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Bhagavad Gita: Chapter 10, Verse 12

अर्जुन उवाच |परं ब्रह्म परं धाम पवित्रं परमं भवान् |पुरुषं शाश्वतं दिव्यमादिदेवमजं विभुम् || 12|| paraṁ brahma paraṁ dhāma pavitraṁ paramaṁ bhavānpuruṣhaṁ śhāśhvataṁ divyam ādi-devam ajaṁ vibhum Audio भावार्थ: अर्जुन बोले- आप परम ब्रह्म, परम धाम और परम पवित्र हैं, क्योंकि आपको सब ऋषिगण सनातन, दिव्य पुरुष एवं देवों का भी आदिदेव, Translation Arjun said: […]

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Bhagavad Gita: Chapter 10, Verse 11

तेषामेवानुकम्पार्थमहमज्ञानजं तम: |नाशयाम्यात्मभावस्थो ज्ञानदीपेन भास्वता || 11|| teṣhām evānukampārtham aham ajñāna-jaṁ tamaḥnāśhayāmyātma-bhāva-stho jñāna-dīpena bhāsvatā Audio भावार्थ: हे अर्जुन! उनके ऊपर अनुग्रह करने के लिए उनके अंतःकरण में स्थित हुआ मैं स्वयं ही उनके अज्ञानजनित अंधकार को प्रकाशमय तत्त्वज्ञानरूप दीपक के द्वारा नष्ट कर देता हूँ॥11॥ Translation Out of compassion for them, I, who dwell within […]

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Bhagavad Gita: Chapter 10, Verse 10

तेषां सततयुक्तानां भजतां प्रीतिपूर्वकम् |ददामि बुद्धियोगं तं येन मामुपयान्ति ते || 10|| teṣhāṁ satata-yuktānāṁ bhajatāṁ prīti-pūrvakamdadāmi buddhi-yogaṁ taṁ yena mām upayānti te Audio भावार्थ: उन निरंतर मेरे ध्यान आदि में लगे हुए और प्रेमपूर्वक भजने वाले भक्तों को मैं वह तत्त्वज्ञानरूप योग देता हूँ, जिससे वे मुझको ही प्राप्त होते हैं॥10॥ Translation To those whose […]

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Bhagavad Gita: Chapter 10, Verse 9

मच्चित्ता मद्गतप्राणा बोधयन्त: परस्परम् |कथयन्तश्च मां नित्यं तुष्यन्ति च रमन्ति च || 9|| mach-chittā mad-gata-prāṇā bodhayantaḥ parasparamkathayantaśh cha māṁ nityaṁ tuṣhyanti cha ramanti cha Audio भावार्थ: निरंतर मुझमें मन लगाने वाले और मुझमें ही प्राणों को अर्पण करने वाले (मुझ वासुदेव के लिए ही जिन्होंने अपना जीवन अर्पण कर दिया है उनका नाम मद्गतप्राणाः है।) […]

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Bhagavad Gita: Chapter 10, Verse 8

अहं सर्वस्य प्रभवो मत्त: सर्वं प्रवर्तते |इति मत्वा भजन्ते मां बुधा भावसमन्विता: || 8|| ahaṁ sarvasya prabhavo mattaḥ sarvaṁ pravartateiti matvā bhajante māṁ budhā bhāva-samanvitāḥ Audio भावार्थ: मैं वासुदेव ही संपूर्ण जगत्‌ की उत्पत्ति का कारण हूँ और मुझसे ही सब जगत्‌ चेष्टा करता है, इस प्रकार समझकर श्रद्धा और भक्ति से युक्त बुद्धिमान्‌ भक्तजन […]

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Bhagavad Gita: Chapter 10, Verse 7

एतां विभूतिं योगं च मम यो वेत्ति तत्वत: |सोऽविकम्पेन योगेन युज्यते नात्र संशय: || 7|| etāṁ vibhūtiṁ yogaṁ cha mama yo vetti tattvataḥso ’vikampena yogena yujyate nātra sanśhayaḥ Audio भावार्थ: जो पुरुष मेरी इस परमैश्वर्यरूप विभूति को और योगशक्ति को तत्त्व से जानता है (जो कुछ दृश्यमात्र संसार है वह सब भगवान की माया है […]

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Bhagavad Gita: Chapter 10, Verse 6

महर्षय: सप्त पूर्वे चत्वारो मनवस्तथा |मद्भावा मानसा जाता येषां लोक इमा: प्रजा: || 6|| maharṣhayaḥ sapta pūrve chatvāro manavas tathāmad-bhāvā mānasā jātā yeṣhāṁ loka imāḥ prajāḥ Audio भावार्थ: सात महर्षिजन, चार उनसे भी पूर्व में होने वाले सनकादि तथा स्वायम्भुव आदि चौदह मनु- ये मुझमें भाव वाले सब-के-सब मेरे संकल्प से उत्पन्न हुए हैं, जिनकी […]

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Bhagavad Gita: Chapter 10, Verse 5

अहिंसा समता तुष्टिस्तपो दानं यशोऽयश: |भवन्ति भावा भूतानां मत्त एव पृथग्विधा: || 5|| ahinsā samatā tuṣhṭis tapo dānaṁ yaśho ’yaśhaḥbhavanti bhāvā bhūtānāṁ matta eva pṛithag-vidhāḥ Audio भावार्थ: तथा अहिंसा, समता, संतोष तप (स्वधर्म के आचरण से इंद्रियादि को तपाकर शुद्ध करने का नाम तप है), दान, कीर्ति और अपकीर्ति- ऐसे ये प्राणियों के नाना प्रकार […]

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Bhagavad Gita: Chapter 10, Verse 5

अहिंसा समता तुष्टिस्तपो दानं यशोऽयश: | भवन्ति भावा भूतानां मत्त एव पृथग्विधा: || 5||   ahinsā samatā tuṣhṭis tapo dānaṁ yaśho ’yaśhaḥ bhavanti bhāvā bhūtānāṁ matta eva pṛithag-vidhāḥ Audio भावार्थ: तथा अहिंसा, समता, संतोष तप (स्वधर्म के आचरण से इंद्रियादि को तपाकर शुद्ध करने का नाम तप है), दान, कीर्ति और अपकीर्ति- ऐसे ये प्राणियों […]

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Bhagavad Gita: Chapter 10, Verse 4

बुद्धिर्ज्ञानमसम्मोह: क्षमा सत्यं दम: शम: |सुखं दु:खं भवोऽभावो भयं चाभयमेव च || 4|| buddhir jñānam asammohaḥ kṣhamā satyaṁ damaḥ śhamaḥsukhaṁ duḥkhaṁ bhavo ’bhāvo bhayaṁ chābhayameva cha Audio भावार्थ: निश्चय करने की शक्ति, यथार्थ ज्ञान, असम्मूढ़ता, क्षमा, सत्य, इंद्रियों का वश में करना, मन का निग्रह तथा सुख-दुःख, उत्पत्ति-प्रलय और भय-अभय Translation From me alone arise […]