ्या है, क्योंकि तेरा स्वभाव तुझे जबर्दस्ती युद्ध में लगा देगा॥59॥ Translation If, […]
Bhagavad Gita: Chapter 18, Verse 60
स्वभावजेन कौन्तेय निबद्ध: स्वेन कर्मणा |कर्तुं नेच्छसि यन्मोहात्करिष्यस्यवशोऽपि तत् || swbhāva-jena kaunteya nibaddhaḥ svena karmaṇākartuṁ nechchhasi yan mohāt kariṣhyasy avaśho ’pi tat भावार्थ: हे कुन्तीपुत्र! जिस कर्म को तू मोह के कारण करना नहीं चाहता, उसको भी अपने पूर्वकृत स्वाभाविक कर्म से बँधा हुआ परवश होकर करेगा॥60॥ Translation O Arjun, that action which out of […]
Bhagavad Gita: Chapter 18, Verse 61
ईश्वर: सर्वभूतानां हृद्देशेऽर्जुन तिष्ठति |भ्रामयन्सर्वभूतानि यन्त्रारूढानि मायया || īśhvaraḥ sarva-bhūtānāṁ hṛid-deśhe ‘rjuna tiṣhṭhatibhrāmayan sarva-bhūtāni yantrārūḍhāni māyayā भावार्थ: हे अर्जुन! शरीर रूप यंत्र में आरूढ़ हुए संपूर्ण प्राणियों को अन्तर्यामी परमेश्वर अपनी माया से उनके कर्मों के अनुसार भ्रमण कराता हुआ सब प्राणियों के हृदय में स्थित है॥61॥ Translation The Supreme Lord dwells in the hearts […]
Bhagavad Gita: Chapter 18, Verse 62
तमेव शरणं गच्छ सर्वभावेन भारत |तत्प्रसादात्परां शान्तिं स्थानं प्राप्स्यसि शाश्वतम् tam eva śharaṇaṁ gachchha sarva-bhāvena bhāratatat-prasādāt parāṁ śhāntiṁ sthānaṁ prāpsyasi śhāśhvatam भावार्थ: हे भारत! तू सब प्रकार से उस परमेश्वर की ही शरण में (लज्जा, भय, मान, बड़ाई और आसक्ति को त्यागकर एवं शरीर और संसार में अहंता, ममता से रहित होकर एक परमात्मा को […]
Bhagavad Gita: Chapter 18, Verse 63
इति ते ज्ञानमाख्यातं गुह्याद्गुह्यतरं मया |विमृश्यैतदशेषेण यथेच्छसि तथा कुरु iti te jñānam ākhyātaṁ guhyād guhyataraṁ mayāvimṛiśhyaitad aśheṣheṇa yathechchhasi tathā kuru भावार्थ: इस प्रकार यह गोपनीय से भी अति गोपनीय ज्ञान मैंने तुमसे कह दिया। अब तू इस रहस्ययुक्त ज्ञान को पूर्णतया भलीभाँति विचार कर, जैसे चाहता है वैसे ही कर॥63॥ Translation Thus, I have explained […]
Bhagavad Gita: Chapter 18, Verse 64
सर्वगुह्यतमं भूय: शृणु मे परमं वच: |इष्टोऽसि मे दृढमिति ततो वक्ष्यामि ते हितम् || sarva-guhyatamaṁ bhūyaḥ śhṛiṇu me paramaṁ vachaḥiṣhṭo ‘si me dṛiḍham iti tato vakṣhyāmi te hitam भावार्थ: संपूर्ण गोपनीयों से अति गोपनीय मेरे परम रहस्ययुक्त वचन को तू फिर भी सुन। तू मेरा अतिशय प्रिय है, इससे यह परम हितकारक वचन मैं तुझसे […]