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Bhagavad Gita: Chapter 8, Verse 15

मामुपेत्य पुनर्जन्म दु:खालयमशाश्वतम् |नाप्नुवन्ति महात्मान: संसिद्धिं परमां गता: || 15|| mām upetya punar janma duḥkhālayam aśhāśhvatamnāpnuvanti mahātmānaḥ sansiddhiṁ paramāṁ gatāḥ Audio भावार्थ: परम सिद्धि को प्राप्त महात्माजन मुझको प्राप्त होकर दुःखों के घर एवं क्षणभंगुर पुनर्जन्म को नहीं प्राप्त होते॥15॥ Translation Having attained Me, the great souls are no more subject to rebirth in this […]

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Bhagavad Gita: Chapter 8, Verse 14

अनन्यचेता: सततं यो मां स्मरति नित्यश: |तस्याहं सुलभ: पार्थ नित्ययुक्तस्य योगिन: || 14|| ananya-chetāḥ satataṁ yo māṁ smarati nityaśhaḥtasyāhaṁ sulabhaḥ pārtha nitya-yuktasya yoginaḥ Audio भावार्थ: हे अर्जुन! जो पुरुष मुझमें अनन्य-चित्त होकर सदा ही निरंतर मुझ पुरुषोत्तम को स्मरण करता है, उस नित्य-निरंतर मुझमें युक्त हुए योगी के लिए मैं सुलभ हूँ, अर्थात उसे सहज […]

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Bhagavad Gita: Chapter 8, Verse 13

ओमित्येकाक्षरं ब्रह्म व्याहरन्मामनुस्मरन् |य: प्रयाति त्यजन्देहं स याति परमां गतिम् || 13|| oṁ ityekākṣharaṁ brahma vyāharan mām anusmaranyaḥ prayāti tyajan dehaṁ sa yāti paramāṁ gatim Audio भावार्थ: और उसके अर्थस्वरूप मुझ निर्गुण ब्रह्म का चिंतन करता हुआ शरीर को त्यागकर जाता है, वह पुरुष परम गति को प्राप्त होता है॥13॥ Translation One who departs from […]

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Bhagavad Gita: Chapter 8, Verse 12

सर्वद्वाराणि संयम्य मनो हृदि निरुध्य च |मूर्ध्न्याधायात्मन: प्राणमास्थितो योगधारणाम् || 12|| sarva-dvārāṇi sanyamya mano hṛidi nirudhya chamūrdhnyādhāyātmanaḥ prāṇam āsthito yoga-dhāraṇām Audio भावार्थ: सब इंद्रियों के द्वारों को रोककर तथा मन को हृद्देश में स्थिर करके, फिर उस जीते हुए मन द्वारा प्राण को मस्तक में स्थापित करके, परमात्म संबंधी योगधारणा में स्थित होकर जो पुरुष […]

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Bhagavad Gita: Chapter 8, Verse 11

यदक्षरं वेदविदो वदन्तिविशन्ति यद्यतयो वीतरागा: |यदिच्छन्तो ब्रह्मचर्यं चरन्तितत्ते पदं संग्रहेण प्रवक्ष्ये || 11|| yad akṣharaṁ veda-vido vadantiviśhanti yad yatayo vīta-rāgāḥyad ichchhanto brahmacharyaṁ charantitat te padaṁ saṅgraheṇa pravakṣhye Audio भावार्थ: वेद के जानने वाले विद्वान जिस सच्चिदानन्दघनरूप परम पद को अविनाश कहते हैं, आसक्ति रहित यत्नशील संन्यासी महात्माजन, जिसमें प्रवेश करते हैं और जिस परम पद […]

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Bhagavad Gita: Chapter 8, Verse 10

प्रयाणकाले मनसाचलेनभक्त्या युक्तो योगबलेन चैव |भ्रुवोर्मध्ये प्राणमावेश्य सम्यक्स तं परं पुरुषमुपैति दिव्यम् || 10 prayāṇa-kāle manasāchalenabhaktyā yukto yoga-balena chaivabhruvor madhye prāṇam āveśhya samyaksa taṁ paraṁ puruṣham upaiti divyam Audio भावार्थ: वह भक्ति युक्त पुरुष अन्तकाल में भी योगबल से भृकुटी के मध्य में प्राण को अच्छी प्रकार स्थापित करके, फिर निश्चल मन से स्मरण करता […]

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Bhagavad Gita: Chapter 8, Verse 9

कविं पुराणमनुशासितारमणोरणीयांसमनुस्मरेद्य: |सर्वस्य धातारमचिन्त्यरूपमादित्यवर्णं तमस: परस्तात् || 9|| kaviṁ purāṇam anuśhāsitāramaṇor aṇīyānsam anusmared yaḥsarvasya dhātāram achintya-rūpamāditya-varṇaṁ tamasaḥ parastāt Audio भावार्थ: जो पुरुष सर्वज्ञ, अनादि, सबके नियंता (अंतर्यामी रूप से सब प्राणियों के शुभ और अशुभ कर्म के अनुसार शासन करने वाला) सूक्ष्म से भी अति सूक्ष्म, सबके धारण-पोषण करने वाले अचिन्त्य-स्वरूप, सूर्य के सदृश नित्य […]

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Bhagavad Gita: Chapter 8, Verse 8

अभ्यासयोगयुक्तेन चेतसा नान्यगामिना |परमं पुरुषं दिव्यं याति पार्थानुचिन्तयन् || 8|| abhyāsa-yoga-yuktena chetasā nānya-gāmināparamaṁ puruṣhaṁ divyaṁ yāti pārthānuchintayan Audio भावार्थ: हे पार्थ! यह नियम है कि परमेश्वर के ध्यान के अभ्यास रूप योग से युक्त, दूसरी ओर न जाने वाले चित्त से निरंतर चिंतन करता हुआ मनुष्य परम प्रकाश रूप दिव्य पुरुष को अर्थात परमेश्वर को […]

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Bhagavad Gita: Chapter 8, Verse 7

तस्मात्सर्वेषु कालेषु मामनुस्मर युध्य च |मय्यर्पितमनोबुद्धिर्मामेवैष्यस्यसंशयम् || 7|| tasmāt sarveṣhu kāleṣhu mām anusmara yudhya chamayyarpita-mano-buddhir mām evaiṣhyasyasanśhayam Audio भावार्थ: इसलिए हे अर्जुन! तू सब समय में निरंतर मेरा स्मरण कर और युद्ध भी कर। इस प्रकार मुझमें अर्पण किए हुए मन-बुद्धि से युक्त होकर तू निःसंदेह मुझको ही प्राप्त होगा॥7॥ Translation Therefore, always remember Me […]

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Bhagavad Gita: Chapter 8, Verse 6

यं यं वापि स्मरन्भावं त्यजत्यन्ते कलेवरम् |तं तमेवैति कौन्तेय सदा तद्भावभावित: || 6|| yaṁ yaṁ vāpi smaran bhāvaṁ tyajatyante kalevaramtaṁ tam evaiti kaunteya sadā tad-bhāva-bhāvitaḥ/p> Audio भावार्थ: हे कुन्ती पुत्र अर्जुन! यह मनुष्य अंतकाल में जिस-जिस भी भाव को स्मरण करता हुआ शरीर त्याग करता है, उस-उसको ही प्राप्त होता है क्योंकि वह सदा उसी […]