अथवा योगिनामेव कुले भवति धीमताम् |एतद्धि दुर्लभतरं लोके जन्म यदीदृशम् || 42|| atha vā yoginām eva kule bhavati dhīmatāmetad dhi durlabhataraṁ loke janma yad īdṛiśham Audio भावार्थ: अथवा वैराग्यवान पुरुष उन लोकों में न जाकर ज्ञानवान योगियों के ही कुल में जन्म लेता है, परन्तु इस प्रकार का जो यह जन्म है, सो संसार में […]
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Bhagavad Gita: Chapter 6, Verse 41
प्राप्य पुण्यकृतां लोकानुषित्वा शाश्वती: समा: |शुचीनां श्रीमतां गेहे योगभ्रष्टोऽभिजायते || 41|| prāpya puṇya-kṛitāṁ lokān uṣhitvā śhāśhvatīḥ samāḥśhuchīnāṁ śhrīmatāṁ gehe yoga-bhraṣhṭo ’bhijāyate Audio भावार्थ: योगभ्रष्ट पुरुष पुण्यवानों के लोकों को अर्थात स्वर्गादि उत्तम लोकों को प्राप्त होकर उनमें बहुत वर्षों तक निवास करके फिर शुद्ध आचरण वाले श्रीमान पुरुषों के घर में जन्म लेता है॥41॥ Translation […]
Bhagavad Gita: Chapter 6, Verse 40
श्रीभगवानुवाच |पार्थ नैवेह नामुत्र विनाशस्तस्य विद्यते |न हि कल्याणकृत्कश्चिद्दुर्गतिं तात गच्छति || 40|| śhrī bhagavān uvāchapārtha naiveha nāmutra vināśhas tasya vidyatena hi kalyāṇa-kṛit kaśhchid durgatiṁ tāta gachchhati Audio भावार्थ: श्री भगवान बोले- हे पार्थ! उस पुरुष का न तो इस लोक में नाश होता है और न परलोक में ही क्योंकि हे प्यारे! आत्मोद्धार के […]
Bhagavad Gita: Chapter 6, Verse 39
एतन्मे संशयं कृष्ण छेत्तुमर्हस्यशेषत: |त्वदन्य: संशयस्यास्य छेत्ता न ह्युपपद्यते || 39|| etan me sanśhayaṁ kṛiṣhṇa chhettum arhasyaśheṣhataḥtvad-anyaḥ sanśhayasyāsya chhettā na hyupapadyate Audio भावार्थ: हे श्रीकृष्ण! मेरे इस संशय को सम्पूर्ण रूप से छेदन करने के लिए आप ही योग्य हैं क्योंकि आपके सिवा दूसरा इस संशय का छेदन करने वाला मिलना संभव नहीं है॥39॥ Translation […]
Bhagavad Gita: Chapter 6, Verse 38
कच्चिन्नोभयविभ्रष्टश्छिन्नाभ्रमिव नश्यति |अप्रतिष्ठो महाबाहो विमूढो ब्रह्मण: पथि || 38|| kachchin nobhaya-vibhraṣhṭaśh chhinnābhram iva naśhyatiapratiṣhṭho mahā-bāho vimūḍho brahmaṇaḥ pathi Audio भावार्थ: हे महाबाहो! क्या वह भगवत्प्राप्ति के मार्ग में मोहित और आश्रयरहित पुरुष छिन्न-भिन्न बादल की भाँति दोनों ओर से भ्रष्ट होकर नष्ट तो नहीं हो जाता?॥38॥ Translation Does not such a person who deviates from […]
Bhagavad Gita: Chapter 6, Verse 37
अर्जुन उवाच |अयति: श्रद्धयोपेतो योगाच्चलितमानस: |अप्राप्य योगसंसिद्धिं कां गतिं कृष्ण गच्छति || 37|| arjuna uvāchaayatiḥ śhraddhayopeto yogāch chalita-mānasaḥaprāpya yoga-sansiddhiṁ kāṅ gatiṁ kṛiṣhṇa gachchhati Audio भावार्थ: अर्जुन बोले- हे श्रीकृष्ण! जो योग में श्रद्धा रखने वाला है, किन्तु संयमी नहीं है, इस कारण जिसका मन अन्तकाल में योग से विचलित हो गया है, ऐसा साधक योग […]
Bhagavad Gita: Chapter 6, Verse 36
असंयतात्मना योगो दुष्प्राप इति मे मति: |वश्यात्मना तु यतता शक्योऽवाप्तुमुपायत: || 36|| asaṅyatātmanā yogo duṣhprāpa iti me matiḥvaśhyātmanā tu yatatā śhakyo ’vāptum upāyataḥ Audio भावार्थ: जिसका मन वश में किया हुआ नहीं है, ऐसे पुरुष द्वारा योग दुष्प्राप्य है और वश में किए हुए मन वाले प्रयत्नशील पुरुष द्वारा साधन से उसका प्राप्त होना सहज […]
Bhagavad Gita: Chapter 6, Verse 35
श्रीभगवानुवाच |असंशयं महाबाहो मनो दुर्निग्रहं चलम् |अभ्यासेन तु कौन्तेय वैराग्येण च गृह्यते || 35|| śhrī bhagavān uvāchaasanśhayaṁ mahā-bāho mano durnigrahaṁ chalamabhyāsena tu kaunteya vairāgyeṇa cha gṛihyate Audio भावार्थ: श्री भगवान बोले- हे महाबाहो! निःसंदेह मन चंचल और कठिनता से वश में होने वाला है। परन्तु हे कुंतीपुत्र अर्जुन! यह अभ्यास (गीता अध्याय 12 श्लोक 9 […]
Bhagavad Gita: Chapter 6, Verse 34
चञ्चलं हि मन: कृष्ण प्रमाथि बलवद्दृढम् |तस्याहं निग्रहं मन्ये वायोरिव सुदुष्करम् || 34|| chañchalaṁ hi manaḥ kṛiṣhṇa pramāthi balavad dṛiḍhamtasyāhaṁ nigrahaṁ manye vāyor iva su-duṣhkaram Audio भावार्थ: क्योंकि हे श्रीकृष्ण! यह मन बड़ा चंचल, प्रमथन स्वभाव वाला, बड़ा दृढ़ और बलवान है। इसलिए उसको वश में करना मैं वायु को रोकने की भाँति अत्यन्त दुष्कर […]
Bhagavad Gita: Chapter 6, Verse 33
अर्जुन उवाच |योऽयं योगस्त्वया प्रोक्त: साम्येन मधुसूदन |एतस्याहं न पश्यामि चञ्चलत्वात्स्थितिं स्थिराम् || 33|| arjuna uvāchayo ’yaṁ yogas tvayā proktaḥ sāmyena madhusūdanaetasyāhaṁ na paśhyāmi chañchalatvāt sthitiṁ sthirām Audio भावार्थ: अर्जुन बोले- हे मधुसूदन! जो यह योग आपने समभाव से कहा है, मन के चंचल होने से मैं इसकी नित्य स्थिति को नहीं देखता हूँ॥33॥ Translation […]