धूमो रात्रिस्तथा कृष्ण: षण्मासा दक्षिणायनम् |तत्र चान्द्रमसं ज्योतिर्योगी प्राप्य निवर्तते || 25|| dhūmo rātris tathā kṛiṣhṇaḥ ṣhaṇ-māsā dakṣhiṇāyanamtatra chāndramasaṁ jyotir yogī prāpya nivartate Audio भावार्थ: जिस मार्ग में धूमाभिमानी देवता है, रात्रि अभिमानी देवता है तथा कृष्ण पक्ष का अभिमानी देवता है और दक्षिणायन के छः महीनों का अभिमानी देवता है, उस मार्ग में मरकर […]
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Bhagavad Gita: Chapter 8, Verse 24
अग्निर्ज्योतिरह: शुक्ल: षण्मासा उत्तरायणम् |तत्र प्रयाता गच्छन्ति ब्रह्म ब्रह्मविदो जना: || 24|| gnir jyotir ahaḥ śhuklaḥ ṣhaṇ-māsā uttarāyaṇamtatra prayātā gachchhanti brahma brahma-vido janāḥ Audio भावार्थ: जिस मार्ग में ज्योतिर्मय अग्नि-अभिमानी देवता हैं, दिन का अभिमानी देवता है, शुक्ल पक्ष का अभिमानी देवता है और उत्तरायण के छः महीनों का अभिमानी देवता है, उस मार्ग में […]
Bhagavad Gita: Chapter 8, Verse 23
यत्र काले त्वनावृत्तिमावृत्तिं चैव योगिन: |प्रयाता यान्ति तं कालं वक्ष्यामि भरतर्षभ || 23|| yatra kāle tvanāvṛittim āvṛittiṁ chaiva yoginaḥprayātā yānti taṁ kālaṁ vakṣhyāmi bharatarṣhabha Audio भावार्थ: हे अर्जुन! जिस काल में (यहाँ काल शब्द से मार्ग समझना चाहिए, क्योंकि आगे के श्लोकों में भगवान ने इसका नाम ‘सृति’, ‘गति’ ऐसा कहा है।) शरीर त्याग कर […]
Bhagavad Gita: Chapter 8, Verse 22
पुरुष: स पर: पार्थ भक्त्या लभ्यस्त्वनन्यया |यस्यान्त:स्थानि भूतानि येन सर्वमिदं ततम् || 22|| puruṣhaḥ sa paraḥ pārtha bhaktyā labhyas tvananyayāyasyāntaḥ-sthāni bhūtāni yena sarvam idaṁ tatam Audio भावार्थ: हे पार्थ! जिस परमात्मा के अंतर्गत सर्वभूत है और जिस सच्चिदानन्दघन परमात्मा से यह समस्त जगत परिपूर्ण है (गीता अध्याय 9 श्लोक 4 में देखना चाहिए), वह सनातन […]
Bhagavad Gita: Chapter 8, Verse 21
अव्यक्तोऽक्षर इत्युक्तस्तमाहु: परमां गतिम् |यं प्राप्य न निवर्तन्ते तद्धाम परमं मम || 21|| avyakto ’kṣhara ityuktas tam āhuḥ paramāṁ gatimyaṁ prāpya na nivartante tad dhāma paramaṁ mama Audio भावार्थ: जो अव्यक्त ‘अक्षर’ इस नाम से कहा गया है, उसी अक्षर नामक अव्यक्त भाव को परमगति कहते हैं तथा जिस सनातन अव्यक्त भाव को प्राप्त होकर […]
Bhagavad Gita: Chapter 8, Verse 20
परस्तस्मात्तु भावोऽन्योऽव्यक्तोऽव्यक्तात्सनातन: |य: स सर्वेषु भूतेषु नश्यत्सु न विनश्यति || 20|| paras tasmāt tu bhāvo ’nyo ’vyakto ’vyaktāt sanātanaḥyaḥ sa sarveṣhu bhūteṣhu naśhyatsu na vinaśhyati Audio भावार्थ: उस अव्यक्त से भी अति परे दूसरा अर्थात विलक्षण जो सनातन अव्यक्त भाव है, वह परम दिव्य पुरुष सब भूतों के नष्ट होने पर भी नष्ट नहीं होता॥20॥ […]
Bhagavad Gita: Chapter 8, Verse 19
भूतग्राम: स एवायं भूत्वा भूत्वा प्रलीयते |रात्र्यागमेऽवश: पार्थ प्रभवत्यहरागमे || 19|| bhūta-grāmaḥ sa evāyaṁ bhūtvā bhūtvā pralīyaterātryāgame ’vaśhaḥ pārtha prabhavatyahar-āgame Audio भावार्थ: हे पार्थ! वही यह भूतसमुदाय उत्पन्न हो-होकर प्रकृति वश में हुआ रात्रि के प्रवेश काल में लीन होता है और दिन के प्रवेश काल में फिर उत्पन्न होता है॥19॥ Translation The multitudes of […]
Bhagavad Gita: Chapter 8, Verse 18
अव्यक्ताद्व्यक्तय: सर्वा: प्रभवन्त्यहरागमे |रात्र्यागमे प्रलीयन्ते तत्रैवाव्यक्तसञ्ज्ञके || 18|| avyaktād vyaktayaḥ sarvāḥ prabhavantyahar-āgamerātryāgame pralīyante tatraivāvyakta-sanjñake Audio भावार्थ: संपूर्ण चराचर भूतगण ब्रह्मा के दिन के प्रवेश काल में अव्यक्त से अर्थात ब्रह्मा के सूक्ष्म शरीर से उत्पन्न होते हैं और ब्रह्मा की रात्रि के प्रवेशकाल में उस अव्यक्त नामक ब्रह्मा के सूक्ष्म शरीर में ही लीन हो […]
Bhagavad Gita: Chapter 8, Verse 17
सहस्रयुगपर्यन्तमहर्यद्ब्रह्मणो विदु: |रात्रिं युगसहस्रान्तां तेऽहोरात्रविदो जना: || 17|| sahasra-yuga-paryantam ahar yad brahmaṇo viduḥrātriṁ yuga-sahasrāntāṁ te ’ho-rātra-vido janāḥ Audio भावार्थ: ब्रह्मा का जो एक दिन है, उसको एक हजार चतुर्युगी तक की अवधि वाला और रात्रि को भी एक हजार चतुर्युगी तक की अवधि वाला जो पुरुष तत्व से जानते हैं, वे योगीजन काल के तत्व […]
Bhagavad Gita: Chapter 8, Verse 16
आब्रह्मभुवनाल्लोका: पुनरावर्तिनोऽर्जुन |मामुपेत्य तु कौन्तेय पुनर्जन्म न विद्यते || 16|| ā-brahma-bhuvanāl lokāḥ punar āvartino ’rjunamām upetya tu kaunteya punar janma na vidyate Audio भावार्थ: : हे अर्जुन! ब्रह्मलोकपर्यंत सब लोक पुनरावर्ती हैं, परन्तु हे कुन्तीपुत्र! मुझको प्राप्त होकर पुनर्जन्म नहीं होता, क्योंकि मैं कालातीत हूँ और ये सब ब्रह्मादि के लोक काल द्वारा सीमित होने […]