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Bhagavad Gita: Chapter 9, Verse 27

यत्करोषि यदश्नासि यज्जुहोषि ददासि यत् |यत्तपस्यसि कौन्तेय तत्कुरुष्व मदर्पणम् || 27|| yat karoṣhi yad aśhnāsi yaj juhoṣhi dadāsi yatyat tapasyasi kaunteya tat kuruṣhva mad-arpaṇam Audio भावार्थ: हे अर्जुन! तू जो कर्म करता है, जो खाता है, जो हवन करता है, जो दान देता है और जो तप करता है, वह सब मेरे अर्पण कर॥27॥ Translation […]

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Bhagavad Gita: Chapter 9, Verse 26

पत्रं पुष्पं फलं तोयं यो मे भक्त्या प्रयच्छति |तदहं भक्त्युपहृतमश्नामि प्रयतात्मन: || 26|| patraṁ puṣhpaṁ phalaṁ toyaṁ yo me bhaktyā prayachchhatitadahaṁ bhaktyupahṛitam aśhnāmi prayatātmanaḥ Audio भावार्थ: जो कोई भक्त मेरे लिए प्रेम से पत्र, पुष्प, फल, जल आदि अर्पण करता है, उस शुद्धबुद्धि निष्काम प्रेमी भक्त का प्रेमपूर्वक अर्पण किया हुआ वह पत्र-पुष्पादि मैं सगुणरूप […]

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Bhagavad Gita: Chapter 9, Verse 25

यान्ति देवव्रता देवान्पितॄ न्यान्ति पितृव्रता: |भूतानि यान्ति भूतेज्या यान्ति मद्याजिनोऽपि माम् ||25|| yānti deva-vratā devān pitṝīn yānti pitṛi-vratāḥbhūtāni yānti bhūtejyā yānti mad-yājino ’pi mām Audio भावार्थ: देवताओं को पूजने वाले देवताओं को प्राप्त होते हैं, पितरों को पूजने वाले पितरों को प्राप्त होते हैं, भूतों को पूजने वाले भूतों को प्राप्त होते हैं और मेरा […]

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Bhagavad Gita: Chapter 9, Verse 24

अहं हि सर्वयज्ञानां भोक्ता च प्रभुरेव च |न तु मामभिजानन्ति तत्वेनातश्च्यवन्ति ते || 24|| ahaṁ hi sarva-yajñānāṁ bhoktā cha prabhureva chana tu mām abhijānanti tattvenātaśh chyavanti te Audio भावार्थ: क्योंकि संपूर्ण यज्ञों का भोक्ता और स्वामी भी मैं ही हूँ, परंतु वे मुझ परमेश्वर को तत्त्व से नहीं जानते, इसी से गिरते हैं अर्थात्‌ पुनर्जन्म […]

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Bhagavad Gita: Chapter 9, Verse 23

येऽप्यन्यदेवता भक्ता यजन्ते श्रद्धयान्विता: |तेऽपि मामेव कौन्तेय यजन्त्यविधिपूर्वकम् || 23|| ye ’pyanya-devatā-bhaktā yajante śhraddhayānvitāḥte ’pi mām eva kaunteya yajantyavidhi-pūrvakam Audio भावार्थ: हे अर्जुन! यद्यपि श्रद्धा से युक्त जो सकाम भक्त दूसरे देवताओं को पूजते हैं, वे भी मुझको ही पूजते हैं, किंतु उनका वह पूजन अविधिपूर्वक अर्थात्‌ अज्ञानपूर्वक है॥23॥ Translation O son of Kunti, even […]

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Bhagavad Gita: Chapter 9, Verse 22

अनन्याश्चिन्तयन्तो मां ये जना: पर्युपासते |तेषां नित्याभियुक्तानां योगक्षेमं वहाम्यहम् || 22|| ananyāśh chintayanto māṁ ye janāḥ paryupāsateteṣhāṁ nityābhiyuktānāṁ yoga-kṣhemaṁ vahāmyaham Audio भावार्थ: जो अनन्यप्रेमी भक्तजन मुझ परमेश्वर को निरंतर चिंतन करते हुए निष्कामभाव से भजते हैं, उन नित्य-निरंतर मेरा चिंतन करने वाले पुरुषों का योगक्षेम (भगवत्‌स्वरूप की प्राप्ति का नाम ‘योग’ है और भगवत्‌प्राप्ति के […]

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Bhagavad Gita: Chapter 9, Verse 21

ते तं भुक्त्वा स्वर्गलोकं विशालंक्षीणे पुण्ये मर्त्यलोकं विशन्ति |एवं त्रयीधर्ममनुप्रपन्नागतागतं कामकामा लभन्ते || 21|| te taṁ bhuktvā swarga-lokaṁ viśhālaṁkṣhīṇe puṇye martya-lokaṁ viśhantievaṁ trayī-dharmam anuprapannāgatāgataṁ kāma-kāmā labhante Audio भावार्थ: वे उस विशाल स्वर्गलोक को भोगकर पुण्य क्षीण होने पर मृत्यु लोक को प्राप्त होते हैं। इस प्रकार स्वर्ग के साधनरूप तीनों वेदों में कहे हुए सकामकर्म […]

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Bhagavad Gita: Chapter 9, Verse 20

त्रैविद्या मां सोमपा: पूतपापायज्ञैरिष्ट्वा स्वर्गतिं प्रार्थयन्ते |ते पुण्यमासाद्य सुरेन्द्रलोकमश्नन्ति दिव्यान्दिवि देवभोगान् || 20|| trai-vidyā māṁ soma-pāḥ pūta-pāpāyajñair iṣhṭvā svar-gatiṁ prārthayantete puṇyam āsādya surendra-lokamaśhnanti divyān divi deva-bhogān Audio भावार्थ: तीनों वेदों में विधान किए हुए सकाम कर्मों को करने वाले, सोम रस को पीने वाले, पापरहित पुरुष (यहाँ स्वर्ग प्राप्ति के प्रतिबंधक देव ऋणरूप पाप से […]

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Bhagavad Gita: Chapter 9, Verse 19

तपाम्यहमहं वर्षं निगृह्णम्युत्सृजामि च |अमृतं चैव मृत्युश्च सदसच्चाहमर्जुन || 19|| tapāmyaham ahaṁ varṣhaṁ nigṛihṇāmyutsṛijāmi chaamṛitaṁ chaiva mṛityuśh cha sad asach chāham arjuna Audio भावार्थ: मैं ही सूर्यरूप से तपता हूँ, वर्षा का आकर्षण करता हूँ और उसे बरसाता हूँ। हे अर्जुन! मैं ही अमृत और मृत्यु हूँ और सत्‌-असत्‌ भी मैं ही हूँ॥19॥ Translation I […]

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Bhagavad Gita: Chapter 9, Verse 18

गतिर्भर्ता प्रभु: साक्षी निवास: शरणं सुहृत् |प्रभव: प्रलय: स्थानं निधानं बीजमव्ययम् || 18|| gatir bhartā prabhuḥ sākṣhī nivāsaḥ śharaṇaṁ suhṛitprabhavaḥ pralayaḥ sthānaṁ nidhānaṁ bījam avyayam Audio भावार्थ: प्राप्त होने योग्य परम धाम, भरण-पोषण करने वाला, सबका स्वामी, शुभाशुभ का देखने वाला, सबका वासस्थान, शरण लेने योग्य, प्रत्युपकार न चाहकर हित करने वाला, सबकी उत्पत्ति-प्रलय का […]