अपरेयमितस्त्वन्यां प्रकृतिं विद्धि मे पराम् |जीवभूतां महाबाहो ययेदं धार्यते जगत् || 5|| apareyam itas tvanyāṁ prakṛitiṁ viddhi me parāmjīva-bhūtāṁ mahā-bāho yayedaṁ dhāryate jagat Audio भावार्थ: यह आठ प्रकार के भेदों वाली तो अपरा अर्थात मेरी जड़ प्रकृति है और हे महाबाहो! इससे दूसरी को, जिससे यह सम्पूर्ण जगत धारण किया जाता है, मेरी जीवरूपा परा […]
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Bhagavad Gita: Chapter 7, Verse 4
भूमिरापोऽनलो वायु: खं मनो बुद्धिरेव च |अहङ्कार इतीयं मे भिन्ना प्रकृतिरष्टधा || 4|| bhūmir-āpo ’nalo vāyuḥ khaṁ mano buddhir eva chaahankāra itīyaṁ me bhinnā prakṛitir aṣhṭadhā Audio भावार्थ: पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, आकाश, मन, बुद्धि और अहंकार भी- इस प्रकार ये आठ प्रकार से विभाजित मेरी प्रकृति है। Translation Earth, water, fire, air, space, mind, […]
Bhagavad Gita: Chapter 7, Verse 3
मनुष्याणां सहस्रेषु कश्चिद्यतति सिद्धये |यततामपि सिद्धानां कश्चिन्मां वेत्ति तत्वत: || 3|| manuṣhyāṇāṁ sahasreṣhu kaśhchid yatati siddhayeyatatām api siddhānāṁ kaśhchin māṁ vetti tattvataḥ Audio भावार्थ: हजारों मनुष्यों में कोई एक मेरी प्राप्ति के लिए यत्न करता है और उन यत्न करने वाले योगियों में भी कोई एक मेरे परायण होकर मुझको तत्व से अर्थात यथार्थ रूप […]
Bhagavad Gita: Chapter 7, Verse 2
ज्ञानं तेऽहं सविज्ञानमिदं वक्ष्याम्यशेषत: |यज्ज्ञात्वा नेह भूयोऽन्यज्ज्ञातव्यमवशिष्यते || 2|| jñānaṁ te ’haṁ sa-vijñānam idaṁ vakṣhyāmyaśheṣhataḥyaj jñātvā neha bhūyo ’nyaj jñātavyam-avaśhiṣhyate Audio भावार्थ: मैं तेरे लिए इस विज्ञान सहित तत्व ज्ञान को सम्पूर्णतया कहूँगा, जिसको जानकर संसार में फिर और कुछ भी जानने योग्य शेष नहीं रह जाता॥2॥ Translation I shall now reveal unto you fully […]
Bhagavad Gita: Chapter 7, Verse 1
श्रीभगवानुवाच |मय्यासक्तमना: पार्थ योगं युञ्जन्मदाश्रय: |असंशयं समग्रं मां यथा ज्ञास्यसि तच्छृणु || 1|| śhrī bhagavān uvāchamayyāsakta-manāḥ pārtha yogaṁ yuñjan mad-āśhrayaḥasanśhayaṁ samagraṁ māṁ yathā jñāsyasi tach chhṛiṇu Audio भावार्थ: श्री भगवान बोले- हे पार्थ! अनन्य प्रेम से मुझमें आसक्त चित तथा अनन्य भाव से मेरे परायण होकर योग में लगा हुआ तू जिस प्रकार से सम्पूर्ण […]
Bhagavad Gita: Chapter 6, Verse 47
योगिनामपि सर्वेषां मद्गतेनान्तरात्मना |श्रद्धावान्भजते यो मां स मे युक्ततमो मत: || 47|| yoginām api sarveṣhāṁ mad-gatenāntar-ātmanāśhraddhāvān bhajate yo māṁ sa me yuktatamo mataḥ Audio भावार्थ: सम्पूर्ण योगियों में भी जो श्रद्धावान योगी मुझमें लगे हुए अन्तरात्मा से मुझको निरन्तर भजता है, वह योगी मुझे परम श्रेष्ठ मान्य है॥47॥ Translation Of all yogis, those whose minds […]
Bhagavad Gita: Chapter 6, Verse 46
तपस्विभ्योऽधिकोयोगीज्ञानिभ्योऽपिमतोऽधिक:|कर्मिभ्यश्चाधिकोयोगीतस्माद्योगीभवार्जुन|| 46|| tapasvibhyo ’dhiko yogījñānibhyo ’pi mato ’dhikaḥkarmibhyaśh chādhiko yogītasmād yogī bhavārjuna Audio भावार्थ: योगी तपस्वियों से श्रेष्ठ है, शास्त्रज्ञानियों से भी श्रेष्ठ माना गया है और सकाम कर्म करने वालों से भी योगी श्रेष्ठ है। इससे हे अर्जुन! तू योगी हो॥46॥ Translation A yogi is superior to the tapasvī (ascetic), superior to the jñānī […]
Bhagavad Gita: Chapter 6, Verse 45
प्रयत्नाद्यतमानस्तु योगी संशुद्धकिल्बिष: |अनेकजन्मसंसिद्धस्ततो याति परां गतिम् || 45|| prayatnād yatamānas tu yogī sanśhuddha-kilbiṣhaḥaneka-janma-sansiddhas tato yāti parāṁ gatim Audio भावार्थ: परन्तु प्रयत्नपूर्वक अभ्यास करने वाला योगी तो पिछले अनेक जन्मों के संस्कारबल से इसी जन्म में संसिद्ध होकर सम्पूर्ण पापों से रहित हो फिर तत्काल ही परमगति को प्राप्त हो जाता है॥45॥ Translation With the […]
Bhagavad Gita: Chapter 6, Verse 44
पूर्वाभ्यासेन तेनैव ह्रियते ह्यवशोऽपि स: |जिज्ञासुरपि योगस्य शब्दब्रह्मातिवर्तते || 44|| pūrvābhyāsena tenaiva hriyate hyavaśho ’pi saḥjijñāsur api yogasya śhabda-brahmātivartate Audio भावार्थ: वह (यहाँ ‘वह’ शब्द से श्रीमानों के घर में जन्म लेने वाला योगभ्रष्ट पुरुष समझना चाहिए।) श्रीमानों के घर में जन्म लेने वाला योगभ्रष्ट पराधीन हुआ भी उस पहले के अभ्यास से ही निःसंदेह […]
Bhagavad Gita: Chapter 6, Verse 43
तत्र तं बुद्धिसंयोगं लभते पौर्वदेहिकम् |यतते च ततो भूय: संसिद्धौ कुरुनन्दन || 43|| tatra taṁ buddhi-sanyogaṁ labhate paurva-dehikamyatate cha tato bhūyaḥ sansiddhau kuru-nandana Audio भावार्थ: वहाँ उस पहले शरीर में संग्रह किए हुए बुद्धि-संयोग को अर्थात समबुद्धिरूप योग के संस्कारों को अनायास ही प्राप्त हो जाता है और हे कुरुनन्दन! उसके प्रभाव से वह फिर […]